2006 Mumbai Train Blasts: मुंबई में 2006 के सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में हाई कोर्ट ने सोमवार को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रॉसीक्यूशन यानी सरकारी वकील आरोपियों के खिलाफ केस साबित करने में नाकाम रहे हैं। हाई कोर्ट के इस फैसले से धमाके के पीड़ितों और उनके परिवार ने निराशा जाहिर की है और कहा कि असली दोषियों का पता लगाया जाए।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इन पीड़ितों में से एक महेंद्र पितले भी हैं। 11 जुलाई 2006 की शाम को महेंद्र पितले काम से घर लौट रहे थे। ज्यादातर दिनों की तरह वह लोकल ट्रेन के गेट पर खड़े थे। शाम करीब 6 बजे जैसे ही ट्रेन जोगेश्वरी स्टेशन के पास पहुंची, एक जोरदार धमाका हुआ। इसकी वजह से वह कोच के बाहर जाकर गिरे। अगले दिन जब उन्हें अस्पताल में होश आया तो उन्होंने पाया कि उनका एक हाथ कटा हुआ था।
असली दोषियों का पता लगाया जाए – महेंद्र पितले
महेंद्र पितले ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘यह एक दिन उन 19 सालों की पीड़ा से भी ज्यादा अन्यायपूर्ण है जो हमने झेली हैं। अब मेरी बस यही उम्मीद है कि अगर ये अपराधी नहीं थे, तो असली दोषियों का पता लगाया जाए। मुझे पूरा यकीन है कि जांच पूरी नहीं हुई।’ बॉम्बे हाई कोर्ट ने पांच दोषियों को मौत की सजा सुनाने वाले स्पेशल कोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया।
हमने न्याय के लिए 19 साल इंतजार किया – रमेश नाइक
बोरीवली में एक ट्रेन में हुए बम धमाके में अपनी 27 साल की बेटी नंदिनी को खोने वाले रमेश नाइक ने कहा, ‘हमने न्याय के लिए 19 साल तक इंतजार किया, लेकिन क्या न्याय मिला। 19 साल बाद, हमें बताया जा रहा है कि आरोपी निर्दोष हैं। अब मैं न्याय के लिए किसके पास जाऊं? मैं किसे जिम्मेदार ठहराऊं न्यायपालिका को या सरकार को? नंदिनी ने अभी-अभी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था और अपना करियर शुरू करने वाली थी।’
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2015 में विशेष अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए सभी लोगों को क्यों किया बरी?
मरने वाले लोगों में प्राइवेट फर्म में डेवलेपमेंट ऑफिसर के तौर पर काम करने वाले अनुज किलावाला भी थे। उनकी पत्नी चंदिका किलावाला ने कहा, ‘सरकार पीड़ितों को जल्दी न्याय दिलाने में हमेशा विफल रहती है। अगर मेरी बेटी, जिसने पारिवारिक व्यवसाय संभाला है, न होती, तो हमें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता।’ वहीं चिराग चौहान ने इस फैसले को न्यायपालिका की विफलता बताया है। चिराग ने कहा, ‘यह फैसला चौंकाने वाला है। यह सिर्फ मेरे बारे में नहीं है। सैकड़ों अन्य लोग भी इस हमले के शिकार हुए हैं। मुझे अभी पूरा फैसला पढ़ना बाकी है, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि ऐसा क्यों हुआ।’
हंसराज कनौजिया को अब बैसाखी का सहारा
मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में हंसराज कनौजिया नाम के व्यक्ति को भी चोटें लगी थी। वह अब बैसाखी के सहारे चलते हैं। कनौजिया इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं, ‘यह घटना भले ही 19 साल पहले हुई हो, लेकिन उसके जख्म आज भी ताजा हैं। मुझे वो धमाके हर रोज साफ याद आते हैं। उस घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी और मैं हर पल उसके बारे में सोचता हूं। मेरी तरह, सभी पीड़ितों को प्रशासन से न्याय की उम्मीद रही होगी। लेकिन आज का फैसला प्रशासन की पूरी तरह से नाकामी है। आखिर वे इन हमलों के जिम्मेदार लोगों को कैसे नहीं पकड़ पाए।’
मुझे कैसे पता था कि वह उस दिन वापस नहीं आएंगे – उषा
उषा शरद बोभाटे के पति शरद बोभाटे पंजाब नेशनल बैंक में मैनेजर थे। वह धमाकों के वक्त ट्रेन में थे। उषा ने दुख बयां करते हुए कहा, ‘वह हमेशा ऑफिस से निकलते समय मुझे फोन करके पूछते थे कि क्या उन्हें बाजार से कुछ लेना है। हालांकि, उस दिन उनका कोई फोन नहीं आया और मैं बेचैन होती रही। मुझे कैसे पता था कि वह उस दिन घर वापस नहीं आएंगे।’ वह कहती हैं, ‘मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि अदालत ने आरोपी को बख्श दिया। क्या अदालत का काम न्याय करना नहीं है।’ मुंबई ट्रेन ब्लास्ट की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…