टीवी पत्रकार अरनब गोस्वामी और बरखा दत्त की ‘जंग’ में बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी राय जाहिर की है। इनमें सबसे बड़ा नाम है मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर ह र्षा भोगले का। अरनब ने ‘स्यूडो सेक्युलर और प्रो पाकिस्तानी’ पत्रकारों के खिलाफ अपने प्राइमटाइम न्यूजऑवर डिबेट में ‘सख्त कार्रवाई’ की मांग की थी। इसके बाद एनडीटीवी की कंसल्टिंग एडिटर बरखा दत्त ने अरनब की ‘कायराना हिप्पोक्रेसी’ पर तीखी टिप्पणी की थी। अपनी फेसबुक पोस्ट में बरखा ने दावा किया कि वह गोस्वामी के पेशे (पत्रकारिता) से होने पर शर्मिंदा है। उन्होंने लिखा, “टाइम्स नाऊ मीडिया पर अंकुश लगाने, जर्नलिस्ट्स पर केस चलाने और उन्हें सजा देने की बात कहता है? क्या यह शख्स जर्नलिस्ट है? मैं उनकी ही तरह इस इंडस्ट्री का हिस्सा होने पर शर्मिंदा हूं। जो चीज चोट पहुंचा रही है, वो उनका खुल्लमखुल्ला बुजदिली भरा पाखंडपूर्ण रवैया है। वे पाकिस्तानपरस्त कबूतरों की बात तो करते हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में गठबंधन को लेकर हुए समझौते का एक शब्द भी जिक्र नहीं करते।”
बरखा ने आगे लिखा, ”इस समझौते के मुताबिक बीजेपी और पीडीपी को पाकिस्तान और हुर्रियत से बात करनी है। वे मोदी की पाकिस्तान से नजदीकी पर चुप हैं, जिस पर मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है। मुझे आपत्ति इस बात की है कि चूंकि अरनब गोस्वामी देशभक्ति का आकलन इन विचारों से करते हैं तो वे सरकार पर चुप क्यों हैं? चमचागिरी? सोचिए, एक जर्नलिस्ट सरकार को उपदेश देता है कि मीडिया के कुछ धड़ों को बंद कर देना चाहिए। उन्हें बतौर आईएसआई एजेंट्स और आतंकियों के हमदर्द के तौर पर पेश करता है। उनके खिलाफ मामला चलाने और कार्रवाई करने की बात करता है।”
इस पूरी लड़ाई पर प्रतिक्रिया देते हुए हर्षा भोगले ने फेसबुक पर लिखा है। वे लिखते हैं, ”एक समय था जब पत्रकार होने का मतलब एक तरह से जज होना होता था, मतलब आप पर एक जिम्मेदारी होती थी। लोग आप पर भरोसा करते थे और आपको उस भरोसे पर हर समय खरा उतरना पड़ता था। लेकिन न्यूज भी आखिर एक कॉम्प्टीशन ही था इसलिए आपको औरों से आगे रहना जरूरी था। आपने खबरें जल्दी लाकर वहीं किया, लेकिन आप तब भी सच दिखाते थे। कम से कम ज्यादातर लोगों को तो यही लगता था। फिर सोशल मीडिया आया और ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी चीजों के साथ अब हर कोई पत्रकार बन गया है, बिना कोई जिम्मेदारी लिए। तो गरिमामय और सच्चाई, उत्तेजक और झूठ के बीच में छानने-बीनने की जिम्मेदारी प्रसार करने वाले की नहीं, उसे पाने वाले ही है। लेकिन सोशल मीडिया कम से कम एक निजी प्लेटफॉर्म है। जब मॉस मीडिया अपनी जिम्मेदारी से भागता है, जब खबरें देने वाला खबर बनने की कोशिश करता है और ध्यान खींचने के लिए भड़काऊ व्यवहार (इससे उन्हें जल्द मुक्ति पा लेनी चाहिए) करता है, तो हम वाकई एक खतरनाक दौर में पहुंच जाते हैं।”
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