देश के किसी भी राज्य को उदाहरण के तौर पर लिया जाए तो हरियाणा का पुंडरी विधानसभा क्षेत्र अपने आप में एक अपवाद की तरह है। पिछले 25 सालों से कैथल जिले के इस विधानसभा क्षेत्र से किसी भी दल विशेष का उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सकता है। यहां की जनता पार्टी के नेताओं से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवारों पर भरोसा करती है। मतदान से एक दिन पहले लोगों के एक छोटे से समूह ने पार्टियों की भक्ति नहीं करने वाले दृढ़ मतदाताओं की तस्वीरें लीं।
टैक्सी स्टैंड में काम करने वाले पप्पी कंबोज कहते हैं, “टिकट पर विश्वास ही नहीं है यहां।” वहीं, चंद्रभान पंचाल कहते हैं, “पार्टियां दबाव में आकर टिकट का आवंटन करती हैं, जिनका विधानसभा क्षेत्र की भलाई से कोई लेना-देना नहीं होता।” चंद्रभान आगे कहते हैं, “हम यह देखेंगे कि कौन उम्मीदवार पार्टी नहीं, बल्कि हमारे लिए 5 साल तक हमारे लिए खड़ा रहा है।”
बीजेपी ने 2014 विधानसभा चुनाव में बिना किसी सहयोगी पार्टी के जीत हासिल की थी। साथ ही इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने सभी 10 लोकसभा सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया। लेकिन, पुंडरी में बीजेपी की दाल लगभग गली ही नहीं।
कंबोज के मुताबिक, ” राष्ट्रवाद को तो हमने मजबूत कर दिया। अब बीजेपी को हमें बेहतर चेहरा (लोकल) देना चाहिए था।” गौरतलब है कि यहां स्थिति ऐसी है कि बीजेपी के मंडल अध्यक्ष राम लाल चौधरी कहते हैं कि वह पुंडरी में अपने पार्टी प्रत्याशी के लिए नहीं बल्कि निर्दलीय के लिए काम कर रहे हैं। निर्दलीय उम्मीदवार पहले बीजेपी में था, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया।
ऐसे में इन सारी परिस्थितियों को गौर करने के बाद फिर सारे एग्जिट पोल में बीजेपी को हरियाणा में सफाया करते कैसे दिखाया जा सकता है? क्योंकि, राज्य के कई विधानसभा क्षेत्रों में पुंडरी जैसी परिस्थितियां व्याप्त हैं। आप मतदाताओं के मुंह से सुन सकते हैं कि कैसे कोई उममीदवार ने पार्टी के प्रति अपनी वफादारी बदल देता है। लोगों की भविष्यवाणी यह भी है कि उनका विजयी उम्मीदवार, जो कि किसी भी सिंबल पर चुनाव लड़ा हो, वह चुनाव फतह करने वाली पार्टी के साथ ही हाथ मिलाएगा। हरियाणा ने ऐसी राजनीतिक के लिए न सिर्फ “आया राम, गया राम” जैसे मुहावरे दिए हैं, बल्कि इस गतिविधि को लेकर नॉर्मल भी रहता है।