Happy Labour Day 2019 Wishes Images, Quotes, Messages: हर साल एक मई का दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजूदर दिवस के रूप में मनाया जाता है। मजदूरों की क्रांति के बाद पिछले 132 सालों से एक मई को दुनियाभर में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। दरअसल साल 1886 में मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग करते हुए अमेरिका में एक आंदोलन शुरू किया था। इन मजदूरों की मांग थी कि काम के घंटों को घटाकर आठ घंटे किया जाए। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेय मार्केट में धमाका तक हुआ था। एक मई 1886 ही वह दिन था जब अमेरिका में लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू कर दी। एक रिपोर्ट के मुताबिक मजदूरों की इस हड़ताल में करीब 11,000 कारखानों के 3,80,000 मजदूर शामिल हुए, जिससे पहली बार मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत हुई। इसके अलावा 4 मई, 1886 को शिकागो में जब आठ मजदूर अपनी मांगों के लेकर प्रदर्शन कर रहे थे तब प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए गोलियां चला दी गईं। इस हमले में कई मजूदरों की मौत हो गई।
मदजूरों की मौत के बाद पेरिस में साल 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में हेय मार्केट में मारे गए निर्दोष लोगों की याद में एक मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस घोषित किया गया। इसके अलावा घोषणा की गई एक मई के दिन मजदूरों की छुट्टी रहेगी। उस दिन के बाद से भारत से 80 से ज्यादा देशों में मजदूर दिवस या मई दिवस को अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा। सम्मेलन में हेय गोलीकांड के लिए कमेटी का गठन किया गया और जांच के बाद दोषियों को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया।
भारत में ऐसे हुई मजदूर दिवस की शुरुआत
खास बात यह है कि भारत मजदूर दिवस की शुरुआत पूरे दक्षिण राज्य तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से हुई। किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान ने एक मई, 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की। तब से भारत में भी इसे राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा।
मजदूरों के हक और उनकी आवाज बुलंद करने के लिए कई मशहूर शायरों ने बहुत सी शानदार शायरी लिखी भी मुनव्वर राणा, हैदर अली जाफरी, अहमद सलमान, अफजन खान कुछ ऐसे शायर हुए जिन्होंने मजदूरों के हक में खूब लिखा। पढ़िए कुछ शानदार शायरी-
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मजदूरों ने मजदूरी की
अफजल खान
पेड़ के नीचे जरा सी छांव जो उस को मिली
सो गया मजदूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए
शारिब मौरान्वी
ज़िंदगी अब इस कदर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूक ही मजदूर की खुराक हो जाएगी क्या
रजा मौरान्वी
तू कादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहां में
हैं तल्ख बहुत बंदा-ए-मजदूर के औकात
अल्लामा इकबाल
बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है
रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं
मुनव्वर राना
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
मुनव्वर राना