हल्द्वानी में गुरुवार शाम को जिस तरह से अवैध मदरसे के हटाए जाने के बाद हिंसा की गईं, उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। किस तरह से पुलिस को निशाना बनाया गया, उन पर पथराव हुआ, पेट्रोल बम फेंके गए, गाड़ियों को आग हवाले किया गया, जिसने वो नजारा देखा, वो स्तब्ध रह गया। देवभूमि हल्द्वानी में इस समय कर्फ्यू लगा हुआ है, लोग घर से बाहर नहीं निकल सकते हैं, इंटरनेट बंद कर दिया गया है।
अब हल्द्वानी में जो हुआ, वो सभी को पता है। लेकिन इस हिंसा के बाद नैनीताल की डीएम वंदना सिंह सुर्खियों में आ गई हैं। उनकी तरफ से सख्त लहजे में कहा गया है कि आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। उनकी तरफ से इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने की जरूरत नहीं है। किसी विशेष समाज के लोगों ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की है। यानी कि अपने एक स्टेटमेंट से वंदना सिंह ने ना सिर्फ उपद्रवियों को कड़ा संदेश देने का काम किया, इसके अलावा उन्होंने सांप्रदायिक एंगल को भी सिरे से खारिज कर दिया।
वंदना सिंह इस समय अपने करियर का एक सबसे चुनौतीपूर्ण दौर देख रही हैं। उन पर स्थिति को नियंत्रण में लाने का दबाव है, जनता में फिर शांति स्थापित करनी है। अब सवाल ये उठता है कि तमाम चुनौतियों से जूझ रहीं वंदना सिंह हैं कौन? उनका शुरुआती जीवन कैसा रहा, वे कहां की रहने वाली हैं?
वंदना सिंह का जन्म 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव में हुआ था। जिस परिवार से वे ताल्लुक रखती थीं, वहां लड़कियों की पढ़ाई को ज्यादा तवज्जो कभी नहीं दी गई। इसी वजह से वंदना को भी शुरुआती जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा, जो पढ़ाई बच्चों का अधिकार मानी जाती है, उन्हें उस अधिकार से ही वंचित करने की तमाम कोशिशें की गईं। उनके परिवार के कई सदस्य चट्टान की तरह उनके खिलाफ खड़े हो गए। लेकिन तब वंदना के पिता ने समाज की एक नहीं सुनी और अपनी बेटी को पढ़ाने का एक निडर फैसला किया।
उस फैसले ने ही वंदना को सबसे पहले मुरादाबाद के एक गुरुकुल में एडमिशन दिलवाया और फिर देखते ही देखते उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई भी पूरी कर ली। बताया जाता है कि वंदना को यूपीएसी का चस्का भी तब चढ़ चुका था, ऐसे में स्कूल की पढ़ाई खत्म करते ही उन्होंने देश के सबसे मुश्किल एग्जाम के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। उनकी लगन ऐसी थी कि उन्होंने अपने IAS बनने के सपने को तो जिंदा रखा ही, साथ में LLB की पढ़ाई भी पूरी की। उनकी तरफ से कॉलेज नहीं जाया गया, उन्होंने घर पर ही 12 से 14 घंटे पढ़ाई कर हर क्षेत्र में कीर्तिमान रचा। आपको ये जान हैरानी होगी कि देश के सबसे मुश्किल एग्जाम के लिए वंदना ने कोई कोचिंग नहीं ली थी। बिना कोचिंग उनकी पूरे देश में 8वीं रैंक आई थी।
IAS बनने के बाद वंदना सिंह को सबसे पहले उत्तराखंड कैडर मिला था। वे पिथौरागढ़ की मुख्य विकास अधिकारी नियुक्त की गई थीं। इसके बाद 2017 में उन्हें पहली महिला सीडीओ बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ। कुछ समय के लिए वंदना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की ब्रांड एंबेसडर भी रहीं। साल 2020 में उनका ट्रांसफर रुद्रप्रयाग किया गया और उन्होंने डीएम के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभाली। अगले साल ही वे अल्मोड़ा की जिलाधिकारी की नियुक्त की गईं और पिछले साल नैनीताल की 48वीं डीएम बनीं।