Gyanvapi Masjid Case News: वाराणसी की जिला अदालत के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi Masjid) का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने सर्वे शुरू कर दिया है। एएसआई की 43 सर्वेयर की टीम पूरे परिसर का सर्वे कर रही है। कुल चार टीमें बनाई गई हैं। टीम वजूखाने को छोड़कर पूरे परिसर का सर्वे करेगी। इस दौरान वीडियोग्राफी भी कराई जा रही है। कोर्ट ने एएसआई को इस बात की भी इजाजत दी है कि सर्वे के दौरान अगर कहीं खुदाई की जरूरत पड़ती है तो उसे भी किया जा सकता है। हालांकि इससे परिसर को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। सर्वे की रिपोर्ट 4 अगस्त को वाराणसी जिला कोर्ट में पेश की जाएगी।

पिछले साल भी हुआ था सर्वे

आपको बता दें कि पिछले साल 6-7 मई को वाराणसी जिला कोर्ट के आदेश के बाद कोर्ट कमिश्नर की देखरेख में सर्वे किया गया था। इस दौरान सर्वे में मस्जिद में हिंदू देवी-देवताओं की कलाकृतियां मिली थी। इसके अलावा कई ऐसे चिन्ह मिले हैं जो सनातन संस्कृति से जुड़े हैं। इसके अलावा एक कथित शिवलिंग मिला था। इसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है। पिछले साल हुए सर्वे में सिर्फ मौके ही मौजूद स्थिति की जांच की गई थी। इसमें परिसर की फोटो और वीडियोग्राफी कराई गई थी। हालांकि उसे सर्वे में किसी भी तरह की साइंटिफिक जांच नहीं की गई थी।

ASI सर्वे में क्या होगा?

एएसआई अपने सर्वे में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर जांच करेगी। बता दें कि एएसआई पुरानी इमारतों की जांच के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और अन्य आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके पता लगाने की कोशिश करता है कि यहां मौजूदा समय से पहले क्या हुआ करता था। ज्ञानवापी मामले में भी एएसआई ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल करेगा। सर्वे में इस बात का पता चलाया जाएगा कि दीवार या नींव के पीछे कोई अन्य ढांचा तो नहीं दबा हुआ है। इसके इमारत के मौजूद ढांचे की उम्र, कलाकृतियों में किसी तरह का बदलाव को लेकर जांच की जाएगी।

क्या है एएसआई?

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) विभाग संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। इसका काम देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण और अनुसंधान करना है। देश की सभी ऐतिहासिक इमारतों की देखरेख का जिम्मा एएसआई के पास है। इसकी स्थापना आजादी से पहले 1861 में की गई थी। 1958 के प्राचीन संस्‍मारक तथा पुरातत्‍वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम के तहत यह संबंधित मामलों के रेग्युलेशन का भी काम करता है। यह पुरावशेष और बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी रेगुलेट करता है। राष्‍ट्रीय महत्‍व के प्राचीन स्‍मारकों और अवशेषों के रखरखाव के लिए पूरे देश को 24 मंडलों में विभाजित किया गया है।

Gyanvapi Survey: क्या है पूरा मामला?

अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी। इस याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था। दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है। हालांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से इसे फव्वारा बताया गया। 16 मई 2023 को चारों वादी महिलाओं की तरफ से हिंदू पक्ष ने एक प्रार्थनापत्र दिया था। इसमें मामले में कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर की एएसआई से जांच कराने का आदेश दिया।

किस बात पर है विवाद?

बता दें कि स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ को सबसे अहम माना जाता है। हिंदू पक्ष का कहना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था। इसके बाद 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया है। हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और पूरी जमीन हिंदुओं को सौंपी जाए। दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का दावा है कि आजादी से पहले से यहां नमाज पढ़ी जा रही है। ऐसे में इस मामले में 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी लागू होता है। इस कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा। इसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है।