वैसे गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हमेशा विवादों के केंद्र में रहा है। आर्य समाज जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ हमेशा अलख जगाता रहा है परंतु देखने में आया है कि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय को संचालित करने वाली संस्थाएं हमेशा जातिवाद और क्षेत्रवाद की शिकार होती रही हैं और बहु उपदेश कुशल बहुतेरे की कहावत को चरितार्थ करती रही हैं।
ताजा विवाद
अब गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में ताजा विवाद विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पूर्व केंद्रीय मंत्री और सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी डाक्टर सतपाल सिंह और विश्वविद्यालय के बर्खास्त कुलपति प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री के बीच है। दरअसल कुलपति रहते हुए प्रोफेसर शास्त्री ने कुलाधिपति सतपाल सिंह के खास कुलसचिव सुनील कुमार को उनके पद से बर्खास्त करके अपने खास प्रोफेसर पंकज मदान को कार्यवाहक कुलसचिव नियुक्त कर दिया था। इस पर कुलाधिपति डा सिंह ने बदले में प्रोफेसर शास्त्री को कुलपति पद से ही बर्खास्त कर दिया और साथ ही प्रोफसर शास्त्री द्वारा बर्खास्त किए गए कुलसचिव सुनील कुमार को बहाल कर दिया। कार्यवाहक कुलसचिव प्रोफेसर मदान की कुलसचिव पद से छुट्टी कर दी।
प्रोफेसर शास्त्री अपनी बर्खास्तगी से पहले ही लंबी छुट्टी लेकर चले गए थे। कुलाधिपति डा सिंह ने प्रोफेसर शास्त्री को बर्खास्त करके उनकी जगह कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर सोमदेव शतांशु को नियुक्त किया। जब प्रोफेसर शतांशु अपना कार्यभार लेने गए तो कुलपति के दफ्तर पर ताला लगा हुआ था। उन्हें कुलसचिव के दफ्तर में जाकर अपना कुलपति का कार्यभार लेना पड़ा।
बाद मे कुलपति के दफ्तरकाबिज हुए प्रोफेसर शतांशु ने कहा कि उन्हें कुलाधिपति डा सतपाल सिंह ने फिलहाल कार्यवाहक कुलपति के रूप में नियुक्त किया है और जब वे कुलपति कार्यालय में अपना कार्यभार लेने गए तब वहां पर ताला लगा हुआ था। उन्होंने कुलसचिव के दफ्तर पर जाकर अपना कार्यभार ग्रहण किया। बाद में कुलपति के दफ्तर का ताला खुलवा कर उन्होंने विश्वविद्यालय का नियमित कार्य करना शुरू कर दिया है। परंतु अभी कुलपति आवास पर बर्खास्त कुलपति प्रोफेसर शास्त्री का कब्जा ही है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की टीम करेगी जांच
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डा सिंह ने प्रोफेसर शास्त्री को कुलपति पद से निलंबित करने के बाद इस सारे मामले की जांच के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को पत्र भेजा था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पांच सदस्यीय जांच टीम इस प्रकरण की जांच के लिए गठित की है। वह जल्दी ही इस मामले की जांच करने के लिए गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय आएगी।
निलंबित कुलपति प्रोफेसर शास्त्री का कहना है कि वे अभी भी कुलपति हैं क्योंकि निलंबन कोई सजा नहीं है। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से इस मामले की जांच करने के लिए गठित समिति की सूचना मिल गई है। आयोग के सचिव से उन्हें जो पत्र मिला है उसमें इस मामले की जांच करने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि वे किसी भी मामले की जांच के लिए तैयार हैं।
शास्त्री ने दिया था कुलपति पद से इस्तीफा
सूत्रों के मुताबिक प्रोफेसर शास्त्री ने कुलपति पद से निलंबन होने के बाद कुलाधिपति को कुलपति पद से अपना इस्तीफा भेज दिया था, जिसे कुलाधिपति ने स्वीकार नहीं किया था। और प्रोफेसर शास्त्री के अनुसार उन्होंने अपना इस्तीफा कुलाधिपति को भेजा था और बाद में अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। प्रोफेसर शास्त्री का कहना है कि उनका 29 अक्तूबर को कुलपति पद से निलंबन हुआ और उन्हें 30 अक्तूबर को इस मामले में अधिकारिक चिट्ठी मिली थी। प्रोफेसर शास्त्री का कहना है कि कुलाधिपति को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
कुलाधिपति उनके जरिए विश्वविद्यालय में कई तरह के अनाधिकृत कार्य करवाना चाहते थे, उन्होंने दबाव डालकर कुलसचिव पद पर अपने चहेते सुनील कुमार की नियुक्ति करवाई थी और जब उन्होंने इसका विरोध करना शुरू किया तो कुलाधिपति उनसे निजी बैर रखने लगे और उन्होंने जब 22 अक्तूबर को सुनील कुमार को उनकी विश्वविद्यालय विरोधी गतिविधियों के कारण कुलसचिव पद से हटा दिया तो बौखलाए कुलाधिपति ने बदले की भावना से उन्हें गैरकानूनी रूप से निलंबित कर दिया। कुलाधिपति ने यह अवैध कार्य किया है। प्रोफÞेसर शास्त्री ने दावा किया कि विश्वविद्यालय के कुलपति वही हैं और प्रोफÞेसर शतांशु तो केवल कार्यवाहक कुलपति है।
आरोपों को बताया निराधार
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुनील कुमार का कहना है कि निलंबित किए गए कुलपति प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री द्वारा विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद हैं और वे बौखलाहट में आरोप लगा रहे हैं। दरअसल कुलपति पद पर रहते हुए प्रोफÞेसर शास्त्री अपनी मनमर्जी कर रहे थे और नियम विरुद्ध कार्य कर रहे थे जब उनको कानूनों का हवाला दिया जाता था तब वे कानूनों को धता बताकर काम करना चाहते थे। प्रोफेसर शास्त्री कुलपति रहते हुए विश्वविद्यालय की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे थे और विश्वविद्यालय का माहौल लगातार बिगड़ रहा था। कुलाधिपति द्वारा कुलपति पद से किया गया उनका निलंबन विधि सम्मत है जांच होने पर सभी तथ्य सामने आ जाएंगे।
अब तक 5 कुलपति हुए हैं निलंबित
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का इतिहास रहा है कि यहां पर अब तक प्रोफेसर शास्त्री से पहले चार कुलपति सत्य काम,आरसी शर्मा ,सुभाष विद्यालंकार और डाक्टर धर्मपाल विभिन्न मसलों को लेकर कुलपति पद से बर्खास्त किए गए थे और वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। और अब प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री पांचवें कुलपति हैं जो अपने कार्यकाल पूरा करने से पहले ही निलंबित कर दिए गए।
झगड़े का केंद्र रहा है गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में 1977 में जनता पार्टी की सरकार के समय हरियाणा ,पंजाब ,दिल्ली की आर्य प्रतिनिधि सभाओं की आपसी लड़ाई के कारण यहां पर दो-दो कुलपति तैनात थे और गुरुकुल में हथियारबंद बदमाशों का कब्जा 2 साल तक रहा। 1980 में जब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार बनी, तब प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने यहां पर हस्तक्षेप किया और और विश्वविद्यालय में शांति स्थापित हुई और विश्व विद्यालय की कमान सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आईसीएस बलभद्र कुमार हूजा ने संभाली थी तब विश्वविद्यालय पटरी पर आया था उसके बाद विश्वविद्यालय जमीन घोटाला को लेकर फिर विवाद में फंस गया और अब विश्वविद्यालय नियुक्ति घोटाले को लेकर चर्चा में है।