विश्व धरोहर समिति ने हाल में ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ के ‘खतरे में नहीं होने’ की घोषणा की है। यह निर्णय लेते समय ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आॅफ नेचर’ (आइयूसीएन) तथा यूनेस्को विश्व धरोहर केंद्र के सुझाव की अनदेखी की गई। यह सुझाव आॅस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने प्रवाल की चट्टानों की खराब होती हालत के विश्लेषण के आधार पर तैयार किया था। विश्व धरोहर समिति के इस निर्णय को अपेक्षित माना जा रहा है। आॅस्ट्रेलिया की सरकार ने इसके लिए समिति के सदस्यों की लॉबिंग की थी, जैसा कि वह पहले भी करती आ रही थी। समिति के 21 सदस्यों में से अधिकतर में इस बात को लेकर सहमति थी कि इस समय खतरे की सूची न बनाई जाए।
इसके विपरीत आॅस्ट्रेलिया से अनुरोध किया गया था कि वह ‘रीफ’ के लिए यूनेस्को/आइयूसीएन निगरानी अभियान में शामिल हो और फरवरी 2022 तक रिपोर्ट पेश करे। इस निर्णय से संकट केवल टल गया है, समाप्त नहीं हुआ। इससे उस अकाट्य साक्ष्य में परिवर्तन नहीं होता कि ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहे हैं। ‘कोरल ब्लीचिंग’ और समुद्री गर्मलहर का इस पर लगातार प्रभाव पड़ रहा है। रीफ को ‘खतरे की सूची’ में शामिल करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं और इसमें अगले एक साल तक सुधार नहीं होने वाला।
पिछले महीने विश्व धरोहर समिति ने रीफ को खतरे की सूची में डालने के लिए अपना मसविदा निर्णय जारी किया जिसमें उन कारणों का उल्लेख किया गया जिसकी वजह से रीफ को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली थी और अब इसमें कमी आ रही है। इसमें जल प्रदूषण और कोरल ब्लीचिंग शामिल है। मसौदा निर्णय में इस पर चिंता व्यक्त की गई थी कि आॅस्ट्रेलिया ने ‘रीफ 2050’ योजना के मुख्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया। इसके जवाब में सरकार ने कहा था कि यह एकतरफा निर्णय है और यूनेस्को सचिवालय ने यह सुझाव देते समय नियत प्रक्रिया का पालन नहीं किया। यह भी कहा गया था कि मसौदा सुझाव देते समय चीन ने हस्तक्षेप किया था। मसौदा निर्णय आने के बाद इसे बदलने के लिए अभियान चलाया गया। पर्यावरण मंत्री सुसन ले ने कई देशों के राजदूतों से मुलाकात की।
सरकार ने 13 देशों और यूरोपीय संघ के राजदूतों को आमंत्रित किया और कहा कि पिछले दो साल में प्रवाल की चट्टानों में वृद्धि हुई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था जब आॅस्ट्रेलिया ने विश्व धरोहर समिति के सदस्यों को अपने पक्ष में करने के लिए ‘लॉंिबग’ की। वर्ष 1999 में काकाडु राष्ट्रीय उद्यान को खतरे की सूची में डालने के दौरान भी आॅस्ट्रेलिया की सरकार ने इसका विरोध किया था।
क्या है ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ : ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ प्रवाल की चट्टान (रीफ) धरती पर सबसे बड़े संरक्षित समुद्री क्षेत्रों में से एक है। चूंकि आॅस्ट्रेलिया प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में विश्व में अग्रणी देशों में से एक है और अन्य देशों के मुकाबले जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने की अधिक क्षमता रखता है, इसलिए आॅस्ट्रेलिया द्वारा की गई कार्रवाई पर सबकी नजर रहना लाजमी है। कल रात लिए गए निर्णय में जलवायु परिवर्तन मुख्य मुद्दा था। सदस्य इस पर सहमत थे कि जलवायु परिवर्तन न केवल ग्रेट बैरियर रीफ के लिए बल्कि अन्य विश्व धरोहरों के लिए भी सबसे बड़ा खतरा है। स्पष्ट है कि समिति ने निर्णायक फैसले लेने की बजाय अपने सिर से बला को टालने का काम किया है।
विश्व धरोहर समिति ने पिछले महीने ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को खतरे की सूची में डालने के लिए अपना मसविदा निर्णय जारी किया, जिसमें उन कारणों का उल्लेख किया गया जिसकी वजह से रीफ को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली थी और अब इसमें कमी आ रही है। इसमें जल प्रदूषण और ‘कोरल ब्लीचिंग’ शामिल है। मसविदा निर्णय में इस पर चिंता व्यक्त की गई थी कि आॅस्ट्रेलिया ने ‘रीफ 2050’ योजना के मुख्य लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में पर्याप्त काम नहीं किया। अब समिति ने ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को खतरे में नहीं होने की घोषणा की है। इस पर कई सवाल उठ रहे हैं।