भारत सरकार ने गेहूं के बाद चीनी के निर्यात पर रोक लगा दी है और अब चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाने की तैयारी चल रही है। हालांकि, चावल को लेकर उतनी तेजी से फैसला नहीं लिया जाएगा, जितना कि गेहूं और चीनी के मामले में लिया गया था। सरकार और चावल के कारोबार से जुड़े जानकारों का कहना है कि देश में अभी चावल का पर्याप्त भंडार है और धान की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम है।

भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत से 150 से अधिक देशों को चावल का निर्यात किया जाता है। सरकार ने 14 मई को गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। रूस और यूक्रेन में चल रही जंग के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की कीमत में काफी तेजी आई है। इस कारण देश में भी गेहूं की कीमतें काफी बढ़ गई। कीमतों को काबू में करने के लिए सरकार ने इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद ही सरकार ने चीनी के निर्यात को भी सीमित कर दिया। इस साल देश से चीनी के निर्यात में काफी तेजी आई, जिससे घरेलू बाजार में चीनी के कीमत में तेजी आ रही थी।

इसके बाद सरकार ने चीनी निर्यात को 100 लाख टन तक सीमित करने का फैसला किया। सरकार का कहना है कि चीनी की बढ़ती कीमत को रोकने और देश में इसकी सुचारू आपूर्ति जारी रखने के लिए यह फैसला लिया गया। यह पाबंदी एक जून से अगले आदेश तक लागू रहेगी। चीनी मिलों और निर्यातकों को एक जून के बाद निर्यात के लिए सरकार से निर्यात (एक्स पोर्ट रिलीज आर्डर के रूप में) मंजूरी लेनी होगी।

चावल का भंडार

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से देश में चावल का पर्याप्त भंडार है। जरूरत से ज्यादा स्टाक है। इसकी कीमत बढ़ने या निर्यात के लिए उपलब्धता को लेकर कोई चिंता नहीं है। इसलिए अभी चावल के निर्यात पर तत्काल रोक लगाने की कोई योजना नहीं है। कोई स्थिति सामने आने पर फैसला लिया जाएगा। वित्त वर्ष 2022 में देश से चावल का निर्यात 2.12 करोड़ टन पहुंच गया, जो उससे पिछले साल के दौरान 1.78 करोड़ टन रहा था। आल इंडिया राइस एक्सपोटर्स एसोसिएशन के आंकड़ें हैं कि निर्यात बढ़ने के बावजूद चावल की कीमत में गिरावट आ रही है।

इसकी वजह यह है कि भारत में इसका बहुत बड़ा भंडार है। फूड कारपोरेशन आफ इंडिया (एफसीआइ) खरीद बढ़ा रही है। एफसीआइ के पास चावल और धान का 6.622 करोड़ टन का भंडार है, जबकि उसका लक्ष्य 1.358 करोड़ टन है। जानकारों के मुताबिक, यूक्रेन संकट के कारण दुनिया में गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ है, लेकिन चावल के उत्पादन पर असर नहीं पड़ा है।

चीनी का हाल

गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के बाद सरकार ने चीनी के निर्यात को 100 लाख टन तक सीमित करने का फैसला किया है। सरकार का कहना है कि चीनी की बढ़ती कीमत को रोकने और देश में इसकी सुचारू आपूर्ति जारी रखने के लिए यह फैसला लिया गया है। यह पाबंदी एक जून से अगले आदेश तक लागू रहेगी। चीनी मिलों और निर्यातकों को एक जून के बाद निर्यात के लिए सरकार से निर्यात के लिए मंजूरी लेनी होगी।

देश में जिस तरह से चीनी के दाम बढ़ रहे थे, उससे ये कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार देर सबेर इसके निर्यात पर पाबंदी लगा सकती है। चीनी के निर्यात में छह साल में पहली बार रोक लगाई गई है। सरकार अपने पास कम से कम दो से तीन महीने का अतिरिक्त चीनी भंडार रखना चाहती है ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। मौजूदा साल में 90 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए करार किए गए हैं, जबकि इसमें से 82 लाख टन चीनी मिलों से निर्यात के लिए भेजी जा चुकी है। करीब 78 लाख टन चीनी का निर्यात किया जा चुका है।

कीमत और रोक का असर

अभी देश में चीनी की कीमत थोक बाजार में 3150 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल है। खुदरा बाजार में कीमत 36 से 44 रुपए किलो चल रही है। ज्यादा निर्यात के कारण देश में चीनी की कीमत में तेजी आने लगी थी। यही कारण है कि सरकार को इसके निर्यात पर पाबंदी लगाने का फैसला किया। हालांकि सरकार ने साफ किया है कि यह पाबंदी अंतरराष्ट्रीय करार (सीएक्सएल और टीआरक्यू) के तहत यूरो पीय संघ और अमेरिका को निर्यात की जा रही चीनी पर लागू नहीं होगी।

भारत से सबसे ज्यादा चीनी इंडोनेशिया, अफगानिस् तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया और अफ्रीकी देश खरीदते हैं। इंटरनेशनल शुगर आर्गनाइजेशन के मुताबिक, दुनिया में चीनी निर्यातक पांच शीर्ष देश हैं। ये हैं- ब्राजील, थाईलैंड, भारत, आस्ट्रेलिया और मेक्सिको। ब्राजील और थाईलैंड में मौसम की मार (कम बारिश और ओला वृष्टि) की वजह से गन्ने का कम उत्पादन हुआ।इस वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 100 लाख टन की कमी आई है। इस कमी को भारत के चीनी निर्यातकों ने भुनाने की कोशिश की। दूसरे, उत्पादन में कमी आने की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम भी बढ़े हैं। देश में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक चीनी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य हैं। इन तीन राज्यों में देश की कुल चीनी का 80 फीसद उत्पादन होता है।

महंगाई पर असर

देश में खुदरा महंगाई सात फीसद के पार है। इससे निपटने के लिए सरकार कई फैसले ले रही है। केंद्र सरकार ने सबसे पहले गेहूं के निर्यात को रोका, क्योंकि आटे की कीमत घरेलू बाजार में बढ़ रही थी। इसके बाद पेट्रोल और डीजल के उत्पाद शुल्क में कटौती की गई। इसी तरह इसी तरह से सरकार ने सालाना 20-20 लाख टन कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात पर सीमा शुल्क और कृषि अवसंरचना उपकर को मार्च, 2024 तक हटाने की घोषणा की है। जानकारों के मुताबिक, फौरी तौर पर असर भले न दिखे, अगले छह आठ महीनों में प्रभाव सामने आएगा। हालांकि, माना यह भी जा रहा है कि अगले एक साल तक खुदरा महंगाई दर छह फीसद से कम नहीं होने वाली।

जानकारों के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर में खाने की वस्तुओं का योगदान तकरीबन 45 फीसद होता है और पेट्रोल डीजल का 15 फीसद। दोनों मिला कर देखें तो इनका योगदान लगभग 60 फीसद हुआ। ऐसे में खाने-पीने की चीजों के दाम नियंत्रित करने से खुदरा मुद्रास्फीति कम की जा सकती है। यही कारण है कि सरकार ने पेट्रोल-डीजल, सोयाबीन, सूरजमुखी तेल, गेहूं और चीनी के संदर्भ में फैसले लिए।

क्या कहते हैं जानकार

भारत की खाद्य सुरक्षा के अलावा, भारत सरकार पड़ोसियों और कमजोर देशों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। गेहूं और चीनी के निर्यात पर नियंत्रण आदेश तीन मुख्य उद्देश्यों को पूरा करता है। यह देश के लिए खाद्य सुरक्षा के साथ ही, संकट में अन्य लोगों की मदद करने और आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की विश्वसनीयता भी बनाए रखता है।

  • बीवीआर सुब्रमण्यम, केंद्रीय वाणिज्य सचिव

जो घोषणाएं की गई हैं, उनका फौरी असर जनता तक नहीं दिखेगा। कम से कम छह-आठ महीने लगेंगे। एक तो पेट्रोल-डीजल के मामले में देखना होगा कि तेल कंपनियों का रवैया क्या होता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हुई कीमतों से क्या वे अपना फायदा बढ़ाएंगी या जनता तक फायदा पहुंचेगा। इसी तरह गेहूं, चीनी या चावल का मामला है। देखना होगा, स्टाकिस्ट क्या रवैया अपनाते हैं।

  • सुभाष चंद्र गर्ग, पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव