केंद्र सरकार ने करीब तीन महीनों में 10,000 इलेक्टोरल बॉन्ड छापे हैं और एक की कीमत 1 करोड़ रुपए है। सूचना के अधिकार से यह बड़ा खुलासा हुआ है। भारतीय स्टेट बैंक ने 2 आरटीआई के जवाब में बताया कि 1 अगस्त से 29 अक्टूबर के बीच 10,000 चुनावी बॉन्ड प्रिंट किए गए। हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनावों के लिए चुनावी बॉन्ड की किश्त की 1 अक्टूबर से 10 अक्टूबर के बीच बिक्री की गई थी।
कन्हैया कुमार की आरटीआई के जवाब में एसबीआई ने बताया कि सरकार ने आखिरी बार 2019 में चुनावी बॉन्ड छापे थे। उस समय नासिक में इंडिया सिक्योरिटी प्रेस में अलग-अलग मूल्य के 11,400 करोड़ रुपये के बॉन्ड प्रिंट किए गए थे।
पिछले कुछ वर्षों में, 1 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहे हैं। एसबीआई के जवाब के मुताबिक, अब तक बेचे गए कुल इलेक्टोरल बॉन्ड की कीमत का करीब 94 फीसदी 1 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड के रूप में रहा है। बता दें कि 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये और 10 लाख रुपये मूल्यवर्ग के चुनावी बॉन्ड भी शामिल हैं।
एसबीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए, कुमार ने कहा कि सरकार ने एक करोड़ रुपए के नए 10,000 इलेक्टोरल बॉन्ड प्रिंट किए थे। हालांकि, इनमें से जुलाई में एक किश्त की बिक्री के बाद समान मूल्यवर्ग के 5,068 बॉन्ड बिना बिके पड़े थे। 2018 में योजना की शुरुआत के बाद से, सरकार ने अब तक 1 करोड़ मूल्यवर्ग के 24,650 बॉन्ड छापे हैं, जिनमें से 10,108 की बिक्री हुई है।
19 अगस्त को, इंडिया सिक्योरिटी प्रेस ने आरटीआई कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) को अपने जवाब में कहा कि सरकार ने अब तक चुनावी बॉन्ड की छपाई पर 1.85 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। उस समय छापे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की संख्या 6,64,250 थी। कुमार को एसबीआई की तरफ से आरटीआई के जवाब में दी गई जानकारी के मुताबिक, हाल ही में छपे 1 करोड़ मूल्यवर्ग के 10,000 बॉन्ड इसमें शामिल नहीं थे।
केंद्रीय सूचना आयोग ने 16 जून को इंडिया सिक्योरिटी प्रेस को बत्रा को चुनावी बॉन्ड की छपाई की लागत और उससे जुड़ी लागत का ब्योरा उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। सरकारी प्रेस ने पहले बत्रा को यह कहते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया था कि इसके खुलासे से देश के आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।