जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगने के आसार प्रबल हैं। गुरुवार को राज्यपाल एनएन वोहरा ने उमर अब्दुल्ला की ओर से उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी से मुक्त करने के लिए कहे जाने के बाद उत्पन्न राजनीतिक गतिरोध पर केंद्र को रिपोर्ट भेजी।
सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति को भेजी रिपोर्ट में समझा जाता है कि दो या तीन सुझाव दिए हैं। इनमें निश्चित समय के लिए राज्यपाल शासन लगाने का विकल्प शामिल है क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद आए खंडित जनादेश के चलते कोई भी पार्टी सरकार गठन के लिए अभी तक आवश्यक संख्याबल नहीं जुटा पाई है।
राज्यपाल ने यह रिपोर्ट तब भेजी है जब एक दिन पहले उमर ने बुधवार रात लंदन से लौटने के बाद दिल्ली में उनसे मुलाकात की थी और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पद से हटने की अपनी मंशा जताई थी। उमर अपने बीमार अभिभावकों को देखने के लिए 12 दिन के लिए लंदन गए थे। विधानसभा चुनाव के 23 दिसंबर को आए नतीजों में उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस की पराजय के बाद उमर ने 24 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया था। तब उनसे कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम देखने को कहा गया था। विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस को महज 15 सीटें मिली थीं। 87 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटों के साथ पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई जबकि भाजपा को 25 सीटें मिलीं।
खंडित जनादेश के बाद भाजपा सरकार गठन के लिए नेकां व पीडीपी दोनों से संपर्क बनाए हुए है लेकिन गतिरोध समाप्त करने के लिए अभी तक कुछ भी सामने नहीं आ पाया है। नेकां भाजपा के साथ हाथ मिलाने के पक्ष में प्रतीत नहीं हो रही है जबकि पीडीपी को भगवा पार्टी के साथ हाथ मिलाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
नई सरकार का गठन 19 जनवरी से पहले किया जाना जरूरी है जब मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। तब तक नई सरकार का गठन नहीं होने की स्थिति में राज्यपाल शासन अपरिहार्य लग रहा है। उमर के इस फैसले का अर्थ होगा कि इस प्रकार का शासन पहले लागू किया जाए।
समझा जाता है कि उमर ने वोहरा को बताया कि उनके लिए कार्यवाहक मुख्यमंत्री होते हुए जम्मू में सीमा के पास रहने वाले लोगों को राहत मुहैया कराना संभव नहीं है जहां लगातार हो रही गोलाबारी के कारण मकानों को क्षति हुई है और लोग सुरक्षित स्थानों को पलायन कर रहे हैं। वह घाटी में बाढ़ से प्रभावित हुए लोगों की मदद करने की स्थिति में नहीं हैं जिन्हें भीषण जाड़े का सामना करना पड़ रहा हैं।
सूत्रों ने बताया कि उमर ने राज्यपाल को यह अवगत कराया कि भारत व पाकिस्तान के बलों के बीच तनाव बढ़ने से नियंत्रण रेखा व अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास करीब 10 हजार लोग विस्थापित हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक उमर ने दलील दी कि राज्य में अक्तूबर के अंतिम हफ्ते से ही प्रभावी रूप से सरकार नहीं थी जब विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू हो गई।
उमर ने बुधवार को ट्वीट किया, ‘मुझे एट द रेट आफ जेकेपीडीपी से द्वेष नहीं है जिसे केंद्रीय शासन की अपरिहार्य स्थिति की सफाई देनी होगी जबकि उनके पास एट द रेट आफ जेकेएनसी के समर्थन की भरोसेमंद पेशकश है।’ राज्य में पिछले 12 साल में दूसरी बार ऐसा गतिरोध उत्पन्न हुआ है। इसी प्रकार की स्थिति तब उत्पन्न हुई थी जब फारुक अब्दुल्ला ने तत्कालीन राज्यपाल जीसी सक्सेना से उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर मुक्त करने को कहा था क्योंकि पीडीपी व कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए संख्याबल जुटाने में काफी समय लग रहा था।
तत्कालीन प्रधाानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के हस्तक्षेप के बावजूद अब्दुल्ला ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने से इनकार कर दिया था और 18 अक्तूबर 2002 से एक पखवाड़े के लिए राज्यपाल शासन लगा दिया गया था।