सरहद पार से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार ने पश्चिमी मोर्चे पर 1000 करोड़ की मल्टी लेयर सिक्योरिटी स्थापित करने पर काम कर रही है। भारत जमीन पर ही नहीं पानी के अंदर भी घुसपैठ को रोकने की दिशा में काम कर रहा है। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक यह स्वदेशी सेंसर तकनीक पानी के नीचे घुसपैठियों का पता लगाने वाली तकनीकी ग्रिड का हिस्सा होगी। इस तकनीक के तहत लेजर वॉल्स (लेजर बीम्स की दीवार), ग्राउंड सेंसर और थर्मल इमेजर्स को नदियों में अंतराल पर लगाया जाएगा।
सरकार ने यह फैसला 18 सिंतबर को उरी में हुए आतंकी हमले के बाद लिया। इस हमले को अंजाम देने वाले चारों आतंकी पाकिस्तान की ओर से सीमा पार करके आए थे। एक अधिकारी के मुताबिक सुरक्षा से जुड़े लोगों का मानना है कि पानी के भीतर घुसपैठ की स्पष्ट संभावना है, जिसके चलते भारत ने बाड़ (Fences) और अन्य स्थलीय गढ़ को मजबूत करने का फैसला किया है। उन्होंने बताया कि पानी में तैरना और डाइविंग जैसी चीजें आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की ट्रेनिंग का हिस्सा है, जो कि वह अपने सदस्यों को देते हैं। ऐसे में आतंकी भविष्य में इस तरीके से घुसपैठ करने का प्रयास कर सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर पिछले साल सीमा पार से हेरोइन की एक खेप ट्यूब में भरवा कर जलकुंभी के साथ कवर करके भेजी गई थी। यह खेप पानी के अंदर सीमा पार कर गई थी। उन्होंने बताया कि सुरक्षा के लिहाज से गृह मंत्रालय पहले ही कई बॉर्डर प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दे चुका है। उन्होंने बताया कि बीएसएफ लेजर तकनीक को इंफ्रा रेड तकनीक से बदलने पर काम कर रहा है। क्योंकि लेजर की किरणें दिखाई देती है इसलिए इंफ्रा रेड के प्रयोग को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने पर विचार हो रहा है। अधिकारी के मुताबिक मंत्रालय पहले ही पंजाब बॉर्डर पर लगे फेंसिंग और फ्लड लाइट्स को रिपेयर करने की मंजूरी दे चुका है।
गौरतलब है कि 18 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के उरी स्थिति सेना मुख्यालय पर हुए हमले में 19 जवान शहीद हो गए थे, जबकि सेना ने 4 आतंकियों को मौके पर मार गिराया था। इस हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है।