ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022 को लेकर 121 देशों की रैंकिंग लिस्ट जारी की गई है, जिसमें भारत 107 नंबर पर है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अपने पड़ोसी मुल्कों नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान से भी पीछे है। इस रिपोर्ट को लेकर केंद्र का जवाब आया है। सरकार की तरफ से कहा गया कि यह भारत की छवि को खराब करने की कोशिश है। केंद्र का कहना है कि देश की छवि को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में धूमिल करने का प्रयास है, जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा नहीं करता है।
सरकार ने कहा कि हर साल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाते हैं। सालाना गलत सूचना जारी करना ग्लोबल हंगर इंडेक्स की पहचान लगती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ये सूचकांक भुखमरी का गलत मापदंड है और गंभीर कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों से ग्रस्त है। मंत्रालय ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि सूचकांक की गणना के लिए इस्तेमाल किए गए 4 सांकेतकों में से 3 बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं और पूरी आबादी के बारे में नहीं बता सकते हैं।
बयान में कहा गया कि चौथा सबसे महत्वपूर्ण सांकेतक कुपोषित आबादी के अनुमान को सिर्फ 3000 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। मंत्रालय ने कहा कि यह रिपोर्ट जमीनी हकीकत से ही अलग नहीं है, बल्कि इसमें लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को भी जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है। जिस तरह कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने खाद्य सुरक्षा के लिए कदम उठाए थे।
एफएओ का अनुमान गैलप वर्ल्ड पोल के जरिए आयोजित एफआईईएस (खाद्य असुरक्षा अनुभव स्केल) सर्वेक्षण पर आधारित है, जो तीन हजार लोगों पर किया गया। बयान के मुताबिक, इस मामले को जुलाई, 2022 में खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के सामने उठाया गया था और एफआईईएस सर्वेक्षण मॉड्यूल डेटा के आधार पर अनुमानों का उपयोग करने से बचने के लिए कहा गया था क्योंकि उसका सांख्यिकी आउटपुट योग्यता पर आधारित नहीं होगा। मंत्रालय ने कहा कि इस बात का आश्वासन भी दिया गया कि इस मुद्दे पर और काम किया जाएगा। इस तरह के तथ्यात्मक विचारों के बावजूद ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट का प्रकाशन खेदजनक है।
केंद्र ने कहा कि हर साल प्रति व्यक्ति आहार ऊर्जा आपूर्ति, जैसा कि फूड बैलेंस शीट से एएफओ द्वारा अनुमान लगाया गया है, वह देश में प्रमुख कृषि वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि के कारण बढ़ रही है, इसलिए कुपोषण का स्तर बढ़ने की देश में कोई वजह नहीं होनी चाहिए।