नई दिल्ली/अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति जमीरूद्दीन शाह के इस बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया कि पुस्तकालय में स्नातक की छात्राओं को प्रवेश की अनुमति देने के बाद ‘‘अधिक संख्या’’ में लड़के आने लगेंगे। उनके इस बयान के बाद सरकार ने आज विश्वविद्यालय से स्पष्टीकरण मांगा है। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि यह ‘‘बेटियों के अपमान’’ की तरह है।

स्नातक की लड़कियों पर प्रतिबंध को लेकर विवाद के घेरे में आए एएमयू ने जगह की कमी का हवाला दिया और ‘‘लैंगिक भेदभाव’’ के आरोपों से इंकार किया। इसका गंभीर संज्ञान लेते हुए मानव संसाधन मंत्रालय ने एएमयू के उपकुलपति जमीरूद्दीन शाह से जवाब मांगा है और ईरानी ने कहा कि शिक्षा एवं संवैधानिक अधिकार सभी के लिए बराबर है ।

ईरानी ने दिल्ली में एक समारोह के इतर कहा, ‘‘…ऐसी खबर है जो महिला के तौर पर आहत करती है और आंदोलित भी करती है कि जब हमें स्वतंत्रता मिली तो माना जाता था कि शिक्षा एवं संवैधानिक अधिकार सभी के लिए बराबर है और अब हमें ऐसी खबरें मिल रही हैं जो बेटियों के अपमान की तरह है।’’
आलोचनाओं का सामना कर रहे उपकुलपति ने जवाब दिया कि परिसर के बाहर महिला कॉलेज में पढ़ रही छात्राओं को 1960 में मौलाना आजाद पुस्ताकलय की स्थापना के समय से ही प्रवेश प्रतिबंधित है और यह ‘‘नया प्रतिबंध नहीं’’ है।

उन्होंने कहा कि 4000 से ज्यादा स्नातक की छात्राएं हैं और जगह की कमी के कारण वे पुस्तकालय में नहीं बैठ सकतीं। उनकी इस टिप्पणी का कई नेताओं, कार्यकर्ताओं और विद्यार्थियों ने कड़ा विरोध किया कि अगर लड़कियों को अनुमति दी जाती है तो पुस्तकालय में ‘‘अधिक लड़के’’ आएंगे।

शाह ने कहा कि ‘‘मौलाना आजाद पुस्तकालय की स्थापना के समय से ही सभी परास्नातक लड़कियों एवं महिला शोधार्थियों को यहां आने की अनुमति है।’’ उन्होंने लैंगिक भेदभाव के आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें ‘‘न केवल भ्रामक बल्कि शरारतपूर्ण और मानहानिपूर्ण’’ करार दिया।

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने उपकुलपति की टिप्पणी को ‘‘भयावह’’ एवं ‘‘स्तब्धकारी’’ करार दिया जबकि मंत्रालय में नये राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां ‘‘सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं’’ है।

हेपतुल्ला ने कहा, ‘‘मैं इसे भयावह मानती हूं खासकर मौलाना आजाद की जयंती के अवसर पर। आजाद ने 62 वर्ष पहले लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया था। मैं वास्तव में आश्चर्यचकित हूं। आज के दिन किसी संस्थान का प्रमुख इस तरह की बात करे तो यह स्तब्ध करने वाला है।’’
सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि मुद्दे के समाधान के बजाए ‘‘किसी को जाने से (पुस्तकालय में) रोकना ठीक नहीं है। व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि सभी विद्यार्थी पुस्तकालय जाएं और अध्ययन कर सकें।’’

शाह के बयान को ‘‘प्रतिगामी और पुरातन’’ करार देते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने आश्चर्य जताया, ‘‘क्या यह उनके लिए (एएमयू) वैधानिक है कि एक विश्वविद्यालय में वह बिना लैंगिक भेदभाव के किसी भी छात्र को इस तरह की सेवाओं तक पहुंच से रोक दें।’’
कई स्नातक छात्राओं ने पुस्तकालय में प्रवेश की मांग की और कहा कि इस तरह के ‘‘भेदभाव’’ को रोका जाना चाहिए।

उपकुलपति ने कहा कि महिला कॉलेज मुख्य परिसर से दो किलोमीटर से ज्यादा दूर है और सभी स्नातक विद्यार्थियों को ‘‘उनके शीर्ष स्तर के अलग पुस्तकालय’’ में प्रवेश की आजादी है।

उन्होंने कहा कि मौलाना आजाद पुस्तकालय में स्नातक की लड़कियों को भी जाने की अनुमति देने की मांग की गई है लेकिन इसमें पहले से ही भीड़ है।
कुलपति ने कहा कि ‘‘अवसंरचना मुद्दों के सुलझ जाने और लड़कियों के लिए सुरक्षित यातायात की व्यवस्था होने के बाद ही’’ उनकी मांगें मानी जा सकती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अवसंरचना मुद्दे के सुलझने और लड़कियों के सुरक्षित यातायात का प्रबंध होते ही हमें इन लड़कियों को केंद्रीय पुस्तकालय में जाने की अनुमति देने में कोई आपत्ति नहीं होगी।’’

उपकुलपति ने कहा कि उन्हें दुख है कि ऐसी छवि बनाई जा रही है कि ‘‘एएमयू महिलाओं को समान अधिकार देने के खिलाफ है या मेरा लैंगिक भेदभाव वाला रुख है। मैं दोहराना चाहता हूं कि महिला सशक्तीकरण एएमयू की शीर्ष प्राथमिकताओं में है और मुझे सुनिश्चित करना है कि एएमयू की छात्राएं देश के प्रतिभावान विद्यार्थियों से प्रतियोगिता कर सकें।’’

महिला कॉलेज की प्रिंसिपल नईमा खातून ने कहा कि ‘‘यह अनावश्यक विवाद है।’’