उत्तराखंड में तापमान में वृद्धि हो रही है और कार्बन डाइआक्साइड गैस का उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है और आॅक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही नमी भी घट रही है। इस कारण ऋतु परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। जैसे इस बार वक्त से पहले ही उत्तराखंड फूलों की घाटी और अन्य पर्वत मालाओं समेत हेमकुंड घाटी में राज्य पुष्प ब्रह्म कमल के साथ बुरांश और कई अन्य प्रजातियों के फूल खिल गए हैं। उत्तराखंड की फूलों की घाटी विश्व प्रसिद्ध है जिसमें कई प्रजातियों के दुर्लभ पुष्प हैं। तापमान में परिवर्तन के कारण फूलों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं और कई प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं।
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमाच्छादित हिम खण्डों के पिघलने खिसकने और टूटने की प्रक्रिया में भी तेजी आई है उत्तराखंड में लगभग 23 हिमनद हैं जिनमें गंगोत्री, पिंडारी, मिलम ,सतोपंथ , भागीरथी ,खतलिंग, चोराबाड़ी, बंदरपुंछ, काली नामिक हीरामणि, पिनौरा, रालम, पोटिंग, सुन्दरढुंगी, सुखराम, कफनी, मैकतोली,यमुनोत्री, डोरियानी केदारनाथ ,रूद्रप्रयाग, दूनागिरि, बद्रीनाथ आदि शामिल है। ये हिमनद उत्तराखंड के चमोली रुद्रप्रयाग उत्तरकाशी पिथौरागढ़ बागेश्वर आदि पर्वतीय जिलों के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में फैले हुए हैं जिनसे गंगा जमुना अलकनंदा पिंडारी तथा अन्य नदियां निकलती हैं।
उत्तराखंड में दुर्लभ ब्रह्म कमल पुष्प की 28 प्रजाति पाई जाती हैं। ब्रह्म कमल जुलाई के आखिरी सप्ताह या अगस्त के पहले सप्ताह में खिलते हैं परंतु इस बार ब्रह्म कमल तथा अन्य दुर्लभ प्रजाति के पुष्प जून के आखिरी सप्ताह में ही अपनी खुशबू बिखेरने लगे। यह पुष्प गढ़वाल के उच्च हिमालयी क्षेत्र अटला कोटी से लेकर श्री लोकपाल हेमकुंड घाटी तक अपनी महक बिखेर रहे है। ब्रह्म कमल पुष्प उत्तराखंड में पंच केदार, पांगर चुला, भनाई, नंदी कुंड, नीलकंठ, कागभुशंडी, चेनाप घाटी, सतोपंथ, डयाली सेरा, ऋ िष कुंड, सहस्त्र ताल, रुद्रनाथ क्षेत्र में खिलता है।
ब्रह्म कमल और अन्य दुर्लभ प्रजाति के पुष्प पहाड़ों में चार हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर खिलते हैं। ब्रह्म कमल पुष्प भगवान शिव और नंदा देवी को अत्यंत प्रिय है, इसलिए इसका विशेष महत्व है। साथ ही इसके कई औषधीय गुण भी हैं। प्रकृति प्रेमी और भारतीय पर्यावरण संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर्यावरण विज्ञानी प्रोफेसर बीडी जोशी का कहना है कि चार-पांच सालों से उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में लगातार तापमान में वृद्धि हो रही है। यह सब ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है क्योंकि सड़कों का पहाड़ों में लगातार बिछता जाल, पेड़ों का अंधाधुंध कटान और लगातार बिजली के उपकरणों का बढ़ता हुआ प्रयोग वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड गैस का उत्सर्जन बढ़ा रहा है जिससे आक्सीजन की मात्रा लगातार घट रही है।
हिमनद ही नहीं पक्षियों पर भी प्रभाव
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अंतर्राष्ट्रीय पक्षी विज्ञानी डाक्टर दिनेश चंद्र भट्ट का कहना है कि बढ़ते तापमान का प्रभाव केवल उत्तराखंड के विभिन्न हिमनदों पर ही नहीं पड़ रहा है बल्कि फूलों के असमय खिलने और पक्षियों के द्वारा असमय प्रजनन करने और अंडे देने पर भी पड़ रहा है। साथ ही सर्दी काल में प्रवासी पक्षियों के उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र और विभिन्न देशों से मैदानी क्षेत्रों में आने पर भी पड़ रहा है। पहले अक्तूबर में प्रवासी पक्षी उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में आ जाते थे और वे अप्रैल महीने के प्रथम सप्ताह तक रहते थे परंतु अब उनके आने और जाने के क्रम में बदलाव होने की वजह से वे अब नवंबर के प्रथम सप्ताह में आते हैं और मार्च के अंतिम सप्ताह में वापस चले जाते हैं जिससे उनके प्रजनन काल में भी प्रभाव पड़ रहा है।
पर्यावरण विज्ञानी प्रोफेसर आरसी शर्मा का कहना है कि गंगोत्री हिमनद बढ़ते तापमान के कारण 20-22 मीटर लगातार पीछे हटता जा रहा है। इसी तरह पिंडारी हिमनद भी 40 सालों में अपने मूल स्थान से पांच किलोमीटर नीचे खिसका है जो पर्यावरण प्रेमियों के लिए अत्यधिक चिंता का विषय है जबकि उत्तराखंड में वन क्षेत्र 60 फीसद से ज्यादा है उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि उनका महकमा लगातार उत्तराखंड राज्य के वनाच्छादित क्षेत्र में बढ़ोतरी करने की दिशा में कई कदम उठा रहा है वनों के अवैध कटान को रोकने के लिए राज्य सरकार ने कई कड़े कदम उठाए हैं।