वायानाड लैंडस्लाइड हादसे ने कई परिवारों को पूरी तरह तबाह कर दिया है। 300 से ज़्यादा लोगों की जान गई और नुकसान से जुड़े सवाल का जवाब लगातार लंबा होता जा रहा है। कई घर मलबे में दबकर गायब हो गए। गांव के गांव बर्बाद हो गए। स्कूलों की इमारतें चकनाचूर हो गई। अब जो बचा है उसमें सिर्फ चंद उम्मीदें हैं, सरकार से लगाई गई आस है।
केंद्र से लेकर राज्य सरकार ने कई वादे किए हैं। लोगों की बड़ी तादाद अभी भी राहत शिविरों में है। ऐसे वक़्त में कुछ आम से दिखने वाले खास लोग भी सामने आए हैं। जिनके पास पैसा तो उतना नहीं है लेकिन मदद करने का जज़्बा काफी ज़्यादा है। कुछ बच्चे जो अपने गुल्लक तोड़ चुके हैं। कुछ बीमार जो अपनी सर्जरी रोक कर मदद में जुटे हैं। इस आर्टिकल में पढ़िए ऐसे ही लोगों की कहानी।
मुख्यमंत्री रिलीफ़ फंड : अब तक जमा हुए 110.55 करोड़ रुपये
मुख्यमंत्री रिलीफ़ फंड 13 अगस्त तक 110.55 करोड़ रुपये जमा कर लिए हैं। जानकारी यह दी गई है कि डोनेट करने वाले लोगों में दिहाड़ी मजदूर, छात्र, विधवाएं और बुजुर्ग शामिल हैं। ऐसे लोग जो अपनी रोज़ की जरूरतों को कम करते हुए मदद के लिए आगे आ रहे हैं। त्रिशूर के चिय्यारम में कक्षा 7 और एक में पढ़ने वाली दो बहनें– शिवनंदना और शिवन्या– ने अपने माता-पिता को पिछले साल भर में जमा किए 3,050 रुपये दे दिए और कहा कि यह वायनाड के लिए हैं। उनके गुल्लक में जमा पैसा सिर्फ सिक्के थे। जो पूरे साल जमा किए गए।
‘बेटी टीवी और साइकिल खरीदना चाहती थी’
शिवनंदना ने की मां ने बताया, “मेरी बड़ी बेटी एक नया टीवी और छोटी बेटी एक साइकिल खरीदना चाहती थी। लेकिन वे वायनाड में जो कुछ भी देख रही थीं, उससे काफी प्रभावित हुई और शिवनंदना ने कहा कि वह अपना पैसा डोनेट करना चाहती हैं। शिवन्या भी सहमत हो गईं। वे दोनों इस बात पर सहमत हो गईं कि टीवी और साइकिल बाद में खरीदी जा सकती है।”
‘जब से यह हादसा देखा कुछ खाया नहीं जाता’
कन्नूर के पनूर में मछली बेचने वाले 64 वर्षीय एडाथिल श्रीधरन ने मुखमंत्री रिलीफ़ फंड को अपनी कमाई से 53,000 रुपये डोनेट किए हैं। वे कहते हैं, “खाना खाते समय मैं हमेशा टीवी समाचार देखता हूं। यह मेरी रोज़ की आदत है। लेकिन वायनाड त्रासदी की खबर देखने के बाद, मैं कुछ भी नहीं खा सकता, खाना मेरे गले से नीचे नहीं उतरता। एक दिन की कमाई देना कम से कम मैं तो कर ही सकता हूं। वायनाड में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है।”
इस ही तरह तिरुवनंतपुरम के अनाद गांव की मूल निवासी 76 वर्षीय सावित्री एल ने 25,000 रुपए डोनेट किए हैं। यह पैसे उन्होंने अपने पैरों की सर्जरी के लिए अलग रखे थे। वह कहती हैं कि जब मैंने वायनाड की तस्वीरें और वीडियो देखे, तो मुझे लगा कि उनका दर्द मेरे दर्द से कहीं ज़्यादा है। कम से कम मुझे दिन में तीन बार खाना तो मिल ही जाता है। मेरी सर्जरी बाद में हो सकती है।