मुंबई के घोटकोपर में एक विशाल होर्डिंग गिरने की वजह से 14 लोगों की मौत हो गई। मौसम ने तो सिर्फ करवट बदली थी, लेकिन 14 लोगों के लिए वो मौसम काल बनकर आया। देश में बड़ी-बड़ी होर्डिंग एक आम बात है, हर मोड़ पर, हर हाईवे पर, हर दीवार पर ऐसे बड़े-बड़े होर्डिंग दिखाई पड़ जाते हैं। राजनेता का जन्मदिन है, होर्डिंग तुरंत तैयार, सरकार की योजना है, फिर होर्डिंग, कोई नेता किसी क्षेत्र में आ रहा है, उसके लिए अलग होर्डिंग। इसके ऊपर आज के समय में विज्ञापन के लिहाज से भी होर्डिंग ही सबसे बड़ी जरूरत बन गया है।

होर्डिंग सबसे बड़ा बिजनेस- आंकड़े दे रहे गवाही

अब इन होर्डिंग की वजह से क्यों इतने हादसे हो रहे हैं, इसका कारण समझेंगे, लेकिन पहले ये समझना ज्यादा जरूरी है कि आखिर इतने सारे होर्डिंग बाहर दिखाई क्यों देते हैं, आखिर ऐसा क्या कारण है कि सभी को बड़े-बड़े गगनचुंबी होर्डिंग ही चाहिए। Statista ने इसी ट्रेंड को समझने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की थी, उसके जो आंकड़े सामने आए हैं, वो बताते हैं कि देश में Out-of-Home Advertising का चलन काफी ज्यादा बढ़ चुका है।

दिल्ली-NCR और मुंबई सबसे बड़ा मार्केट

Out-of-Home Advertising का मतलब ही होता है कि घर के बाहर आपको जो भी विज्ञापन दिखाए जाते हैं, फिर चाहे वो बिलबोर्ड के फॉर्म में हो या फिर पोस्टर के फॉर्म में, उसे Out-of-Home Advertising की श्रेणी में रखा जाता है। अब विज्ञापन जगत के लोगों का मानना है कि बड़े-बड़े होर्डिंग की वजह से उनके प्रोडक्ट की रीच काफी ज्यादा बढ़ जाती है, कस्टमर उनके प्रोडक्ट को ज्यादा समय तक याद रखता है। इसी वजह से इस साल ये इंडस्ट्री 45.47 बिलियन की होने वाली है, यानी कि 4500 करोड़ से भी ज्यादा का रेवन्यू रहने वाला है। अगर इस इंडस्ट्री को और ध्यान से समझें तो पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर और मुंबई अकेले 48 फीसदी इस बिजनेस का हिस्सा रखती है।

BMC होर्डिंग्स से कितना कमाती है?

बात अगर मुंबई बीएमसी की करें तो राजस्व का एक बड़ा हिस्सा भी उसकी तरफ से इन बोर्डिंग-होर्डिंग के जरिए इकट्ठा किया जाता है। अगर आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो मायानगरी मुंबई में इस समय लीगल 1025 होर्डिंग हैं और बीएमसी को उससे 100 करोड़ का रिवेन्यू मिल रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या मुंबई में सिर्फ 1025 होर्डिंग हैं? इसका जवाब ही बताने के लिए काफी है कि इस समय होर्डिंग बिजनेस में पारदर्शिता की काफी कमी चल रही है।

टारगेट 300 करोड़, और लगेंगे होर्डिंग!

बीएमसी ने तो टारगेट सेट कर रखा है कि इन होर्डिंग-बोर्डिंग से उन्हें कम से कम 200 करोड़ वार्षिक राजस्व प्राप्त हो। बीएमसी का तो प्लान है कि मुंबई में वो डिजिटल होर्डिंग को और ज्यादा तवज्जो दें जिससे उसका राजस्व 300 करोड़ तक पहुंच जाए। अब एक तरफ इन होर्डिंग के गिरने की वजह से लगातार बड़े हादसे हो रहे हैं तो दूसरी तरफ इनकी संख्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। बड़ी बात ये है कि होर्डिंग की समस्या सिर्फ दिल्ली-मुंबई तक सीमित नहीं चल रही है, बल्कि चेन्नई, बेंगलुरु, इंदौर तक खुद को इन गंगनचुंबी होर्डिंग से नहीं बचा पाएं हैं।

कोर्ट की फटकार, नहीं मान रही सरकार

ज्यादा परेशानी वाली बात ये है कि ज्यादातर इलाकों में अवैध तरीके से उन होर्डिंग्स को लगाया गया है, लीगल होर्डिंग्स तो काफी कम दिखाई पड़ती हैं। अब कहा जरूर जा रहा है कि लोग ही ऐसे होर्डिंग को पसंद करते हैं, उनकी वजह से इन्हें लगातार और आकर्षक अंदाज में बनाया जा रहा है। लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि देश की जनता ने ही इन अवैध होर्डिंग को लेकर कोर्ट तक में अपनी आवाज बुलंद की है। साल 2017 में बॉम्मे हाई कोर्ट ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि राजनेताओं और पार्टियों की वजह से कई बार नगर निगम को ही अवैध होर्डिंग के खिलाफ एक्शन लेना मुश्किल हो जाता है। दो साल पहले 2022 में भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने ही नाराजगी जाहिर करते हुए राज्य सरकार के साथ-साथ सभी नगर निगमों से डेटा मांगा था कि आखिर कितने इलीगल होर्डिंग हटाई गई हैं। तब कोर्ट ने ये भी जानना चाहा था कि आखिर लीगल होर्डिंग से कितना पैसा कमाया जा रहा है।

होर्डिंग कब-कब बने मौत का पैगाम?

अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने तो सिर्फ डेटा मांगा था, कर्नाटक हाई कोर्ट ने 2021 में एक आदेश जारी कर कह दिया था कि राजनीतिक दल और नेताओं के अवैध और इलीगल होर्डिंग पब्लिक में नहीं दिखाए जाने चाहिए। कई दूसरे हाई कोर्ट ने भी ऐसे ही आदेश जारी किए हैं, बस सवाल ये उठता है कि आखिर अमल कितनों पर हुआ है? वैसे आंकड़े तो बताते हैं कि अमल बिल्कुल भी नहीं हुआ है, किसी को भी लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है।

हादसामौत
पिंपरी चिंचवाड़ (2023)5
एकाना स्टेडियम (2023)2
जूना बाजार (2018)4
चेन्नई (2019)1

बात 2023 की है जब पुणे के पिंपरी चिंचवाड़ में खराब मौसम की वजह से रावल किवले इलाके में एक होर्डिंग गिर गया था। उस हादसे में पांच लोगों की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हुए थे। इसी तरह से उत्तर प्रदेश के लखनऊ में पिछले साल अटल बिहारी वाजपेई (एकाना) क्रिकेट स्टेडियम में लगा एक होर्डिंग गाड़ी पर गिर गया था। उस हादसे में एक महिला और उसकी बेटी की मौत हो गई थी। इसी तरह 2018 में भी महाराष्ट्र के जूना बाजार में एक बड़ा हादसा हुआ था जब होर्डिंग फ्रेम गिरने से 4 लोगों ने दम तोड़ दिया। अब सरकारें मुआवजा दे देती हैं, कोर्ट तुरंत उन मामलों का संज्ञान लेता है, लेकिन जमीन पर स्थिति नहीं बदलती।

कागजी साबित हो रहे होर्डिंग के नियम?

वैसे घाटकोपर में जो हादसा हुआ है, वहां तो रिकॉर्ड ऊंचा होर्डिंग लगा था जिसका लिम्का बुक रिकॉर्ड तक में दर्ज है। लेकिन बीएमसी के ही नियम कहते हैं कि होर्डिंग की ऊंचाई जमीन से अधिकतम 40 बाय 40 होनी चाहिए। अगर छत पर होर्डिंग लगाना है तो उसकी लेंथ 60 बाय 40 रह सकती है, वहीं अगर जमीन से 75 फीट से भी अधिक ऊंचे बोर्ड लगाने हैं तो उसकी अनुमति सिर्फ विशेष स्थिति में ही दी जाएगी। असल में जो सरकारें होती हैं, वो होर्डिंग की जिम्मेदारी नगर निकाय को सौंप देती हैं, वो नगर निकाय फिर एजेंसियों को जिम्मेदारी देती है जो होर्डिंग के लिए जगह मुहैया करवाती हैं। यानी कि सरकार से ज्यादा नगर निकाय ही होर्डिंग लगाने-हटाने के लिए जिम्मेदार होता है।

अब अगर अभी भी प्रशासन की आंखें खुल जाएं और वो पब्लिसिटी से ज्यादा लोगों की जान को तरजीह दे तो शायद मौत की गारंटी बने ये होर्डिंग समय रहते सड़कों से हट जाएंगे और फिर खराब मौसम की वजह लोगों की जान नहीं जाएगी। इसके ऊपर शहरी इलाकों में अतिक्रमण भी कम होगा, सुंदरता बढ़ेगी और विजुएल पॉल्यूशन घट जाएगा।