राजधानी दिल्ली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान आपने ‘भारत मंडपम’ का काफी जिक्र सुना होगा। इससे पहले इसे प्रगति मैदान कहा जाता रहा है। मोदी सरकार ने इस जगह को G20 समिट के लिए बेहतर तरीके से तैयार करवाया है। इसके पीछे दिमाग लगा है आर्किटेक संजय सिंह का, तो हमारे लिए यहा जानना दिलचस्प होगा कि संजय सिंह कौन हैं और उनकी कलाकारी की क्या चर्चा है? 

कला, शिल्प, संस्कृति का खास ध्यान : संजय सिंह की कलाकारी 

भारत मंडपम को बनाए जाने में जिस कलाकारी का खास ख्याल रखा गया है उससे विदेशी मेहमान काफी प्रभावित हुए हैं। भारत के इतिहास, संस्कृति, शिल्पकारी का इसमें खास ख्याल रखा गया है। इसके पीछे संजय सिंह का दिमाग है। वह एक बेहतर आर्किटेक हैं।  उनका कहना है कि भारत मंडपम को डिजाइन करने के पहले दिन से पूरे प्रोजेक्ट में आर्ट का खासा ख्याल रखा गया है, जिसमें भारत के शिल्प, संस्कृति और जीवन जीने के तरीके को बारीकी से लिया गया है। संजय सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि उनका उद्देश्य भारत मंडपम को इस तरह से तैयार करना था कि जिससे भारत की तस्वीर खुलकर सामने आ जाए। 

गंगा-यमुना का चित्र है भारत मंडपम 

संजय सिंह ने अपने शोध का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमें एक रेखाचित्र मिला जिसमें दो मछलियाँ पानी की धारा से जुड़ी हुई हैं। हमने ध्यान लगाया कि यह  दो मछलियाँ गंगा और यमुना का प्रतीक हैं जबकि जलधारा जीवन का अमृत है। भारत मंडपम की संरचना इसी रेखाचित्र पर आधारित है।

उन्होने कहा,”हमने इमारत को अण्डाकार आकार दिया है। इसलिए आपको वहां कोई खुरदुरा किनारा या मजबूत कोना नहीं मिलेगा। आप किसी भी बिंदु से देखें, इमारत दोनों तरफ समान रूप से दिखाई देगी, बिल्कुल यमुना के पानी की तरह। हमने इमारत को 6 मीटर के पोडियम तक बढ़ा दिया है। मंच के दोनों ओर एक रिट्रीट लाउंज, एक चाय घर और एक व्यापार केंद्र है। तो अगर आप गौर से देखेंगे तो पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर यमुना की लहर की तरह ऊपर और नीचे जाता हुआ नजर आएगा।”

भारत का सबसे बड़ा झूमर

भारत मंडपम में भारत का सबसे लंबा झूमर लगा है। संजय सिंह का कहना है कि भारत सरकार के साथ सार्थक बातचीत के बाद 2016 में भारत मंडपम के निर्माण का काम शुरू किया गया था।

पीएम मोदी क्या चाहते थे? 

संजय सिंह ने कहा, “प्रधानमंत्री इस बारे में बहुत क्लियर थे कि वह क्या चाहते हैं। उनका कहना बहुत स्पष्ट था कि इमारत एक प्रतिष्ठित मील का पत्थर होनी चाहिए जो विश्व स्तर पर बुनियादी ढांचे के साथ मुक़ाबला कर सके और देश के लिए गर्व का विषय बन सके।”