नई दिल्ली में जी20 के विदेश मंत्रियों की बैठक, उसके बाद क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक और इसी दौरान रायसीना डायलाग में विदेशी अतिथियों के जमावड़े में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के कई अहम मुद्दे उठे। तीनों बैठकों में वक्ताओं ने जो कहा उससे स्पष्ट हो गया कि यूक्रेन युद्ध और रूस, पश्चिमी देश और चीन के समीकरणों को लेकर भारत के रुख की जमकर समीक्षा की गई है। भारत को केंद्र में रखकर बातें हुई हैं।

इन बैठकों में तमाम कूटनीतिज्ञ भारतीय नीति-नियंताओं की मंशा भांपने की कवायद में जुटे नजर आए। सभी को यह सवाल मथता रहा कि भारत महाशक्तियों के बीच किस तरह से संतुलन कायम कर पाता है। दरअसल, दो मार्च को जी20 के विदेश मंत्रियों की बैठक के नतीजे सकारात्मक नहीं रहे। यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर रूस और चीन के अड़ जाने से साझा बयान जारी नहीं हो सका। हालांकि, तीन मार्च को क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा बयान जारी हुआ। बयान में क्वाड समूह ने एक स्वतंत्र और समावेशी हिंद प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

कूटनीतिक भरपाई

क्वाड की बैठक में हिंद प्रशांत क्षेत्र में मौजूदा स्थिति की व्यापक समीक्षा की गई, जिसके बाद मंत्रियों ने कहा कि वे सभी कानून के शासन, संप्रभुता, प्रादेशिक अखंडता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का मजबूती से समर्थन करते हैं। क्वाड के विदेश मंत्रियों में भारत के एस जयशंकर, अमेरिका के एंटनी ब्लिंकेन, जापान के योशिमासा हायाशी और आस्ट्रेलिया की पेनी वोंग शामिल थे।

इन देशों ने यूक्रेन युद्ध से जन्मी स्थिति की तरफ इशारा करते हुए बयान में यह भी कहा गया कि ‘नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और सभी देशों की संप्रभुता, राजनीतिक स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता के सहारे ही टिकी हुई है। हम संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को एकतरफा ढंग से नष्ट करने के प्रयासों को संबोधित करने में सहयोग करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।’

भारत की जिम्मेदारी

यूक्रेन युद्ध का जिक्र करते हुए साझा बयान में कहा गया कि सदस्य देश इस पर सहमत हैं कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करना या इस्तेमाल करने की धमकी देना अस्वीकार्य है। बयान में चीन का जिक्र नहीं किया गया लेकिन रायसीना डायलाग के दौरान सदस्य देशों ने कहा कि क्वाड कोई सुरक्षा और रक्षा का गठबंधन नहीं है, बल्कि विकास और सहयोग का गठबंधन है।

रायसीना डायलाग में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पश्चिमी देशों पर हमला करते हुए कहा कि उन्हीं देशों ने यूक्रेन को जी20 का केंद्रबिंदु बना दिया है, जबकि जी20 जब शुरू हुआ था तब उसका उद्देश्य सिर्फ दुनिया की आर्थिक समस्याओं पर चर्चा करना था। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या पूर्व में कभी जी20 ने इस तरह सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान या युगोस्लाविया के मुद्दे को भी इस तरह उठाया है?

भारत और चीन के बारे में लावरोव का यह कहना अर्थपूर्ण रहा कि दोनों महान देश हैं और रूस चाहता है कि ये दोनों देश दोस्त बन कर रहें। हो सकता है भारत और चीन एक दूसरे से सीधे बातचीत ना करना चाहें, ऐसे में उन दोनों के लिए बीच में रूस का मौजूद रहना शायद बेहतर हो।

जी-20 बैठकों से उम्मीदें

भारत पिछले कुछ साल से खुद को वैश्विक दक्षिण की आवाज उठा रहा है। जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता को भारत बेहतर मौका मान रहा है। दुनिया के 19 सबसे अमीर देश और यूरोपीय संघ की वैश्विक आर्थिक उत्पादन में हिस्सेदारी 85 फीसद है जबकि इन देशों में दुनिया की लगभग 66 फीसद आबादी रहती है।

पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में जी-20 देशों के नेताओं की बैठक के दौरान ही रूस ने यूक्रेन पर ताबड़तोड़ मिसाइल हमले किए थे। इसके बाद जारी साझा बयान में साफ दिखा कि भारत, रूस और चीन इस आक्रमण की खुलकर निंदा करने पर सहमत नहीं थे। युद्ध अभी भी जारी है। शांति वार्ता शुरू होने के संकेत अब भी नहीं मिल रहे हैं। दुनिया अभी भी इस मुद्दे पर बंटी हुई है।

भारत जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता को बेहद गंभीरता से ले रहा है। ऐसे में यह वह सारे प्रयास कर रहा है जिनके जरिए इस बैठक को सफल बनाया जा सके। भारत उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है जो विकासशील देशों के लिए ज्यादा तात्कालिक और अहम हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत को ऐसा कुछ करना होगा कि जी-20 देशों का समूह यूक्रेन युद्ध से आगे देख सके। इस लिहाज से भारत सितंबर में होने जा रही शीर्ष नेताओं की बैठक के लिए माहौल तैयार करने की दिशा में काम में जुटेगा।

यूक्रेन पर चुनौती

यूक्रेन युद्ध के रूप में भारत की जी20 अध्यक्षता के लिए बड़ी चुनौती अब खुल कर सामने आ रही है। वित्त मंत्रियों के बाद विदेश मंत्रियों की बैठक में भी यूक्रेन पर मतभेद हावी रहे और साझा बयान जारी नहीं हो पाया। विदेश मंत्री जयशंकर ने माना कि सदस्य देशों के बीच यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेदों की वजह से ऐसा नहीं हो सका।

लावरोव ने कहा कि साझा बयान पर चर्चा कई मुद्दों पर लड़खड़ाई, जिनमें पिछले साल नार्थ स्ट्रीम को ध्वंस किए जाने की जांच की रूस की मांग शामिल है। चर्चा का नतीजा उस सारांश में बताया गया, जिसे भारत ने जारी किया। जयशंकर ने इस बात को भी रेखांकित किया कि कई विषयों पर बैठक में सहमति भी व्यक्त की गई, विशेष रूप से उन विषयों पर जो सदस्य देशों को जोड़ते हैं।

कई मुद्दे थे जिन पर सहमति थी, जैसे बहुराष्ट्रवाद को मजबूत करना, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन, लिंगभेद, आतंकवाद का मुकाबला, वैश्विक दक्षिण के लिए जरूरी ज्यादातर मुद्दों पर काफी हद तक एक जैसी सोच थी।

क्या कहते हैं जानकार

भारत प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपने रिश्तों को संतुलित रखने की क्षमता पर गर्व करता है। वह एक साथ कई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम है। जी-20 देशों के बीच इस समय जिस स्तर की कड़वाहट और भू-राजनीतिक तनाव है, उस लिहाज से भारत के सामने चुनौतियां हैं।

  • आलोक शील, पूर्व राजनयिक

भारत सरकार अपनी पूरी कोशिश कर रही है कि जी-20 देशों की बैठकें पूरे देश में हों ताकि लोगों को जी-20 सम्मेलन के बारे में पता चल सके। ये सारे प्रयास अच्छे हैं, लेकिन इन प्रयासों से भारत की मूल समस्या हल नहीं हो जाती जो अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को युद्ध के असर से बचाना है।

  • जितेंद्र नाथ मिश्र, पूर्व राजनयिक