प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में पिछले दिनों हुए फेरबदल और विस्तार के बारे में कहा जा रहा है कि मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा के बाद बदलाव किया गया लेकिन यह सिर्फ आधा सच है। स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्रालय से इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्होंने कैबिनेट के अपने अधिकतर साथियों से दूरी बना ली थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय में एचआरडी मंत्रालय का काम देखने वाले अफसरों से भी सीधे मुंह बात नहीं करती थीं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी स्मृति के अक्खड़पन से नाराज थे। कई मौकों पर मीडिया से बात करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के नाम को हटाए जाने से पार्टी के कई नेता हैरान थे।
वहीं नजमा हेपतुल्ला के लिए ईद खुशियों भरी रही। कैबिनेट फेरबदल के दौरान उनका मंत्रालय बरकरार रहा जबकि कहा जा रहा था कि उन्हें हटा दिया जाएगा। नजमा 75 साल से ऊपर हो चुकी हैं और मोदी के मंत्रियों में यह उम्र रिटायरमेंट की है। लेकिन नजमा की सभी वर्गों को खुश रखने की काबिलियत और विवाद व बहस न पड़ने की आदत को ध्यान में रखा गया। इसके चलते उन्हें मंत्री पद पर रखा गया।
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कई लोगों का मानना है कि अरुण जेटली से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय वापस लेना उनके घटते रुतबे का संकेत है। लेकिन सच यह है कि जेटली के पास अब भी काफी काम है। वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के साथ ही वे लगभग 70 प्रतिशत मंत्री समूहों की कमिटियों के मुखिया हैं। उनके पूर्व साथी जयंत सिन्हा को उड्डयन मंत्रालय में भेज दिया गया। लेकिन उनका बदलाव भी उनके खुद के काम या उनकी पत्नी जो कि ग्लोबल निवेशक हैं और कई कंपनियों में बॉर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल, के कारण नहीं हुआ। जयंत को पिता यशवंत सिन्हा की बयानबाजी की कीमत चुकानी पड़ी। यशवंत सिन्हा मोदी सरकार पर लगातार हमले बोल रहे हैं।
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इधर, सदानंद गौड़ा को कानून मंत्रालय से हटाए जाने की वजह उनकी कर्नाटक के प्रति रूचि थी। उनसे कई बार कहा जा चुका था कि वे दिल्ली में रहें लेकिन गौड़ा का समय गृह राज्य कर्नाटक में गुजरता था।