भारत में सरकार के साथ सिस्टम को अपने पीछे लगाकर भागना कितना आसान काम है, यह सामने आया है सीबीआई के हाल ही के एक केस में। दरअसल, एक व्यक्ति जिसे 1999 में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामले में पकड़ा गया था। वह पिछले साल तक अलग-अलग भेष बदल कर पुलिस की पकड़ से बचता रहा। बताया गया है कि इस दौरान उसने सजा से बचने के लिए कभी खुद को कस्टम अधिकारी दिखाया तो कभी किसी मेडिकल कॉलेज का एसोसिएट प्रोफेसर। यहां तक की पुलिस ने जब उसे धर-दबोचा तब भी वह एक मेडिकल कॉलेज में ही प्रोफेसर की नकली पहचान के साथ काम कर रहा था।
सीबीआई ने अभिनव सिंह नाम के इस शख्स को पिछले साल मार्च में ही पकड़ा है। शुक्रवार को सजा सुनाते हुए सीबीआई कोर्ट के जज एसयू वडगांवकर ने उसे 1999 में कस्टम डिपार्टमेंट को 4.28 करोड़ रुपए का चूना लगाने का दोषी पाया। कोर्ट ने सिंह को 9 लाख रुपए का जुर्माना भरने का निर्देश दिया और पकड़े जाने के बाद से उसने जितना समय जेल में बिताया, उसे ही सजा की अवधि तय कर दिया। यानी जेल में 15 महीने तक रखने जाने को ही उसकी सजा मान लिया गया।
बताया गया है कि पिछले साल मार्च में जब सिंह को गिरफ्तार किया गया था, वह तब भी उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित केडी मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहा था। सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि अभिनव सिंह ने 2017 के बाद से मथुरा कॉलेज में काम किया है, जो कि वहां का सबसे बड़ा प्राइवेट मेडिकल संस्थान है। यहां नौकरी के लिए आवेदन करने के दौरान सिंह ने खुद को डॉक्टर राजीव गुप्ता की नकली पहचान दी और पूरे देश के मेडिकल संस्थानों में काम करने से जुड़े दस्तावेज दिए। सिंह ने चालाकी से खुद के लिए आईडी कार्ड तक बनवा लिए और अपने रिश्तेदारों के अमेरिका में होने की बात करता रहा।
अभिनव सिंह के खिलाफ आरोप 1997-98 में लगे थे, जब वे जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट में कस्टम डिपार्टमेंट में बतौर अप्रेजिंग ऑफिसर काम कर रहे थे। 1999 में उनके विभाग ने शिपिंग बिल्स और बैंक डॉक्यूमेंट्स में फर्जीवाड़े के जरिए 4.28 करोड़ रुपए रुपए के भ्रष्टाचार की शिकायत की थी। इसके बाद से ही अभिनव पिछले 20 साल से फरार था। अभिनव के वकील के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों से वे खुद ही अपना केस लड़ रहे थे।