Justice V Ramasubramanian: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के नए अध्यक्ष होंगे। वे जून 2023 में सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। एनएचआरसी अध्यक्ष का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा किया जाता है, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता तथा राज्यसभा के उपसभापति भी शामिल होते हैं।

एनएचआरसी अध्यक्ष का पद 1 जून, 2024 से रिक्त था, जब जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद पद छोड़ दिया था। इसके बाद एनएचआरसी की सदस्य विजया भारती सयानी आयोग की कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं।

कौन हैं जस्टिस रामसुब्रमण्यम (Who Is Justice V Ramasubramanian)?

30 जून 1958 को जन्मे जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने चेन्नई के रामकृष्ण मिशन, विवेकानंद कॉलेज से रसायन विज्ञान में स्नातक किया और फिर मद्रास लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। उन्होंने 16 फरवरी 1983 को बार के सदस्य के रूप में नामांकन कराया और मद्रास हाई कोर्ट में लगभग 23 वर्षों तक वकालत की।

उन्हें 31 जुलाई, 2006 को मद्रास हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में और 9 नवंबर, 2009 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 27 अप्रैल, 2016 से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के लिए हैदराबाद उच्च न्यायालय में उनके स्वयं के अनुरोध पर स्थानांतरित कर दिया गया था।

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आंध्र प्रदेश राज्य के विभाजन और एक अलग हाई कोर्ट के निर्माण के बाद, उन्हें 1 जनवरी, 2019 से हैदराबाद में तेलंगाना हाई कोर्ट के जज के रूप में बरकरार रखा गया। उन्होंने 22 जून, 2019 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें 23 सितंबर, 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और जून 2023 में सेवानिवृत्त हुए।

जस्टिस रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न मामले को लेकर रामसुब्रमण्यम ने क्या कहा था?

नवंबर, 2023 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने सीजेआई रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न की जांच को लेकर कहा था कि लोगों को यह पता होना चाहिए कि हर जांच का उद्देश्य सत्य की खोज करना होता है। लेकिन मुझे लगता है कि हम सत्य की खोज करने के बजाय प्रक्रिया पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। आज, अगर कोई व्यक्ति झूठी कहानी गढ़ सकता है और प्रक्रिया का ध्यान रख सकता है, तो वह झूठ को बढ़ावा दे सकता है। अगर कोई व्यक्ति प्रक्रियात्मक सुरक्षा का ध्यान नहीं रखता है, तो सत्य स्वयं ही शिकार बन जाता है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के मामले में, मैं साहसपूर्वक कहूंगा कि उनकी कोई गलती नहीं थी। कोई नहीं जानता कि सत्य क्या है। सत्य कल्पना से भी अजीब होता है। मैं सत्य जानता हूं। वह निर्दोष हैं। अंग्रेज ने हमें सिखाया कि न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। इसलिए, अब हमारा ध्यान न्याय करने से हटकर यह दिखाने पर केंद्रित हो गया है कि हम न्याय कर रहे हैं। जो व्यक्ति यह दिखाने में सक्षम नहीं है कि न्याय हुआ है, हम उसे अन्याय करने वाला व्यक्ति मान लेते हैं।

जब उनसे पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को अपनी वित्तीय संपत्तियों का खुलासा करना अनिवार्य है, लेकिन शायद ही कोई न्यायाधीश इसे सार्वजनिक रूप से घोषित करता है। ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि मैंने अपनी संपत्ति का विवरण मुख्य न्यायाधीश को दे दिया है। आज भी, मुझे अपनी संपत्ति के बारे में सार्वजनिक रूप से बताए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि, सेवानिवृत्ति की तिथि पर, मेरे पास केवल आवास ऋण के रूप में देयता थी… एक दृष्टिकोण के अनुसार, सार्वजनिक डोमेन में घोषणा के साथ समस्या यह है कि मेरे पति या पत्नी और बच्चों की संपत्ति सार्वजनिक रूप से क्यों जानी जानी चाहिए। यही वह सिद्धांत है जिस पर विरोध है, यही कारण है कि यह अटका हुआ है।

वी. रामसुब्रमण्यम के बड़े निर्णय

2018 में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें बिटकॉइन और एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी में ट्रेडिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने सर्कुलर को रद्द करने वाला फैसला दिया था। जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने अपने एक फैसले में कहा था कि केंद्र सरकार अपने मंत्रियों द्वारा निजी क्षमता में दिए गए बयानों के लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन संसद या राज्य विधानसभाओं में दिए गए बयानों के लिए जिम्मेदार है। जस्टिस रामसुब्रमण्यम पांच-जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 2016 की डिमोनेटाइजेशन योजना की संवैधानिकता को बरकरार रखा था।

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