भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को पूर्व आरबीआई गर्वनर बिमल जालान की अगुवाई में आर्थिक पूंजी के ढांचे पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, जो कि यह सलाह देगी कि आरबीआई को कितनी पूंजी अपने पास रखने की जरूरत है और बाकी बची पूंजी वह सरकार के हवाले कर दे। समिति अपनी पहली बैठक के 90 दिनों के अंदर रिपोर्ट दाखिल कर देगी। बैंक ने कहा, “आरबीआई की केंद्रीय बोर्ड की 19 नवंबर 2018 को हुई बैठक में यह फैसला किया गया कि आरबीआई ने भारत सरकार के साथ परामर्श से आज (बुधवार) एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, जो आरबीआई के आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा करेगी।”

यह मुद्दा सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी का एक अहम मुद्दा बन गया है, जब सरकार ने कहा था कि केंद्रीय बैंक किसी भी अन्य केंद्रीय बैंक की तुलना में बहुत ज्यादा नकदी रिजर्व रख रहा है और उसे पूंजी की भरपूर मात्रा भारत सरकार के हवाले कर देनी चाहिए। यह छह सदस्यीय समिति यह सिफारिश करेगी कि किन आधारों पर आरबीआई जोखिम का आकलन कर यह तय करे कि कितनी पूंजी अपने पास रखनी चाहिए और कितनी सरकार को दे देनी चाहिए।

इस समिति में आरबीआई के उपगर्वनर और पूर्व आर्थिक मामलों के सचिव राकेश मोहन भी उपाध्यक्ष के रूप में शामिल है। अन्य सदस्यों में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग, आरबीआई के उप गर्वनर एन. एस. विश्वनाथन और दो आरबीआई बोर्ड के निदेशक भारत दोषी और सुधीर मनकड हैं।