Manmohan Singh daughter Daman Singh: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनके जीवन से जुड़ी बहुत सारी खबरें लोगों के सामने आई हैं। मनमोहन सिंह अपनी शालीनता और विनम्रता के लिए पहचाने जाते थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि वह अपने घर में ना तो अंडा उबाल सकते थे और ना ही टीवी का स्विच ऑन कर सकते थे। मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर के जीवन से जुड़ी बहुत सारी बातें उनकी बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब ‘Strictly Personal: Manmohan and Gurshararn’ में लिखी हैं।
इस किताब के पब्लिशर Harper Collins India हैं। दमन सिंह ने अपने और अपनी दो बहनों के बारे में भी इस किताब में बताया है।
मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर, भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री जैसे बड़े पदों पर रहे।
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हिंदू कॉलेज में चुनाव हारे मनमोहन सिंह
दमन सिंह मनमोहन सिंह के कॉलेज के दिनों के बारे में किताब में लिखती हैं कि वह हिंदू कॉलेज में पढ़ते थे और इकोनॉमिक्स ऐसा सब्जेक्ट था जो मनमोहन सिंह को काफी पसंद आया। उन्हें गरीबी से जुड़े मुद्दों में काफी दिलचस्पी थी और वह जानना चाहते थे कि कुछ देश गरीब क्यों हैं और कुछ देश अमीर क्यों हैं।
अपने कॉलेज के अंतिम साल में मनमोहन सिंह क्लास के रिप्रजेंटेटिव चुने गए। उनके दोस्तों ने उनसे कहा कि उन्हें छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहिए। मनमोहन सिंह ने चुनाव भी लड़ा लेकिन चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
दमन सिंह किताब में लिखती हैं- हम दोनों ही उनकी पहली राजनीतिक लड़ाई में मिली हार पर खूब हंसते थे।
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यह वह वक्त था जब लंदन जाने वाले छात्र भारतीय हाई कमिशन के जरिए अपने आवेदन भेजा करते थे। अमृतसर में स्थित पंजाब नेशनल बैंक, अकाली ब्रांच ने इस बात को सर्टिफाई किया कि मनमोहन सिंह के पिता की आर्थिक हैसियत अच्छी है और मनमोहन सिंह विदेश में जाने के लिए फिजिकल और मेंटली पूरी तरह फिट हैं।
सुपरवाइजर ने की थी टिप्पणी
दमन सिंह लिखती हैं कि मनमोहन सिंह की महिलाओं के साथ बहुत ज्यादा दोस्ती नहीं थी। मनमोहन के करीबी दोस्त के मुताबिक, एक वक्त ऐसा भी था जब वह एक लड़की के बारे में सोचकर परेशान होते थे। एक बार जब उनके सुपरवाइजर ने कहा कि मनमोहन सिंह का निबंध उतना अच्छा नहीं है जितना अच्छा यह होना चाहिए था तो इस पर मनमोहन सिंह काफी शर्मिंदा हुए और उन्होंने संकल्प लिया कि वह कभी भी अपने गोल से नहीं भटकेंगे।
कोई विशेष पेशा गुरशरण कौर की पसंद नहीं था। वह सिर्फ एक सुंदर पति चाहती थीं, जिसे संगीत पसंद हो, वह गाना भी गाती थीं। मनमोहन सिंह एक अच्छे जीवनसाथी थे और गुरशरण कौर उनकी पसंदीदा लिस्ट में सबसे ऊपर थीं। मनमोहन सोचते थे कि वह बहुत ही भोली-भाली और शर्मीली हैं।
इस मामले में मनमोहन सिंह खालसा कॉलेज के प्रिंसिपल से भी मिलने गए। जब उन्हें बताया गया कि जिस लड़की से वह शादी करना चाहते हैं, वह एक ‘एवरेज स्टूडेंट’ है तो वह संतुष्ट हो गए।
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मेहमान नवाज थे मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंह अपने पिता की तरह ही मेहमान नवाजी में भरोसा रखते थे। मेरी मां दिन भर किचन में काम करती थीं। जब मैंने अपने पिता से गंभीरतापूर्वक पूछा कि क्या उन्हें गुरुशरण कौर के काम के बोझ को देखकर कोई अफसोस होता है तो वह धीमी आवाज में कहते थे- हां। क्या उन्होंने कभी उनकी मदद की, इस सवाल के जवाब में वह कहते थे- हां, मैंने बर्तन धोने में उसकी मदद की थी।
मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय में रहते हुए सरकारी नियमों का सख्ती से पालन करवाया। भाई-भतीजावाद और किसी भी तरह के पक्षपात को लेकर मना किया गया था और वह पारिवारिक मामलों से भी दूर हो गए थे। लेकिन घर में वह पूरी तरह से लाचार थे ना तो वह अंडा उबाल सकते थे और ना ही टीवी चला सकते थे।
कुछ ऐसी वजहें थी जिनके चलते वह अपने चलने की रफ्तार को कंट्रोल नहीं कर पाते थे। एक बार जब वह चलना शुरू करते तो पूरी रफ्तार से आगे बढ़ते जाते। साधारण सी सर्दी भी उनके लिए निमोनिया बन जाती थी और कमर से ऊपर होने वाले किसी भी दर्द को वह हार्ट अटैक जैसा मानते थे।
मनमोहन सिंह की हैं तीन बेटियां
मनमोहन सिंह की तीन बेटियों में सबसे बड़ी बेटी का नाम उपिंदर है। वह सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ी हैं और उन्होंने हिस्ट्री का सब्जेक्ट लिया था। इस पर मनमोहन सिंह ने कहा था कि यह गलत फैसला है।
दमन सिंह लिखती हैं कि उन्होंने 1981 में सेंट स्टीफेंस कॉलेज में मैथ्स को चुना। इससे उनके पिता खुश थे लेकिन इसके बाद जब उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद के लिए आवेदन किया तो उनके पिता खुश नहीं हुए।
मनमोहन सिंह और गुरुशरण कौर की सबसे छोटी बेटी का नाम अमृत (अमू) है। अमृत मनमोहन सिंह के नक्शे कदम पर आगे बढ़ीं। सेंट स्टीफन कॉलेज के बाद उन्हें कैंब्रिज के सेंट जॉन्स से भी स्कॉलरशिप मिली। इसके बाद वह ऑक्सफोर्ड के नफ़ील्ड कॉलेज में गई। लेकिन पीएचडी के बीच में अमू ने अचानक येल में दाखिला ले लिया।
दमन सिंह किताब में बताती हैं कि उनके पिता के दोस्त अपने बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए भेजते रहे लेकिन चाहे वह कितने भी व्यस्त हों, वह हमेशा समय निकालकर बच्चों को समझाते थे।
दमन सिंह बताती हैं कि हम तीनों ही बहनें अपने धर्म के बारे में बहुत कम जानते हुए पली-बढ़ीं। एक वक्त हमने कड़ा पहनना भी छोड़ दिया था, हमारे लिए सिख धर्म का मतलब मुख्य रूप से यही था कि हमें बाल नहीं काटने हैं।