UPA Government RTI Act: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर देश गमगीन है। समाज के अलग-अलग वर्गों से जुड़े लोग उन्हें नम आंखों से विदाई दे रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल को आर्थिक सुधारों सहित कई बातों के लिए याद किया जाएगा लेकिन लोगों को जो सबसे बड़ा अधिकार उन्होंने दिया- वह राइट टू इनफार्मेशन एक्ट यानी सूचना का अधिकार (आरटीआई एक्ट) है।
आरटीआई एक्ट भारत के आम लोगों के हाथों में एक ऐसा हथियार है जिसे कोई नेता चुनौती नहीं दे सकता, भले ही वह इसे कमजोर करने की मंशा रखता हो।
आरटीआई विधेयक दिसंबर, 2004 में संसद में पेश किया गया था। 11 मई, 2005 को इसे लोकसभा और इसके अगले दिन राज्यसभा में पारित किया गया था। विधेयक पर बहस के दौरान मनमोहन सिंह ने लोकसभा में कहा था, “इस विधेयक के पारित होने के बाद हमारे शासन में एक नया युग शुरू होगा। यह ऐसा युग होगा जो हमारी परफॉर्मेंस पर आधारित होगा, ऐसा युग जो विकास के लाभ को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाएगा, ऐसा युग जो भ्रष्टाचार को खत्म करेगा और आम आदमी की चिंता को शासन के केंद्र में लाएगा।”

इससे पहले यह कानून अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 2002 में फ्रीडम आफ इनफॉरमेशन एक्ट के रूप में लाई थी लेकिन वाजपेयी सरकार ने इसके लिए नियम तैयार नहीं किए थे इसलिए इस पर अमल नहीं किया जा सका।
कांग्रेस ने 2004 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरटीआई कानून लाने का वादा किया था और चुनाव के बाद उसने इसे पूरा भी किया।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने इसके लिए नियम बनाने के बारे में कदम बढ़ाए। इस तरह का पहला कानून स्वीडन में 1766 में लागू हुआ था। अमेरिका ने 1966 में ऐसा कानून बनाया और ब्रिटेन ने 2005 में इसे लागू किया। दुनिया भर में अब तक 120 देश ऐसा कानून बना चुके हैं।
पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्होंने बार-बार साबित किया कि वो ‘Accidental Prime Minister’ नहीं थे

आरटीआई लागू होने के बाद क्या हुआ?
इस कानून के लागू होने के बाद सरकारी दफ्तरों से इस तरह की शिकायतें आने लगी कि वहां आवेदनों की बाढ़ आ गई है। हालांकि मनमोहन सिंह ने इसके लिए इस कानून की आलोचना नहीं की लेकिन अक्टूबर 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग के एक कार्यक्रम में उन्होंने ज्यादा आवेदन आने को लेकर अपनी बात रखी थी।
अगले साल फिर से उन्होंने केंद्रीय सूचना आयोग के एक कार्यक्रम में परेशान करने के लिए कानून का इस्तेमाल किए जाने पर चिंता जताई थी।
मनमोहन सिंह ने कहा था कि कभी-कभी किसी गलती को खोजने या आलोचना करने के लिए कई मामलों की जानकारी मांगी जाती है। इससे समाज को बहुत कम फायदा होता है लेकिन इससे संसाधनों पर बोझ पड़ता है।
2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल में सीबीआई को आरटीआई के दायरे से मुक्त कर दिया था। यूपीए सरकार आरटीआई कानून को अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करती रही। मनमोहन सिंह भी इस कानून की ताकत को मानते रहे इसके बावजूद कि उनके दूसरे कार्यकाल में इस कानून के जरिए ही भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए।