11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हुई। यह घटना उस समय घटी जब वह 1965 के भारत-पाक युद्ध को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही इस दुनिया से रुखसत हो गए। आधे सदी से भी अधिक समय के बाद भी शास्त्री की मृत्यु को लेकर कई सवाल उठाए जाते रहे हैं। आधिकारिक रिपोर्टों में दावा किया गया है कि शास्त्री की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई, लेकिन कई लोग इस कहानी को मानने से इंकार करते हैं और इसे संदिग्ध मानते हैं।

आजादी के बाद अपनी क्षमता से कांग्रेस को दी ऊंचाई

शास्त्री का जीवन सत्य और ईमानदारी का प्रतीक था। उनका व्यक्तित्व भारतीय राजनीति के लिए एक मिसाल बन चुका था। 1904 में वाराणसी के पास मुगलसराय में जन्मे लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी युवावस्था को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमताओं और ईमानदारी के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में तेज़ी से ऊंचाई हासिल की।

1956 में जब वह रेल मंत्री थे, तब दो बड़ी रेल दुर्घटनाओं में सौ से अधिक लोग मारे गए थे। शास्त्री ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की पेशकश की, हालांकि नेहरू ने पहले इसका विरोध किया था, लेकिन दूसरी बार शास्त्री को इस्तीफा देने के लिए मना नहीं कर पाए। नेहरू ने उन्हें उच्च आदर्शों, निष्ठा और कड़ी मेहनत के लिए सराहा और कहा कि “कोई भी व्यक्ति उनसे बेहतर साथी और सहयोगी नहीं हो सकता।”

नेहरू के निधन के बाद, शास्त्री ने प्रधानमंत्री का पद संभाला और 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ कश्मीर मुद्दे पर अपनी कड़ी रणनीति से भारत को जीत दिलाई। उन्होंने सशस्त्र बलों को अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करने की अनुमति दी और पाकिस्तान पर दबाव डालकर शांति वार्ता की दिशा तय की। इसी संघर्ष के दौरान शास्त्री की असामयिक मृत्यु ने पूरे देश को हिला दिया।

ताशकंद में हुई मौत: एक अनसुलझी घटना

10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति समझौता हुआ, जिसे ताशकंद घोषणापत्र कहा जाता है। उस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए। शास्त्री के स्वास्थ्य को लेकर किसी को भी कोई चिंता नहीं थी, लेकिन कुछ घंटों बाद उनकी मौत ने सभी को चौंका दिया। शास्त्री के जीवनी लेखक सी.पी. श्रीवास्तव, जो ताशकंद में शास्त्री के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, ने बताया कि प्रधानमंत्री ने रात को हल्का भोजन किया था और फिर एक गिलास दूध पीकर बिस्तर पर चले गए। हालांकि रात करीब 1:25 बजे उन्होंने खांसते हुए डॉक्टर को बुलाया, लेकिन जब तक डॉक्टर पहुंचे, उनकी मृत्यु हो चुकी थी। उनका निधन रात 1:32 बजे हुआ था।

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लोगों ने शास्त्री की मौत को लेकर कई कयास लगाए। खासकर इस बात पर सवाल उठे कि क्या उन्हें ज़हर दिया गया था। शास्त्री का शव भारत लौटने पर नीला पड़ चुका था, जिससे यह संदेह और गहरा हो गया कि उनकी मौत संदिग्ध थी। हालांकि, उनके जीवनी लेखक ने इस बात का खंडन किया और बताया कि शव-लेपन के दौरान शव का रंग नीला हुआ था, जो शव-लेपन प्रक्रिया का हिस्सा था।

हालांकि, शव परीक्षण नहीं कराया गया, जिससे इस रहस्य को सुलझाया नहीं जा सका। इस पर श्रीवास्तव ने लिखा कि यूएसएसआर के डॉक्टरों और उनके खुद के चिकित्सक डॉ. चुघ ने शास्त्री के दिल का दौरा पड़ने को ही मृत्यु का कारण बताया, क्योंकि शास्त्री को पहले भी दिल का दौरा पड़ चुका था। परिवार द्वारा शव परीक्षण की मांग न किए जाने का भी जिक्र किया गया है।

षड्यंत्र की संभावना और जांच

शास्त्री की मौत के बाद कई सवाल उठे। उनकी मौत के बाद ताशकंद में सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी ने शास्त्री के विला में काम करने वाले बटलर अहमद सत्तारोव को हिरासत में लिया। कहा जाता है कि सत्तारोव से पूछताछ की गई और उन्हें प्रताड़ित किया गया, लेकिन इस पूछताछ की बारीकियां अब तक सामने नहीं आ पाई हैं। कई लोगों ने सवाल किया कि भारत सरकार ने इस मामले में क्यों कार्रवाई नहीं की।

1977 में राज नारायण के नेतृत्व में शास्त्री की मृत्यु की संसदीय जांच हुई, लेकिन इससे कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया। इसी दौरान डॉ. चुघ और उनके परिवार के साथ एक दुर्घटना हुई, जिसमें उनके परिवार के सदस्य को एक ट्रक ने कुचल दिया। इस दुर्घटना में उनकी केवल एक बेटी ही बच पाई। शास्त्री के परिवार ने कई बार उनके निधन को लेकर जानकारी मांगी, लेकिन कभी भी इस मामले में संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया। 2019 में जब एक आरटीआई के तहत इस मामले से संबंधित दस्तावेज़ की मांग की गई, तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है। उनकी मृत्यु ने न केवल भारत को शोक में डुबो दिया, बल्कि उनके निधन के कारण कई सवालों ने भी जन्म लिया। चाहे वह उनकी मौत के कारण को लेकर उठे सवाल हों या फिर उनकी मौत के बाद के घटनाक्रम, यह सभी चीजें आज तक लोगों के मन में संदेह और कयासों का कारण बनी हुई हैं। शास्त्री का जीवन सत्य, ईमानदारी और देश के लिए समर्पण का प्रतीक था, लेकिन उनकी रहस्यमयी मृत्यु आज भी एक अनसुलझा राज बनकर खड़ा है।