पोखरण की गर्म रेत ने दुनिया में भारत की ताक़त की जो आग लगाई थी, उसकी वजह से आज भी बड़ी-बड़ी शक्तियां युद्ध की बात करने से पहले सौ बार सोचती हैं। भारत आज परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है। देश की इस सफलता के पीछे वैज्ञानिकों की कई वर्षों की मेहनत और वह गुप्त योजना है जिसे पोखरण की रेत में साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में अंजाम दिया गया था। इस बेहद गुप्त परमाणु परीक्षण के बाद सारी दूनिया अवाक् रह गई। अमेरिका की नज़रें लंबे समय पर भारत पर टिकी हुई थीं लेकन जब ‘ऑपरेशन शक्ति’ को अंजाम दिया गया तो उसे कानोकान भनक नहीं लगी।

यह परमाणु परीक्षण इतना आसान नहीं था क्योंकि अमेरिका एक बार पहले ही टांग अड़ा चुका था। इस अभियान का श्रेय तत्कालीन एनडीए सरकार और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दिया जाता है। हालांकि एक कार्यक्रम के दौरान खुद वाजपेयी ने स्वीकार किया था कि इसकी भूमिका पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने तैयार की थी। उन्होंने खुलकर कहा था कि इसका पूरा श्रेय नरसिंह राव को जाता है।

साल 2004 में नरसिंह राव के निधन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि राव इस परमाणु कार्यक्रम के ‘असली जनक’ थे। ‘राव ने मुझसे कहा था कि सामग्री तैयार है, मैंने तो केवल विस्फोट किया है।’ अटल ने यह भी कहा था कि अगर राव ज़िंदा होते तो वह आज भी इस रहस्य से पर्दा न उठाते क्योंकि उन्होंने खुद कहा था कि यह राज़, राज़ ही रहना चाहिए।

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दरअसल नरसिंह राव ने 1995 में ही परमाणु परीक्षण की तैयारी पूरी कर ली थी। लेकिन अमेरिकी सरकार को इसकी भनक लग गई और उसने दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसी के चलते उनके कार्यकाल में इस परमाणु कार्यक्रम पर विराम लग गया। लेकिन नरसिंह राव के मन में परमाणु की आग सुलगती रही। उन्हें इस बात की फ़िक्र नहीं थी कि दुनियाभर में तहलका मचाने वाले इस अभियान का श्रेय किसे मिलेगा। 1996 में अटल की सरकार बनी तो उन्होंने इस कार्यक्रम पर फिर से काम शुरू किया। लेकिन यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी।

19 मार्च 1998 को जब फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो पहले दिन से ही उन्होंने परमाणु कार्यक्रम पर काम शुरू कर दिया। 20 मार्च को उन्होंने परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष आर चिदंबरम से मुलाक़ात की। 13 दिन की सरकार में भी अटल बिहारी ने जो बड़ा कदम उठाया था उसमें परमाणु कार्यक्रम को हरी झंडी दिखाना ही था। उस वक़्त एपीजे अब्दुल कलाम DRDO के अध्यक्ष थे और इस अभियान में उनकी बड़ी भूमिका थी।

11 मई की तारीख़ इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई और भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बन गया। विपक्ष ने इस अभियान पर सवाल भी उठाए लेकिन उस वक्त भी नरसिंह राव कुछ नहीं बोले। राव के निधन से कुछ वक्त पहले जब पत्रकार शेखर गुप्ता ने उनसे इस बारे में सवाल पूछे तो उन्होंने कहा था , ‘अरे भाई कुछ रहस्य मेरे साथ चिता पर भी जाने दीजिए।’

15 दिसंबर 1995 को अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में छपा था कि जासूसी सैटलाइट ने भारत के पोखरण में कुछ वैज्ञानिक गतिविधियां देखी हैं। अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि भारत यहां परमाणु विस्फोट की तैयारी कर रहा है जो कि अभियान 1974 से ही चल रहा है। इसके कुछ दिन बाद ही अमेरिकी राजदूत ने राव के प्रधान सचिव से मुलाकात की और सैटलाइट के फोटो दिखाए। जब पीएम के सचिव ने ये तस्वीरें मांगी तो अमेरिकी राजदूत ने देने से इनकार कर दिया। इसपर उस वक्त राव के सचिव रहे अमरनाथ वर्मा को गुस्सा भी आ गया था।

19 दिसंबर 1995 को जब परमाणु परीक्षण होना था तो राव ने तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी से कहा कि आप एक सार्वजनिक बयान जारी करके इस बात से इनकार कर दीजिए। हालांकि अमेरिका को इससे संतुष्टि नहीं मिली और राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने राव से फोन पर बात की। राव ने भी कहा कि आपके सैटलाइट ने जो तस्वीरें ली हैं, वे केवल एक रूटीन गतिविधि की हैं। इसका परमाणु परीक्षण से कोई लेना-देना नहीं है।

राव ने परमाणु कार्यक्रम रोक दिया। 25 दिसंबर को राव को एक सेक्रेट लेटर मिला जिसमें इस परमाणु परीक्षण को चार सप्ताह के लिए टालने की बात कही गयी थी। बात काफी आगे निकल चुकी थी और अमेरिका लगातार भारत पर नजर बनाए हुए था। ऐसे में नरसिंह राव ने एल शेप सुरंग से बम को बाहर निकालने का आदेश दे दिया। अमेरिका हर बार सीटीबीटी का हवाला देकर परमाणु परीक्षण रोकने की बात कह रहा था। राव ने अपने अधिकारियों और वैज्ञानिकों के साथ सीटीबीटी को समझने और रास्ता निकालने का प्रयास किया। हालांकि 1996 में ही लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया।

चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी नये प्रधानमंत्री बने। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद नरसिंह राव उनसे मिलने गये थे ताकि इस परमाणु कार्यक्रम को उन्हें हैंडओवर कर सकें। उनके साथ एपीजे अब्दुल कलाम और आर चिदंबरम भी मौजूद थे। इस बार वाजपेयी की सरकार केवल 13 दिन चल सकी। 1998 में जब वह फिर से प्रधानमंत्री बने तो नरसिंह राव के इस बहुप्रतीक्षित अभियान के सपने को साकार किया।