चुनाव आयोग (EC) के एक पूर्व कानूनी सलाहकार ने केंद्र सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम और नागालैंड के लिए परिसीमन आयोग की स्थापना करने की आलोचना की है। उन्होंने इसे “असंवैधानिक” और “अवैध” करार दिया है। 50 से अधिक वर्षों के लिए चुनाव आयोग को सेवा देने वाले एस के मेंदीरत्ता ने पिछले महीने तीन चुनाव आयुक्तों को एक पत्र लिखा था, जिसमें बताया गया था कि 6 मार्च के कानून मंत्रालय की अधिसूचना में जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 का उल्लंघन है।

एस के मेंदीरत्ता ने लिखा है, “2008 में संसद द्वारा पेश किए गए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 8A में कहा गया है कि चुनाव होने पर चार पूर्वोत्तर राज्यों में परिसीमन, चुनाव आयोग के पुनर्विचार के दायरे में आएगा। इसलिए, नए परिसीमन आयोग द्वारा अरुणाचल, मणिपुर, असम और नागालैंड में किसी भी परिसीमन अभ्यास को “अदालतों द्वारा शून्य घोषित किया जाएगा” और, इसका जो परिणाम आएगा वह “विशाल कीमती सार्वजनिक धन का अपव्यय” ही होगा।

2008 में हुए अंतिम परिसीमन में इन चार राज्यों को छोड़ दिया गया था। सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग ने करीबदो हफ्ते पहले ही मेंदीरत्ता की चिट्ठी को केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेज दिया है। बता दें कि परिसीमन लोक सभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने का कार्य है, जो जनसंख्या में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है और पूर्ववर्ती जनगणना के आधार पर किया जाता है।

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चार पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग के गठन की अधिसूचना 6 मार्च को निकाली थी। उच्चतम न्यायालय की पूर्व जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई इसकी अध्यक्ष हैं। चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र पैनल में चुनाव आयोग के प्रतिनिधि हैं।

जस्टिस देसाई ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह मेंदीरत्ता द्वारा लिखे गए पत्र से अवगत हैं, लेकिन वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगी। मेंदीरत्ता ने भी इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, चंद्रा ने कहा, “हां, एक पत्र प्राप्त हुआ था, और इसे उचित स्तर पर देखा जा रहा है।”