आरटीआई एक्ट में बदलाव को लेकर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने मोर्चा खोल दिया है। गांधी ने एक ऑनलाइन याचिका अभियान शुरू किया है। इसके जरिये वे राष्ट्रपति से इस बिल को सरकार को लौटाने का आग्रह कर रहे हैं।
शैलेश गांधी ने साल 2004 में संसद की स्थायी समिति के सदस्य के रूप में इस पारदर्शिता कानून का मसौदा तैयार करने में मदद की थी। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त के इस अभियान के शुरू होने के बाद ऐसे ही कई पत्र राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के ध्यानार्थ भेजने की योजना है। इसमें राष्ट्रपति से यह अपील की जाएगी कि वह सरकार को यह बिल पुनर्विचार के लिए लौटा दें।
गांधी की याचिका में राष्ट्रपति को यह ध्यान दिलाया गया है कि यह स्थायी समिति ही थी जिसने यह सुझाया था कि केंद्रीय सूचना आयोग को निर्वाचन आयोग के समान दर्जा हासिल होगा। मौजूदा बिल न सिर्फ इस अंतर को खत्म कर देगा बल्कि केंद्र इस रूप में सशक्त कर देगा कि वह सूचना आयुक्तों का कार्यकाल के साथ ही वेतन भी तय कर सके।
याचिका में कहा गया है कि सरकार का यह कदम आरटीआई के ढांचे को कमजोर करने का प्रयास है। वर्तमान में सूचना आयुक्तों का वेतन और कार्यकाल कानून द्वारा तय होता है। गांधी ने अपनी याचिका में कहा, ‘आयुक्तों की सेवा शर्तों, शक्तियों और कार्यों के संबंध में संसद की स्थायी समिति ने प्रस्तावित किया था, ‘यह बिल का सार है कि सूचना प्राप्त करने का मेकेनिज्म सिस्टम की प्रभावशीलता पर निर्भर करेगा। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आयोग और इसके पदाधिकारी स्वतंत्र और स्वायत्त रूप से काम कर सकें।
इसके लिए इनका दर्जा चुनाव आयोग की तरह किया जाना चाहिए।’ स्थायी समिति की सिफारिशों को तत्कालीन यूपीए सरकार ने स्वीकार किया था। इससे पहले सरकार ने सूचना आयुक्तों को केंद्र सरकार के सचिवों के समान रखने का प्रस्ताव रखा था। गांधी की याचिका में सूचना आयुक्तों को सशक्त किए जाने के कारणों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
इस संबंध में आरटीआई एक्टिविस्ट और पारदर्शिता के पैरोकारों ने विभिन्न तरीकों से बिल के संशोधन को लेकर जनता की नाराजगी को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की योजना बनाई है। इन लोगों को उम्मीद है कि राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद इस संशोधित बिल को बिना मंजूरी के सरकार को लौटा देंगे।
अब तक करीब 60 लाख लोग केंद्र और राज्य सरकारों के जरिये सूचना के अधिकार का प्रयोग कर चुके हैं। इससे पहले पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त हबीबुल्ला वजाहत, दीपक संधू समेत अन्य सूचना आयुक्त सरकार की तरफ से इस प्रस्तावित संशोधन को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं।

