फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) ने हाल ही में भारत के वन भूभाग पर आधारित द इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 जारी की है। इस रिपोर्ट के आंकड़ों की मानें तो आजादी के बाद से लेकर अभी तक देश का 20 फीसदी लगातार जंगलों से घिरा रहा है। आबादी तीन गुना बढ़ चुकी है, जंगल से घिरी जमीनों का कृषि में इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, जंगल औद्योगिकीकरण की भेंट चढ़ रहे हैं, इसके बावजूद ऐसा होना किसी अचंभे से कम नहीं।

आंकड़े तो यह भी कहते हैं कि 2015 से 2017 के बीच भारत में जंगलों से घिरे भूभाग यानी फॉरेस्ट कवर में भी इजाफा हुआ है। इतने सकारात्मक आंकड़ों की एक बड़ी वजह FSI द्वारा इस्तेमाल सैटेलाइट तकनीक भी है। 80 के दशक में की जाने वाली गणना की तुलना में अब इस्तेमाल होने वाली तकनीक छोटे से छोटे भूभाग को भी कवर करती है। इसके अलावा, सैटलाइट घने जंगलों और घने घास-फूसों के बीच फर्क नहीं कर पाता।

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इस द्विवार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 के बाद पहली बार ‘घने जंगलों’ (Dense forest) में 5,198 वर्ग किमी का इजाफा हुआ है। यहां Dense forest का मतलब बेहद घने (70 फीसदी या उससे ज्यादा ट्री कैनोपी डेनसिटी) और सामान्य घने जंगलों (40 फीसदी से ज्यादा और 70 फीसदी से कम ट्री कैनोपी डेनसिटी) से है। जानकार मानते हैं कि डेंस फॉरेस्ट या घने जंगल (40 फीसदी या उससे ज्यादा कैनोपी डेनसिटी) वक्त के साथ होने वाले क्षय की वजह से ओपन फॉरेस्ट (10%-40% कैनोपी डेनसिटी) में तब्दील हो सकते हैं। यह भी मुमकिन है कि ये पूरी तरह खत्म हो जाएं और ‘नॉन फॉरेस्ट’ की श्रेणी में आ जाएं। वहीं, ओपन फॉरेस्ट वक्त के साथ सघन हो सकते हैं। इसके अलावा, नॉन फॉरेस्ट श्रेणी में आने वाले वन इलाके वक्त के साथ ओपन फॉरेस्ट या सघन जंगलों में तब्दील हो सकते हैं।

पिछले 15 सालों (2003 के बाद से) की बात करें तो इस समयावधि में 15,920 वर्ग किमी में स्थित सघन जंगल या डेंस फॉरेस्ट अब नॉन फॉरेस्ट श्रेणी वाले इलाकों में तब्दील हो गए हैं। इस नुकसान की कागजों पर भरपाई नॉन फॉरेस्ट वाले इलाकों के सघन जंगल वाले इलाकों में तब्दीली के जरिए हो रही है। 2003 के बाद से कुल 8,369 वर्ग किमी का नॉन फॉरेस्ट श्रेणी का इलाका अब डेंस फॉरेस्ट में तब्दील हो चुका है।

रिपोर्ट के आंकड़ों को मानें तो सिर्फ बीते दो सालों में ही, डेंस फॉरेस्ट श्रेणी में 3600 वर्ग किमी का इजाफा हुआ है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जिन इलाकों में जंगल नाम मात्र के थे या थे ही नहीं, वे कैसे 2 साल में सघन जंगली इलाके में तब्दील हो गए? इसका जवाब है, तेजी से होने वाले पौधरोपण। जब ये पौधे छोटे होते हैं तो इन्हें सैटेलाइट डिटेक्ट नहीं कर पाते। वहीं, इनके बड़े हो जाने के बाद सैटेलाइट इनकी पहचान सघन जंगलों के तौर पर करता है।

2003 के बाद से, भारत हर साल 1000 वर्ग किमी डेंस फॉरेस्ट खो रहा है। इस नुकसान की महज आधी भरपाई पौधरोपण आदि के जरिए हो रही है। अगर आंकड़ों का ट्रेंड देखें तो हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, 2005 से 2007 के बीच, 2206 वर्ग किमी डेंस फॉरेस्ट का नुकसान हुआ। एक दशक बाद, जब एफएसआई डेंस फॉरेस्ट कवर में द्विवार्षिक बढ़ोत्तरी का दावा कर रहा है, हमने हकीकत में करीब तीन गुना ज्यादा भूभाग यानी 6,407 वर्ग किमी का डेंस फॉरेस्ट 2015 से 2017 के बीच खत्म कर दिया है।

बिना जंगलों वाले वन भूभाग!
जंगलों से घिरे भूभाग को कितना नुकसान पहुंचा है, इस बात का अंदाजा सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि कागजों पर दिखने वाले वन से घिरे भूभाग या तो वन ही नहीं हैं, या फिर उनका फॉरेस्ट कवरेज नाम मात्र का ही है। सर्वे ऑफ इंडिया ने भारत में कुल 7,06,899 वर्ग किमी फॉरेस्ट एरिया की पहचान की है। 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से 1,95,983 वर्ग किमी यानी करीब 28 फीसदी हिस्से पर कोई फॉरेस्ट कवर नहीं है। वहीं, 3,26,325 वर्ग किमी यानी 46 फीसदी हिस्से पर डेंस फॉरेस्ट या सघन जंगल हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो गुजरात के आकार की वन भूमि की हिस्सेदारी जंगलों के कुल विस्तार से खत्म हो चुकी है। वहीं, भारत के कुल फॉरेस्ट लैंड का 50 फीसदी हिस्सा ही सघन वनों से घिरा है। यह मान भी लें कि अगर बिना जंगलों वाले 600 वर्ग किमी की वन भूमि में 2015 से 2017 के बीच जंगलों का विस्तार हुआ है तो भी बुरी खबर यह है कि इसी समयावधि में 1000 वर्ग किमी फॉरेस्ट लैंड से सघन वन खत्म हो चले हैं।