करमापा उग्येन दोरजी के खिलाफ भी मुकदमा चलेगा। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने गंगटोक के एक एनजीओ की याचिका पर यह फैसला सुनाया है। इस एनजीओ ने एक पुनरीक्षण याचिका निचली अदालत के उस फैसले के खिलाफ दायर की थी जिसने अपने फैसले में करमापा के खिलाफ आपरधिक मामले की धाराओं को निकालने के आदेश दिए थे। याचिका में कहा गया था कि 17 वें करमापा विदेशी मुद्रा अर्जन, अवैध भूमि और ऐसे मामलों संलिप्त हैं। ऐसे में उनके खिलाफ लगी अपराधिक धाराओं को निचली अदालत द्वारा हटाना ठीक नहीं है।

हाई कोर्ट के एकल खंडपीठ के न्यायधीश सुरेश्वर ठाकुर ने बुधवार को इस पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए ऊना के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के 21 मई 2012 के आदेशों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने अपराधिक धाराओं को करमापा के खिलाफ इस बिना पर हटाया था कि सरकारी वकील ने 17 वें करमापा के खिलाफ लगे आरोपों को वापस लेने की दरख्वास्त दी थी।

याचिकाकर्ता का कहना था कि करमापा को कथित आरोपों से इस कारण बरी नहीं किया जाना चाहिए था कि वे एक धर्म गुरु है और उनकी दलाई लामा के उत्तराधिकारी बनने की संभावना है और उनके कई धार्मिक शिष्य हैं।

याचिकाकर्ता का कहना था कि ऊना पुलिस की ओर से दायर की गई चार्जशीट में करमापा 10वें आरोपी थे। क्योंकि करमापा करमा काग्यू स्कूल के आध्यात्मिक मुखिया था। करमापा की तरफ से यह तर्क दिया गया था कि सिद्धबाड़ी की मानेस्टरी के करमा गर्चन ट्रस्ट के वे अध्यक्ष तो हैं लेकिन वे न तो पैसों के लेन-देन और रखरखाव में वे भागीदार होते है और न ही उनकी तरफ से ऐसे दस्तावेज में कोई हस्ताक्षर उनकी तरफ से होते हैं।

पर याचिकाकर्ता का कहना था कि जिस तरह के पहचान पत्र पकड़े गए थे और जिस कारपोरेशन बैंक की बात की जा रही थी, वे सारी बाते फर्जी पाई गई हैं। यह जांच अधिकारी ने भी पाया है। विदेश मुद्रा बड़ी तादाद में धर्मशाला की सिद्धबाड़ी गौंपा और मंजनू के टीले से पकड़ी गई थीं। यह सारी राशि 26 जनवरी, 2011 को पकड़ी गई थी।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि कुछ केंद्रीय सरकार के मंत्री करमापा को बखने के मकसद से उनका पक्ष ले रहे हैं। इसीलिए राज्य सरकार ने भी पिछले साल भारतीय और विदेशी करंसी के पकड़े जाने के आरोपों को करमापा के खिलाफ निकालने का फैसला लिया था। उस समय सात करोड़ पांच लाख रुपए अवैध रूप से पकड़े गए थे।