देश में पहली बार, सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई कोर्ट जज के खिलाफ पत्र लिखकर शीर्ष अदालत और हाई कोर्ट के कई वर्तमान और रिटायर्ड जजों पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाने पर स्‍वत: संज्ञान लेने हुए अवमानना की कार्रवाई शुरू की है। इस अभूतपूर्व कदम के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया समेत सुप्रीम कोर्ट के सात वरिष्‍ठतम जज, कलकत्‍ता हाई कोर्ट जज सीएस कर्णन के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करेंगे। जस्टिस कर्णन ने करीब 15 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर ‘न्‍यायपालिका में भारी भ्रष्‍टाचार’ के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था। 23 जनवरी को लिखे गए पत्र में जज ने ‘भ्रष्‍टाचारी जजों की शुरुआती सूची’ भी बनाई और सुप्रीम कोर्ट और उच्‍च न्‍यायालयों के 20 जजों के नाम उसमें शामिल किए। सूत्रों के अनुसार, मामले की गंभीरता को देखते हुए सात वरिष्‍ठतम जजों की एक विशेष बेंच गठित की गई है। जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली बेंच बुधवार को जस्टिस कर्णन के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई करेगी।

बेंच में खेहर के अलावा जस्टिस दीपक मिश्रा, जे चेलमेश्‍वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर, पीसी घोष और कुरियन जोसेफ होंगे। माना जाता है कि जजों ने जस्टिस कर्णन के कई पत्रों और बयानों का संज्ञान लिया है और उसी आधार पर कार्रवाई शुरू करेंगे। हाई कोर्ट के किसी जज को सिर्फ संसद में महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। इसलिए, शीर्ष अदालत के पास जो विकल्‍प मौजूद हैं, उनमें उनकी शक्तियों पर नियंत्रण संबंधी आदेश जारी कर स्‍वत: संज्ञान लेकर अवमानना कार्रवाई शुरू करने से इतर, जस्टिस कर्णन की न्‍यायिक शक्तियां वापस लेने और उन्‍हें कोई काम न देने का न्‍यायिक आदेश जारी करना शामिल है।

जस्टिस कर्णन मद्रास हाई कोर्ट जज के अपने पिछले कार्यकाल में भी विवादों में घिरे थे। पिछले साल जब उन्‍होंने शीर्ष अदालत के कोलेजियम द्वारा अपने ट्रांसफर को ही रोक दिया था तो शीर्ष अदालत को दखल देनी पड़ी थी, जिसके बाद हाई कोर्ट चीफ जस्टिस के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की गई थी। जज ने भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश से उन्‍हें स्‍थानांतरित करने पर सफाई भी मांगी थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके कोई न्‍यायिक आदेश जारी करने पर रोक लगा दी थी।

जब कोलेजियम ने उनका ट्रांसफर करने का फैसला किया तो सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी, 2016 को कर्णन द्वारा दिए गए सभी निर्देशों पर रोक लगा थी। कुछ महीनों बाद जस्टिस कर्णन ने कलकत्‍ता हाई कोर्ट ज्‍वाइन, वह भी तब जब राष्‍ट्रपति ने इसके लिए एक समयसीमा तय कर दी थी।