मीना
बेटी पैदा होने का मतलब खर्च बढ़ जाना। उसकी शादी और दहेज के लिए भी धन इकट्ठा करना पड़ेगा। बेटी के जन्म पर परिवार में ऐसी चिंताएं फैल जाती हैं। आज कितने ही ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियान शुरू हो गए हों, लेकिन फिर भी बेटियों की हत्या रुक नहीं रही है। कभी बलात्कार, कभी एसिड अटैक तो कभी गर्भ में ही लड़की के भ्रूण को मार डालना। बेटी की पैदाइश पर मातम नहीं खुशियां मनें इसकी ही कोशिश कर रही हैं वाराणसी की डॉ शिप्रा धर।

वाराणसी में डॉ शिप्रा अपना छोटा सा अस्पताल चलाती हैं, जहां वे बेटी के पैदा होने पर प्रसव खर्च नहीं लेती हैं। वे बताती हैं कि हमने जुलाई 2014 में शुरुआत की थी। वे बताती हैं कि हमने ज्यादातर घरों में देखा कि जब लड़की पैदा होती थी तब मायूसी और मातम जैसा छा जाता था। तब मुझे लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए कि उस समय तो लोगों को दुख न हो कि बेटी हुई है। हमने सोचा कि कुछ उपहार दे देंगे। लेकिन फिर मेरे पति ने कहा कि इस तरीके से कुछ नहीं होने वाला है। अगर कुछ करना है तो जब लड़की पैदा हो तो किसी भी तरह का कोई प्रसव शुल्क मत लो। तो अब हम लोग कोई शुल्क नहीं लेते। जब महिलाएं यहां नर्सिंग होम में प्रसव के लिए आती हैं और उनकी बेटी हो जाए और ऊपर से जब फीस देने का समय आता है तब घर वाले कहते हैं कि अरे मैडम एक तो पेट चीर दिया, लड़की निकाल दी अब ऊपर से आप पैसे भी मांगेंगी। ये बात वे तब नहीं कहते जब लड़का हो जाए और आॅपरेशन करना पड़े। लड़की होने के बाद हाय, तौबा मचा देते हैं। ये सब सुनते-सुनते मैं परेशान हो गई थी। और मैं खुद एक महिला हूं। तो लड़कियों के लिए समाज का ऐसा नजरिया देखकर बहुत दुख होता था।

शिप्रा बताती हैं कि मेरा घर ऊपर है और नीचे नर्सिंग होम है। तो जिस दिन लड़का पैदा होता था उस दिन मेरे बच्चों को ऊपर पता चल जाता था कि आज किसी लड़के की डिलीवरी हुई है। काम के बाद जब मैं ऊपर जाती थी तब बच्चे पूछते थे कि मम्मी आज लड़का हुआ न। तो हम पूछते थे कैसे पता। तो बच्चे बताते कि आज नीचे बहुत हल्ला हो रहा था न। बेटे के बाद घर वाले खुशी से कहते हैं ‘अरे बेटा भइले ला। दादी बन गऐलु।’ और बेटी के बाद कोई खुशी नहीं होती। सब शांत। सब सन्नाटा।

बेटी नहीं है बोझ, आओ बदलें

डॉ शिप्रा बताती हैं कि साल 2000 से हम प्रैक्टिस कर रहे थे। फिर लड़का लड़की का भेदभाव इतना देखा कि लगा कि अब बेटियों के लिए कुछ करना चाहिए तब हमने बेटी नहीं है बोझ, आओ बदलें सोच का नारा दिया। बिना किसी सरकारी मदद के शिप्रा लोगों की मदद करती हैं। वे कहती हैं कि जब आवश्यकताओं को कम कर दो तो खर्च कम हो जाता है। बस इसी सोच पर हॉस्पिटल चला रहे हैं।

उन्होंने बताया कि अब तो कुछ ऐसे भी मामले आते हैं जो पूरे नौ महीने कहीं और दिखाते हैं और प्रसव के समय मेरे पास आते हैं। फिर बाद में कुबूलते हैं कि हमें मालूम था कि यहां लड़की पैदा होने पर प्रसव का शुल्क नहीं लिया जाता। शिप्रा बताती हैं कि कुछ ऐसे भी लोग आते हैं जो कहते हैं कि मैडम आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं। हम चाहते हैं कि हमारी बेटी आपकी जैसी बने।

मुहिम में पति ने की मदद
शिप्रा बताती हैं कि उनके पिता जब शिप्रा छोटी थीं तब गुजर गए थे। जिससे उनका पालन-पोषण अपने ननिहाल में हुआ। वे महिला सोच के बीच पली बढ़ीं। वे बताती हैं कि मेरी इस मुहिम में मेरे पति ने बहुत मदद की। मेरी ससुराल के लोग भी मेरे काम से बहुत खुश थे। लेकिन जब शुरूआत की थी तब समस्या आई थी। क्योंकि तब बच्चे छोटे थे। पर संघर्ष करते रहे और आज सब कुछ सबके सामने है।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी सराहा
शिप्रा बताती हैं कि जब कोई मेरे काम के बारे में कहता है कि मोदी जी से प्रेरणा लेकर शुरू किया। तब हम गर्व से कहते हैं कि नहीं हमने मोदी जी से पहले शुरूआत की थी। मोदी जी का बेटी बचाओ अभियान बाद में शुरू हुआ। शिप्रा बताती हैं कि बेटी बचाओ अभियान से हमें फायदा ये हुआ कि हमारे काम को भी पहचान मिलने लगी। शिप्रा की अब तक दो बार प्रधानमंत्री मोदी से बात हो चुकी है। वे बताती हैं कि मोदी जी लोकसभा चुनाव से पहले जब वाराणसी आए थे एक कार्यक्रम में। जिसमें 10 विशिष्ट जनों को बुलाया गया था। तो उसमें से हम भी एक थे। हम सब ने भी अपने काम के बारे में बताया। फिर मोदी जी ने अपने भाषण के बीच में मेरे काम के बारे में बोला। तब मुझे बहुत खुशी हुई थी। हम तो रोने ही लगे थे। इतने बड़े आदमी ने मेरे बारे में इतना अच्छा बोला।
शिप्रा कहती हैं कि अभी भी समाज को बहुत बदलने की जरूरत है। हमने शुरुआत की है। लेकिन फिर भी लोगों को लड़कियों के प्रति अपनी सोच बदलने में बहुत समय लगेगा। शिप्रा अपने काम के अनुभव सांझा करते हुए कहती हैं कि अब तो ऐसे केस आते हैं जिसमें लड़की होने पर लोग खुशी जताते हैं और कहते हैं मैडम बधाई हो लक्ष्मी आई है। अब मेरा पैसा नहीं लगेगा। शिप्रा खुश होकर कहती हैं कि जो डायलॉग हम लोगों से बोलते थे अब वो मुझे बोलते हैं।

गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं
शिप्रा मुफ्त प्रसूति कराने के अलावा गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं। उनके यहां आसपास कई बच्चे पढ़ने आते हैं। इसके अलावा वे हर शनिवार को ओपीडी भी मुफ्त रखती हैं। ताकि गरीब लोग भी अपना इलाज करा सकें। शिप्रा बताती हैं कि हम अपनी तरफ से तो कोशिश कर रहे हैं लेकिन समाज में अभी और लोगों को भी कोशिश करने की जरूरत है। तभी हमारी बेटियां गर्भ में मरने से बच पाएंगी।