मंडी हाउस, नेपाली दूतावास के सामने गोल चक्कर स्थित पर्यावरण वन और जलवायु मंत्रालय के अधीन राष्टीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (एनएमएनएच) की स्थापना 1972 में की गई थी। भारतीय स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पहल पर शुरू यह भारत के उन संग्रहालयों में से एक है जो प्राकृतिक इतिहास से संबंधित है। पर्यावरण जागरूकता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बने इस संग्रहालय में सरीसृप विज्ञान, मढ़ी हुई अनुकृति और तितलियों के नमूनों का संग्रह भी था। इसके चार क्षेत्रीय संग्रहालय हैं जिनमें मैसूर, भोपाल, भुवनेश्वर और सवाई माधोपुर शामिल हैं। सोमवार देर रात लगी आग ने इस संग्रहालय को अवशेष मात्र छोड़ दिया है।
नीति आयोग से जुड़े और पूर्व में जलवायु परिवर्तन विभाग में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि 20 साल पहले वे यहां निरीक्षण के दौरान आए थे। यह अद्भुत संग्रहालय था जो भारत में तो सबसे पुराना था ही विश्व के बेहतरीन पर्यावरण संग्रहालयों में भी यह शुमार था। मंडी हाउस के फिक्की में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए श्रीराम सेंटर फॉर आटर््स, तानसेन हॉल, कापरनिक्स हॉल, संगीत अकादेमी जैसे संस्थान और हॉल के साथ यह संग्रहालय भी मशहूर था। दिल्ली के कोने-कोने से स्कूली बच्चों सहित देश के सुदूर इलाके से पर्यावरण के प्रति लगाव रखने वाले लोग यहां आते थे।
यहां पर्यावरण से संबंधित कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। यहां कई निदेशक होते हैं जो अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। यहां के तिलिलियों की प्रजातियों के संग्रह को बच्चे से लेकर बड़े तक खूब पसंद करते थे। मंगलवार शाम तक किए गए मोटे अनुमान के मुताबिक एनएमएनएस में संकलित दस्तावेज सहित लगभग सभी कुछ नष्ट हो गया जिसे तुरंत तमाम संसाधनों के बावजूद दोबारा संग्रहित करना असंभव है।
संग्रहालय में तीसरे तल तक प्रदर्शनी चलती थी। पांचवें और छठे तल पर संग्रहालय के निदेशकों, वैज्ञानिकों से लेकर तमाम विभागों के दफ्तर बने थे। आग में वहां रखी जानवरों की खाल से बनाए गए उनके प्रतिस्प जैसी कई प्रदर्शनीय वस्तुएं, सभी अमूल्य धरोहर, दुर्लभ जीवों के अवेशष जलकर खाक हो गए। 1972 में स्थापित इस संग्रहालय की बिल्डिंग को प्रर्दशनी से युक्त और विकसित करने के बाद पांच जून 1978 को विश्व पर्यावरण दिवस पर इसे आम लोगों के लिए खोला गया।
साल 2012 में इमारत की स्थिति को देखते हुए इसकी मरम्मत की योजना बनाई गई और इस समय पीछे के छोर पर मरम्मत का काम जोर-शोर से चल रहा था। 12 सौ स्कवायर फुट में फैले इस पूरे संग्रहालय के समान ही भैरो रोड, प्रगति मैदान के पास राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय और पुराना किला स्थित राष्ट्रीय कला संग्रहालय है।
एनएमएनएच में भारतीय पौधे, दुर्लभ पशुओं और खनिज संपदा से संबंधित प्रदर्शनी लगाई गई थी। चार श्रेणियों में स्थित प्रदर्शनियों को ‘सेल: द बेसिक यूनिट आॅफ लाइफ कनजरवेशन’, ‘इंट्रोडक्शन टू नेचुरल हिस्ट्री’, ‘नेचर्स नेटवर्क इकोलाजी’ और कुछ फिल्मों से संबंधित प्रर्दशनी लगाई गई थी। यहां बच्चों के लिए खासतौर पर एक डिस्कवरी रूम और एक्टिविटी रूम विकसित किया गया था। पर्यटकों को जानकारी देने के लिए गाइड की व्यवस्था थी।
दिव्यांग लोगों के लिए अलग से व्यवस्था थी। विभिन्न प्रजातियों के अंडों का भी दुर्लभ संग्रह था। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, सुनामी, नर्मदा घाटी जैसे अन्य चीजें भी प्रदर्शित की जाती थीं ताकि बच्चों की जिज्ञासा उस तरफ भी रहे। यहां 22 अप्रैल (पृथ्वी दिवस) और तीन मार्च (विश्व वन्य दिवस) पर बच्चों और अन्य लोगों के लिए कविता, कहानी, निबंध प्रतियोगिता का आयोजन होता था। मंगलवार से रविवार तक सुबह दस से शाम छह बजे तक गैलरी खुली रहती थी। सोमवार को पुस्तकालय, डिस्कवरी, एक्टिविटी कमरा बंद होता था। मंगलवार से रविवार तक सुबह 11 से दोपहर तीन बजे तक फिल्मों का प्रदर्शन भी होता था। अब देखना यह होगा कि सरकार और जंतु विज्ञान विशेषज्ञ विश्व के कोने-कोने से लाकर दोबारा इसे उसी रूप में विकसित कर पाते हैं या नहीं?