MS Swaminathan Death News: भारत की हरित क्रांत के जनक एम एस स्वामीनाथन का गुरुवार को निधन हो गया है। वह 98 साल के थे। उनका अंतिम संस्कार रविवार को किया जाएगा। एमएम स्वामीनाथन की पत्नी मीना का निधन साल 2022 में हो गया था। उनके परिवार में तीन बेटियां- सौम्या, मधुरा और नीत्या हैं। एम एस स्वामीनाथन ने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम इनकम वाले किसान अधिक उपज पैदा करें।

अहम पदों पर रहे स्वामीनाथन

अपने कार्यकाल के दौरान एम एम स्वामीनाथन ने विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों पर काम किया। वह साल 1961-72 के बीच इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर रहे। इसके बाद वह 1972 से 79 तक ICAR के DG और भारत सरकार के सेक्रेटरी रहे। स्वामीनाथन ने 1979-80 के बीच कृषि मंत्रालय में प्रमुख सचिव, एक्टिंग डिप्टी चेयरमैन औऱ बाद में सदस्य (विज्ञान और कृषि), योजना आयोग (1980-82) और 1982 से 88 के बीच इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, फिलीपींस के DG का पद भी संभाला।

2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग के बनाए गए प्रमुख

साल 2004 में एम एस स्वामीनाथन को किसानों के लिए बनाए गए आयोग का प्रमुख बनाया गया। इस आयोग का गठन किसानों की परेशानियां, दिक्कतें और किसान आत्महत्याओं में इजाफा को देखते हुए किया गया। इस कमीशन ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी और सुझाव दिया कि MSP उत्पादन की औसत लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा होना चाहिए।

1987 में मिला वर्ल्ड फूड प्राइज

एम एस स्वामीनाथन को साल 1987 में पहला वर्ल्ड फूड प्राइज दिया गया, जिसके बाद उन्होंने चेन्नई के तारामणि में एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। उन्हें भारत सरकार पद्म श्री और पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित कर चुकी है। इसके अलावा एम एम स्वामीनाथन को एच के फिरोजिया अवार्ड, लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अवार्ड, इंदिरा गांधी प्राइज के साथ-साथ रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवार्ड (1986) से भी सम्मानित किया जा चुका है।

परिवार के प्रेशर में दिया सिविल सेवा एग्जाम, बने IPS

बचपन से ही एम एस स्वामीनाथन को कृषि में रूचि थी। उन्होंने अपने परिवार और अन्य किसानों को फसल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, मौसम की अनिश्चिताओं की वजह से परेशान होते देखा था। उनका परिवार चाहता था कि वे मेडिकल क्षेत्र में जाएं। परिवार के दबाव की वजह से उन्होंने सिविल सर्विस एग्जाम बी दिया। वे IPS के लिए सेलेक्ट भी हो गए। उसी दौरान उन्हें जेनेटिक्स फील्ड में नीदरलैंड में यूनेस्को फ़ेलोशिप का मौका मिला। जीवन के प्रति उनके मिशन और अपने क्षेत्र के प्रति करुणा ने उन्हें जेनेटिक्स चुनने के लिए प्रेरित किया।