राज सिंह
भक्ति संगीत के पितामह और भक्त कवि स्वामी हरिदास का शास्त्रीय संगीत में बेहद महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वे तानसेन और बैजू बावरा के गुरु भी रहे हैं। स्वामी हरिदास जी चार वैष्णव संप्रदायों में से एक, कृष्णोपासक निंबार्क संप्रदाय से संबंध रखते थे। निंबार्क संप्रदाय की स्थापना 11 वीं शताब्दी में द्वैत अद्वैत सिद्धांत के प्रवर्तक जगतगुरु निंबार्काचार्य ने की थी। इस संप्रदाय में राधा कृष्ण की उपासना की जाती है। उत्तर भारत में निंबार्क संप्रदाय के अनेक मठ एवं मंदिर हैं। निंबार्क संप्रदाय में 15वीं एवं 16वीं शताब्दी में कई महान संत कवि हुए हैं ,जिनमें हरिव्यासदेवाचार्य, परशुरामदेवाचार्य तथा स्वयंभुदेवाचार्य प्रमुख हैं। यद्यपि निंबार्क संप्रदाय का मुख्यालय वर्ष 1542 में ही वृंदावन से राजस्थान में अजमेर के निकट सलेमाबाद नामक स्थान पर स्थानांतरित हो गया था, लेकिन स्वामी हरिदास जी लगभग जीवन पर्यंत वृंदावन में ही रहे।
स्वामी हरिदास जी कृष्ण भक्ति में एक नई परंपरा शुरू करने वाले सखी संप्रदाय के प्रवर्तक भी थे, जो निंबार्क संप्रदाय का एक उप संप्रदाय है जिसे हरिदासी संप्रदाय भी कहते हैं, जिसे ललिता सखी का अवतार माना जाता है और इनकी छाप रसिक है। कहा जाता है कि तानसेन को एक साधारण बालक से इतना बड़ा संगीतकार बनाने का श्रेय भी स्वामी हरिदास जी को ही जाता है। तनु मिश्रा नाम का यह बालक पशु पक्षियों की तरह तरह की बोलियों की बेहद खूबसूरत नकल करता था और हिंसक पशुओं की बोली से लोगों को डराया करता था। स्वामी हरिदास इस प्रतिभा को देखकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने तानसेन को उनके पिता से संगीत सिखाने के लिए मांग लिया। वही तानसेन बाद में सम्राट अकबर के नवरत्न में शामिल हुए।
स्वामी हरिदास के संगीत में एक ऐसा जादू था कि जो उनका संगीत सुनता था वह उन्हीं का होकर रह जाता था। यहां तक कि मुगल बादशाह अकबर भी उनके संगीत के मुरीद हो गए थे। एक बार अकबर ने तानसेन से कहा कि क्या कोई उनसे भी बेहतर गाता है। तानसेन ने अपने गुरु स्वामी हरिदास जी का नाम लिया। अकबर ने उनसे संगीत सुनने की इच्छा जाहिर की। लेकिन तानसेन ने कहा कि स्वामी जी तो कहीं भी जाते नहीं हैं और वे आपके निमंत्रण पर भी नहीं आएंगे। लेकिन अकबर में स्वामी हरिदास का संगीत सुनने की इतनी इच्छा हुई कि वे वेश बदलकर तानसेन के साथ उनका संगीत सुनने के लिए वृंदावन गए। इस घटना को बाद में एक खूबसूरत पेंटिंग में कूचींबद्ध किया गया।
स्वामी हरिदास जी 25 वर्ष की आयु में वृंदावन पहुंचे और निधिवन उनकी तपोस्थली बनी। ललितावतार स्वामी हरिदास संगीत के परम आचार्य थे। उनका संगीत उनके आराध्य की उपासना को समर्पित था। वैष्णव लोग स्वामी हरिदास को राधा जी का अवतार भी मानते हैं। स्वामी हरिदास के द्वारा ही निकुंज उपासना के रूप में श्यामा कुंजबिहारी की उपासना सेवा की पद्धति विकसित हुई जिसमें गोपी भाव नहीं ,बल्कि सखी भाव है।
वृंदावन में हर वर्ष राधा अष्टमी के दिन श्री स्वामी हरिदास का जन्मोत्सव वृंदावन में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और मंदिर से सवारी उनकी निधिवन स्थित समाधि पर जाती है। उनके द्वारा स्थापित हरिदास संप्रदाय वृंदावन में बहुत महत्त्वपूर्ण है श्री बांके बिहारी जी के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध मंदिर इसी संप्रदाय का ही है श्री कृष्ण जी को समर्पित यह मंदिर हरिदासी संप्रदाय का भी प्रमुख मंदिर है
नाभा दास जी के भक्तमाल में भी स्वामी हरिदास जी के बारे में लिखा गया है।
स्वामी हरिदास रीतिकाल के कवि थे। केलिमाल नामक ग्रंथ में इनके सौ से भी ज्यादा पद संग्रहीत हैं। इसके अलावा उनके 28 सिद्धांत पद भी हैं । स्वामी हरिदास को शास्त्रीय संगीत की ध्रुपद शैली का रचयिता माना जाता है।
(लेखक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं)