सांप को देखते ही लोग डर के भागने लगते है। हर किसी के भीतर भय समा जाता है। हालांकि वो पर्यावरण के लिए हितैषी भी होते हैं क्योंकि हर जीव जन्तु की अपनी उपयोगिता है। इसी को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश के रहने वाली पिता-पुत्री की जोड़ी लोगों से सांपों को बचाने का निवेदन कर रहे हैं। वो बरसात के मौसम में सांपों को लेकर खूब फोन आते हैं कि यहां सांप निकल गया वो छोड़ना है। अब लोगों को भी समझ आ रहा है कि सांप भी पर्यावरण के लिए कितना जरूरी हैं। लोग उनको लेकर सोच बदल रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के रामपुर के रहने वाले 43 वर्षीय जतिंदर कुमार उर्फ बल्लू ने 10वीं तक की पढ़ाई की है। उन्होंने 8 साल की उम्र से ही सांप पकड़ना शुरू कर दिया था। उनकी बेटी दामिनी भी सांप बिना डर के पकड़ लेती है। दामिनी अभी 19 साल की है और बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। दामिनी ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर सांप पकड़ना शुरू किया था।

बल्लू कहते हैं, “जब मैं सांप पकड़ने जाता था, तो दामिनी मेरे साथ होती थी। मैं सांप पकड़ता था और वह वीडियो बनाती थी। फिर एक दिन उसने मुझसे कहा कि वह भी सांप पकड़ना चाहती है। मैंने उसे मना किया, लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी।” उनका कहना है, “किसी ने मुझे यह करना नहीं सिखाया। मैंने खुद सीखा। और मैंने अपनी बेटी को नहीं सिखाया। उसने मुझे देखकर खुद सीखा।”

अजगर तक पकड़ चुके हैं दोनों

बल्लू कहते हैं, “एक गांव के स्कूल के आसपास एक खतरनाक अजगर घूम रहा था। हमें उसे पकड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।” उनके साहस को देखते हुए जिला प्रशासन ने सम्मानित किया है। दामिनी अपने सम्मान की तस्वीरें दिखाते हुए कहती हैं, “मेरे पिता को डिप्टी कमिश्नर जतिन लाल ने और मुझे लाल के पहले के अधिकारी राघव शर्मा ने सम्मानित किया था।”

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बरसात का मौसम, जब सांपों के दिखने की संभावना ज्यादा होती है। बाप-बेटी की जोड़ी के लिए ये मौसम काफी व्यस्त समय होता है। कुमार कहते हैं, “हमें देर रात तक फोन आते रहते हैं।” वो बताते हैं कि फोन आते ही वे तुरंत उस कार्य की प्रक्रिया में लग जाते हैं। उनके पास सांप पकड़ने का उपकरण यानी की औजार भी है। जिसकी सहायता से वो ये कार्य करते हैं। ये औजार उनको केरल के किसी डॉक्टर द्वारा दी गई है। इसमें स्टील की छड़ें और विशेष हवादार डिब्बे। सांप को बचाने के बाद उनको जंगल में छोड़ दिया जाता है।

वहीं उन्होंने इनाम की राशि को लेकर कहा कि रकम को भविष्य के लिए बचाकर रखी जाती है। उन्होंने कहा, “इनाम की जो भी रकम मिलती है हम उसे अपने ऊपर खर्च नहीं करते हैं। उन पैसों में से आने जाने का खर्च छोड़कर बाकी के पैसे को सालाना होने वाले भंडारे के लिए रख लेते हैं। जबकि कोई गरीब व्यक्ति कुछ देने की कोशिश करता है तो वो उसे तुरंत मना कर देते हैं।”