किसानों को फसल का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए देश भर में कई आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले प्रख्यात किसान नेता शरद जोशी का शनिवार को यहां निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। उनके परिवार के मुताबिक, जोशी वृद्धावस्था के रोगों से ग्रसित होने के बावजूद अपने जीवन के आखिरी समय तक सक्रिय थे। यहां अपने आवास में उन्होंने अंतिम सांस ली।
जोशी भाजपा और शिवसेना के समर्थन से 2004-10 तक के कार्यकाल के लिए राज्यसभा के लिए चुने गए थे।
उस दौरान उन्होंने करीब 16 संसदीय समितियों में काम किया था। वे स्विट्जरलैंड स्थित इंटरनेशनल ब्यूरो आॅफ यूनिवर्सल
पोस्टल यूनियन के दशक भर के आकर्षक कार्य को छोड़ कर 1977 में भारत लौटे और फिर से किसानों का मुद्दा उठाया। जोशी ने 1979 में ‘शेतकारी संगठन’ का गठन कर राज्य में असंगठित क्षेत्र के किसानों का आंदोलन चलाया।
यहां चाकन में अपना किसान संगठन बनाने के बाद वे नाशिक जिले में प्याज उत्पादक किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर चर्चा में आए जिसके हिंसक रूप ले लेने के बाद वे गिरफ्तार कर लिए गए। जल्द ही उन्होंने अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाया और गन्ना, धान, कपास, तंबाकू और दूध जैसे कृषि वस्तुओं के लिए लाभकारी मूल्य का मुद्दा उठाया। उन्होंने 1982 में सभी किसान संगठनों की एक गैर राजनीतिक समन्वय समिति को गठित करने के लिए उत्तर भारत के किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत से हाथ मिलाया।
अपने गृह राज्य महाराष्ट्र से आंदोलन की शुरुआत करने वाले जोशी ने बाद में अपना आंदोलन अन्य राज्यों में भी फैलाया। उदार और प्रगतिशील विचारों के जोशी ने किसानों के मुद्दे को महिला सशक्तीकरण से भी जोड़ा और नाशिक के चंदवाड़ में 1986 में महिला किसानों और खेतिहर मजदूरों की एक विशाल रैली की जिसमें करीब दो लाख महिलाओं ने हिस्सा लिया। हालांकि, वे एकमात्र राज्यसभा सदस्य थे जिन्होंने महिला आरक्षण विधेयक का विरोध किया था, जब यह संसद के उच्च सदन में आया था। दरअसल, उनका विचार था कि आरक्षण से महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं होगा।
जोशी ने संभ्रांत वर्ग के ‘इंडिया’ और जड़, जमीन व मूल्यों से जुड़े आम आदमी के ‘भारत’ के बीच अंतर को स्पष्ट तरीके से सामने लाने की कोशिश की। राजनीति में प्रवेश करते हुए उन्होंने 1994 में ‘स्वतंत्र भारत’ पार्टी बनाई। वे 1990-91 में कैबिनेट दर्जे के साथ केंद्र सरकार की कृषि परामर्श समिति के अध्यक्ष भी रहे।
अपने जीवन के आखिरी समय तक सक्रिय रहे जोशी ने कृषि अर्थव्यवस्था और महिला सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दों पर अंग्रेजी और मराठी में कई पुस्तकें लिखी। उन्होंने भूमि अधिग्रहण विधेयक के मुद्दे पर किसानों के मुद्दे में सक्रिय भूमिका निभाने की भी इच्छा जाहिर की थी। यह पूछे जाने पर कि महिला आरक्षण विधेयक के खिलाफ रुख अख्तियार करने के लिए जोशी को किस बात ने प्रेरित किया था, शेतकारी संगठन के मौजूदा नेता रघुनाथ पाटील ने बताया कि हालांकि उन्होंने महिला सशक्तीकरण की हिमायत की। लेकिन उनका मानना था कि आरक्षण की प्रणाली से वांछित फल नहीं मिलेगा और महिलाओं का सशक्तीकरण नहीं होगा। पाटील ने बताया कि वे सामाजिक और आर्थिक न्याय में यकीन रखते थे, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण का समर्थन नहीं करते थे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जोशी के निधन पर शोक प्रकट किया। फडणवीस ने कहा, ‘वकील, कार्यकर्ता, किसानों के नेता और अर्थशास्त्री शरद जोशी के निधन से गहरा दुख हुआ है। किसानों के वास्ते बेहतर विपणन सुवधिाओं और नई प्रौद्योगिकी के लिए उनके संघर्ष को याद रखा जाएगा और हम किसानों के बेहतरी के लिए उसे आगे ले जाएंगे’। राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे, विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटील और विधानपरिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे ने भी किसानों के कल्याण की दिशा में जोशी के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि किसानों के वास्ते जोशी के आंदोलन का एकमात्र एजंडा किसानों को उनकी फसल के लिए उचित दाम दिलाना था।
