Sabarmati Ashram, Mahatma Gandhi गुजरात का साबरमती आश्रम राष्ट्रीयपिता महात्मा गांधी के लिए मशहूर है। सालों पहले उस आश्रम में महात्मा गांधी ने एक परिवार को बसाया था। उस परिवार को अब आश्रम छोड़ने को कहा गया है। साबरमती आश्रम गौशाला ट्रस्ट ने इस परिवार को आश्रम से निकालने के लिए निचली अदालत में याचिका दायर की थी जिसका फैसला कोर्ट ने ट्रस्ट के पक्ष में दिया है। परिसर से बेदखल होने के बाद महात्मा गांधी द्वारा साबरमती आश्रम में बसाए गए इस परिवार ने गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया है।
बाबूभाई थोसर के पोते सोनू थोसर ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ जाने का मन बनाया है। बाबूभाई थोसर को महात्मा गांधी ने अन्य कारीगरों के साथ आश्रम के कर्मचारी के रूप में पनाह दी थी। वह चमड़े की सैंडल बनाते थे। ट्रस्ट ने थोसर परिवार के खिलाफ 1998 में मुकदमा दर्ज किया था। ट्रस्ट का कहना था कि थोसर के वंशजों का उस जमीन पर कोई हक नहीं है और उन्हें इसे छोड़ देना चाहिए।
गांधी ने साबरमती और वर्धा में अपने आश्रमों में टेनरी वर्गों की स्थापना की थी। उन्होंने साबरमती आश्रम में मुख्य रूप से ढोलका के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के शिल्पकारों को बसाया था। वे मरे हुए मवेशियों की खाल से चप्पल बनाते थे। उत्पाद को ‘अहिंसा चप्पल’ के रूप में जाना जाता था। वर्तमान में, थोसरों सहित पांच परिवार हैं, जो आश्रम परिसर में रह रहे हैं।
फरवरी में, सिविल कोर्ट ने ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाया और थोसर परिवार को आदेश दिया कि वे इस जमीन को छोड़ दें। बाबू थोसर की बहू और पोते सोनू को कोर्ट ने ट्रस्ट को अधिकार सौंपने को कहा। इस परिवार को गांधी ने आश्रम में बसाया था जिसके चलते उनके पास कोई दस्तावेज नहीं था। ना ही उनके पास ट्रस्ट को दिए गए किराए का कोई सबूत था। दूसरी ओर, ट्रस्ट ने कहा कि बाबूभाई थोसर को गांधी जी ने कई कारीगरों के साथ बसाया था, जो वहां सैंडल बनाते थे। कार्यशाला को 1969 में बंद कर दिया गया था और सभी मजदूर कार्यमुक्त हो गए। थोसर के परिवार को आश्रम में रहने का अधिकार नहीं है जो कि ट्रस्ट द्वारा खरीद लिया गया है।
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ट्रस्ट ने 1997 में नोटिस जारी कर परिवार को जगह छोड़ने के लिए कहा था। साथ ही जबतक परिवार को रहने के लिए कोई और जगह नहीं मिल जाती। ट्रस्ट ने परिवार से प्रतिमाह हर्जाने के रूप में 300 रुपये मांगे थे। ट्रस्ट ने यह भी तर्क दिया कि परिवार ने हर्जाने के लिए कोई पैसा नहीं दिया, इसलिए अदालत को उन्हें परिसर खाली करने के लिए कहा जाना चाहिए।