जम्मू-कश्मीर के उरी स्थित सैन्य ठिकाने पर आतंकी हमले के बाद से ही भारत की जवाबी प्रतिक्रिया को लेकर बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग मांग कर रहे हैं कि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ सीधी कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन इस मसले पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इत्यादि हालात पर चर्चा कर रहे हैं।
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडी से जुड़े भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनन मानते हैं कि सीधी कार्रवाई से आम जनता को ज्यादा तसल्ली मिलती है लेकिन परोक्ष कार्रवाई ज्यादा असरदार होती है। हसनैन ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा, “इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय सेना जैसी अनुभवी फौज जवाब दिए बगैर चुप नहीं बैठेगी।”
विशेषज्ञों के अनुसार जवाबी कार्रवाई के सभी संभावित विकल्पों में से सेना और देश के राजनीतिक नेतृत्व को मिलकर सबसे बेहतर विकल्प चुनना है। विशेषज्ञों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में उपजे ताजा हालात का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान ने इस कार्रवाई को अंजाम दिलाया होगा। हसनैन कहते हैं, “…लेकिन पाकिस्तान को इसका नतीजा भुगतना होगा।”
कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सीमापार घुसपैठ और आतंकवाद से निपटने के लिए भारत को सीमापार कार्रवाई करनी होगी। भारतीय सेना के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकतकर मानते हैं कि इसके लिए जरूरी नहीं की भारतीय सेना को ही सीमापार भेजा जाए। शेकतकर ने मीडिया से कहा, “पाकिस्तानी सैनिक भारत नहीं आते वो किसी और को भेजते हैं।” पाकिस्तान में खुफिया कार्रवाई करने के समर्थक विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे भारत की पाकिस्तान में पहुंच बढ़ेगी और वो दबाव में आएगा। सुरक्षा विशेषज्ञ हिदायत देते हुए कहते हैं कि ऐसी कार्रवाई के समय भारत को ध्यान रखना होगा कि मासूम आम नागिरक इसके शिकार न हों। शेकतकर कहते हैं, “पाकिस्तानी लोग भी बिकाऊ हैं। पाकिस्तानी सेना, आईएसआई, पाकिस्तानी सरकार में भी सुराख हैं।”
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सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्ताान भारत में प्रॉक्सी-वार (छिपा-युद्ध) लड़ रहा है इसलिए भारत को इसका जवाब देने के लिए अपनी पुरानी नीति की समीक्षा करते हुए नई ज्यादा आक्रामक नीति बनानी होगी। विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान में ऊपर से दिखाई देने वाली सरकार के समानांतर एक “अंदरखाने की सरकार” (डीपी स्टेट) भी काम करती है। इस “अंदरखाने की सरकार” को पाकिस्तानी सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई मिलकर चलाती हैं जो पिछले करीब तीन दशकों से भारत के खिलाफ एक “छिपा युद्ध” जारी रखे हुए हैं। पाकिस्तानी सेना को लगता है कि वो आतंकवाद के सहारा लेकर भारत की सैन्य ताकत की बराबरी कर सकती है। पाकिस्तानी की “अंदरखाने की सरकार” न केवल भारत में बल्कि अफगानिस्तान में भारतीय परिसंपत्तियों पर हमला करवाती है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को इस पाकिस्तानी “अंदरखाने की सरकार” का समर्थन प्राप्त है।
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इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस के विशिष्ट फेलो और भारतीय सेना के सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर गुरमीत कंवल मानते हैं कि भारत को उरी हमले का जवाब देने के लिए सीधी कार्रवाई करनी चाहिए। कंवल मानते हैं कि भारतीय वायुसेना को नियंत्रण रेखा (एलओसी) के निकट मौजूद पाकिस्तानी सेना पर हमला करके उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहिए। कंवल मानते हैं कि जब भी किसी आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का हाथ होने का विश्वसनीय सुबूत मिलें तो भारत को पाक सेना पर सोचा-समझी जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए। कंवल मानते हैं कि जिन पाकिस्तानी चौकियों से घुसपैठ को अंजाम दिया गया हो उन्हें हमला करके बर्बाद कर देना चाहिए। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार भारत को खुफिया ऑपरेशनों के जरिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों को भी ठिकाने लगाने की कोशिश करनी चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को पाकिस्तान की लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गई सरकार के साथ राजनीतिक संवाद बरकरार रखना चाहिए। इससे पाकिस्तानी अवाम में दोनों देशों के संबंध में पाकिस्तानी सेना के असर को कम करने में मदद मिलेगी। भारत को पाकिस्तानी की नागरिक समाज से भी संवाद बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही दोनों देशों के आम नागिरकों के बीच मेलजोल और परस्पर कारोबार को भी बढ़ावा देना चाहिए। भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भी पाकिस्तानी की असलियत सामने लाते रहना होगा। कुछ सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत सिंधु नदी जल समझौते को रद्द करने जैसे कड़े कदम उठाने पर भी विचार कर सकता है। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञ ऐसा कदम उठाने से यथासंभव बचने की सलाह देते हैं।
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