पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि आज से 33 साल पहले उन्हें लिंचिंग का सामना करना पड़ा था। जब उन्होंने साल 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज में खान ने कहा कि जब सरकार ने तीन तलाक पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की कोशिशें शुरू की थीं तब उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनके घर पर तीन बार हमले हुए। हालांकि, सभी हमलों में वो बच गए। खान ने बताया कि इसके बाद 1990 में भी उनकी लिंचिंग की कोशिश की गई थी। खान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वो मॉब लिंचिंग के बड़े और पुराने पीड़ित हैं।

पूर्व मंत्री ने कहा कि अगर किसी को उसके धार्मिक विश्वास या रंग की वजह से इस तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो यह सबसे बुरी बात है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए लेकिन इसके साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले पांच सालों में साम्प्रदायिक दंगे की कोई बड़ी घटना देश में नहीं हुई। उन्होंने कहा कि अगर इससे असुरक्षा महसूस हो रही है तो फिर सुरक्षा की भावना क्यों नहीं पैदा हो रही?

खान ने कहा कि जहां तक आम आदमी का सवाल है, चाहे वह मुस्लिम हो या हिंदू या कोई भी, वे केवल अपनी आजीविका के बारे में चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की बात करने वाला तबका विशेषाधिकार प्राप्त है, जिस पर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सत्ता के कुछ टुकड़े फेंक दिए गए हैं। ये वही लोग हैं जो समाज में असहज महसूस कर रहे हैं और लोगों के मन में भय पैदा कर रहे हैं। उन्होंने सवाल खड़े किए कि रोजमर्रा की जरूरतों के लिए परेशान रहने वाला आम आदमी इन चीजों से कैसे संबंधित है? उन्होंने स्पष्ट किया कि इससे आम हिंदुओं का कोई सरोकार नहीं है।

जब उनसे पूछा गया कि क्या लिचिंग के खिलाफ कानून बनाने की जरूरत है तो उन्होंने कहा, “मेरा सवाल यह है कि जो कानून मौजूद हैं क्या उसका सही ढंग से पालन हो रहा है?” पूर्व मंत्री ने कहा कि दुर्भाग्यवश जब कभी कोई घटना होती है तो हम एक नया कानून बना देते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं से निबटने के लिए हमारे पास उचित कानून हैं। चाहें तो नया भी बना सकते हैं।