मशहूर उपन्यासकार नयनतारा सहगल ने लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले हर भारतीय से कहा है कि वह मुल्क की अपूरणीय क्षति होने से पहले ‘हिंसा और असहिष्णुता’ की राजनीति के खिलाफ आवाज उठाए। नयनतारा ने अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में ‘अनमेकिंग ऑफ इंडिया’ विषय पर आयोजित छठे केपी सिंह स्मारक व्याख्यान में कहा ‘अगर आप आज नहीं बोले तो कल पछताना पड़ सकता है।’

कथित हिंदुत्ववादी ताकतों पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि असहिष्णुता के खिलाफ लेखकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और इतिहासकारों द्वारा दर्ज कराए जा रहे विरोध का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। आज सवाल यह है कि क्या भारत एक आधुनिक वैज्ञानिक देश होगा या फिर अंधेरों में डूबा हुआ मुल्क बनेगा। इस साहित्यकार ने कहा कि 1975 में जब रिश्ते में उनकी बहन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था तो उसके खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाने वालों में वह खुद भी शामिल थीं।

उन्होंने कहा कि अपने सम्मान लौटाने वाले लेखक, वैज्ञानिक, कलाकार और इतिहासकार में से ज्यादातर तो एक-दूसरे से कभी नहीं मिले। अपने देश में हो रही गलत बातों को लेकर साझा चिंता ही हमें आपस में जोड़ती है। नयनतारा ने आरोप लगाया, ‘भारत के सामने केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली को नष्ट करके उसके स्थान पर पुराने अधकचरे इतिहास, मिथकों और अवैज्ञानिक पद्धतियों को थोपने की सुनियोजित कोशिश के रूप में सबसे बड़ा खतरा खड़ा है।’

नयनतारा ने कहा कि इस समय केंद्र की नीति ‘शिक्षा को तोड़ना-मरोड़ना’ है और यह काम बहुत तेजी से हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘मैं देश को आगाह करना चाहती हूं कि अगर मौजूदा शिक्षा नीति जारी रही तो भावी पीढ़ियां सरोकारहीन होंगी।’

उच्च शिक्षण संस्थानों में गैर-अकादमिक लोगों को बड़े पैमाने पर नियुक्त किए जाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा ‘जबरन थोपे गए गैर-अकादमिक लोगों से खतरे का सामना कर रहे मौलिक शिक्षाविदों को अगली पीढ़ियों को बचाने के लिए अब इसके खिलाफ मजबूती से उठ खड़े होना पड़ेगा’ नयनतारा ने कहा कि आज जो भी व्यक्ति धार्मिक सहिष्णुता और असहमति जताने के अधिकार के बारे में बोलता है, उसे धमका कर या हमला करके डराया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत समेत पूरी दुनिया को विभिन्न समूहों और संगठनों के धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।