जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पिता की होती है। कोर्ट ने कहा कि पिता को ही अपने नाबालिग बच्चों के लिए सभी जरूरी इंतजाम करने चाहिए। अगर मां कामकाजी है और वह कमाती भी है तो इसका ये मतलब नहीं होता है कि पिता अपनी जिम्मेदारी को छोड़ दे। कोर्ट के पास एक मामला पहुंचा था जिसमें पिता ने बच्चों के भरणपोषण से यह कहते हुए असमर्थता जताई कि उसकी आय का कोई साधन नहीं है।

क्या है मामला

कोर्ट में पिता की ओर से दलील दी गई कि उसकी पत्नी अब अलग रहती है। वह कामकाजी महिला है। पिता की ओर से कहा गया कि उसकी आय का कोई साधन नहीं है। शख्स ने कोर्ट में जिसने अपने तीनों बच्चों के लिए 4,500 रुपये भरण-पोषण के रूप में भुगतान करने के मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। पिता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट में उसने कहा कि उसकी मासिक आया सिर्फ 12 हजार रुपये है। अपने बच्चों के लिए हर महीने 13500 रुपये देने में वह असमर्थ है। ट्रायल कोर्ट के दौरान वह ऐसा कोई भी सबूत नहीं दे पाया जिससे उसकी कमाई हर महीने 12 हजार रुपये साबित हो सके। कोर्ट ने कहा कि वह इंजीनियर है और विदेश में भी नौकरी कर चुका है।

बीमार माता-पिता का दिया हवाला

शख्स की ओर से हाईकोर्ट में अपने बीमार माता-पिता का भी हवाला दिया गया। उसने कहा कि पत्नी सरकारी टीचर है। उसे अच्छा वेतन मिलता है। हालांकि कोर्ट ने उसकी दलीलों को मानने से इनकार कर दिया। जस्टिस संजय धर ने सुनवाई के दौरान कहा कि मां कामकाजी हो तो भी पिता अपने बच्चों का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं है। कोर्ट ने कहा, “नाबालिग बच्चों के पिता होने के नाते का उनका भरण-पोषण करना पिता की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है। यह सच है कि बच्चों की मां कामकाजी महिला हैं और उनके पास आया का स्रोत है लेकिन इससे पिता होने के नाते याचिकाकर्ता को अपने बच्चों का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी से मुक्ति नहीं मिलती। इसलिए यह तर्क निराधार है।”