शास्त्री कोसलेंद्रदास
वेद-शास्त्रों के सार भगवान विष्णु हैं। वे मायापति, परम शक्ति और परम प्राप्य हैं। सनातन परंपरा में भगवान नारायण की भक्ति की अनादि परंपरा है। वैष्णवों के विभिन्न संप्रदायों के मंदिरों में सांप्रदायिक रीति से विशिष्ट पूजा विधि है। रामानुज, निंबार्क, मध्व, वल्लभ, विष्णुस्वामी और रामानंद जैसे वैष्णव संप्रदायों के मठ-मंदिरों में भगवान की अर्चना वैष्णव विधान से की जाती है।
देश के विभिन्न भागों में भगवान विष्णु के सैंकड़ों साल पुराने मंदिर हैं, जो वास्तु एवं शिल्प के अनूठे प्रतिमान हैं। भगवान विष्णु भारत में चार दिशाओं में चार विशिष्ट स्वरूपों में विराजमान हैं। पूर्व में जगन्नाथ, दक्षिण में रंगनाथ, पश्चिम में द्वारकानाथ और उत्तर में बद्रीनाथ के रूप में भगवान नारायण विराजमान हैं। इनके साथ ही राजसमंद में भी भगवान श्रीनाथ भक्तों को दर्शन दे रहे हैं।
पूर्व में जगन्नाथ
पुरी (ओड़ीशा) में परमात्मा श्रीकृष्ण जगन्नाथ स्वरूप में विराजमान हैं। जगन्नाथ शब्द का तात्पर्य है, संसार के स्वामी। भगवान जगन्नाथ प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ रथ में विराजमान होकर जीव और ईश्वर की दूरी को पाट देते हैं। हर कोई उनके रथ को खींच कर उसे आगे बढ़ाता है। पुरी में जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में पहला गोवर्धन मठ है, जहां अभी स्वामी निश्चलानंद सरस्वती रहते हैं।
पश्चिम में द्वारकानाथ
भारत की पश्चिम दिशा में (गुजरात) में भगवान श्रीकृष्ण द्वारकानाथ रूप में विराजमान हैं। द्वारकानाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र सांब ने विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। भगवान द्वारकानाथ के चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल हैं। सामान्य बोलचाल में भगवान को ‘शंख-चक्र-गदा-पद्म चतुर्भुज’ कहा जाता है।
यहां वसुदेव, देवकी, बलराम, रेवती, सुभद्रा, रुक्मिणी, जांबवती और माता सत्यभामा के मंदिर हैं। शंकराचार्य ने यहां द्वारका मठ स्थापित किया था, जहां अभी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती हैं। महान संत नरसी भगत को भगवान द्वारकाधीश ने यहीं साक्षात दर्शन दिए थे।
दक्षिण में रंगनाथ
श्रीरंगम् (तमिलनाडु) में यह मंदिर रंगनाथ भगवान को समर्पित है, जहां भगवान श्रीहरि शेषनाग की शय्या पर योगशयन करते हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से श्रीरंगम् दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है। कावेरी नदी के तट पर तीन पवित्र रंगनाथ मंदिर हैं। ये आदिरंग, मध्यरंग और रंग मंदिर हैं। रंगनाथ भगवान अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के कुलदेवता हैं।
भगवान श्रीराम ने भक्त विभीषण को रंगनाथ भगवान का विग्रह प्रदान किया और विभीषण ने उन्हें यहां विराजमान किया। वैष्णव परंपरा के विद्वान डॉ. उमेश नेपाल बताते हैं कि वैदिक धारा में भागवत धर्म के स्रोत को लेकर स्वामी रामानुजाचार्य ने श्रीरंगम् से ही भक्ति धारा को प्रवाहित किया था। श्रीरंगम् में संस्कृत तथा तमिल में रचित स्रोतों के द्वारा भगवान रंगनाथ की आराधना की जाती है।
उत्तर में बद्रीनाथ
चार धामों में एक बद्रीनाथ (उत्तराखंड) में भगवान विष्णु विराजमान हैं। शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में यहां शारदा मठ स्थापित किया था। यद्यपि यह मंदिर उत्तर भारत में स्थित है, पर यहां के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी ब्राह्मण हैं।
विष्णुपुराण व महाभारत में बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। यहां भगवान विष्णु को ही समर्पित चार अन्य मंदिर हैं, योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री। पांच मंदिरों के इस समूह को ‘पंच-बद्री’ कहा जाता है। यहां भगवान नर और नारायण का स्थायी निवास है।
मरुभूमि में श्रीनाथ
नाथद्वारा (राजस्थान) में भगवान कृष्ण ही श्रीनाथ रूप में विराजमान हैं। वल्लभ संप्रदाय के सर्वप्रमुख केंद्र के रूप में यहां सैंकड़ों सालों से पुष्टिमार्ग धारा का आश्रय ले भक्त भगवान की सेवा कर रहे हैं। इनके ही परम भक्त सूरदास हुए, जिनकी कृष्ण भक्ति अनूठी थी।
अनेक भक्त और विद्वान भगवान के आराधन और अर्चन के साथ ही शुद्धाद्वैत वेदांत के अनुसार तत्व चिंतन में संलग्न हैं। संस्कृत विद्वान कलानाथ शास्त्री कहते हैं कि भगवान श्रीनाथ वास्तव में गोवर्धनधारी कृष्ण के विग्रह हैं। इनकी सेवा तो होती ही है, वैष्णव परंपरा के अनुसार इनका मधुर विग्रह नवनीतप्रिय नाम से पूजित होता है। पुष्टिमार्ग की अनेक पीठ और बैठकें देश के कोने-कोने में वैष्णव भक्ति की अलख जगा रहे हैं।
