कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ‘क्वांटम कंप्युटिंग’, ‘क्लाउड कंप्युटिंग’, ‘मशीन लर्निंग’ के दौर में सैन्य हथियारों के सार-संभाल को लेकर बहस तेज हो गई है। खासकर परमाणु हथियारों के मामले में। यह जानने की कोशिश की जा रही है कि भविष्य में उभरती तकनीक और परमाणु हथियारों के जखीरे के रखरखाव में किस तरह का तालमेल देखने को मिल सकता है।

भारत के परमाणु सिद्धांत (न्यूक्लियर डाक्ट्रिन) में इस दिशा में संकेत दिए गए हैं। रणनीतिक बल कमान (स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमान, एसएफसी) के प्रधान सेनानायक (कमांडर इन चीफ) की नियुक्ति का जिक्र है। इस कमान की जिम्मेदारी सामरिक बलों का प्रबंधन और प्रशासन करने की होगी।

अमेरिकी खुफिया रपट

भारत लगातार अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है। हाल ही में एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण कर रहा है। यह रपट ‘फेडरेशन आफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स’ (एफएएस) ने जारी की है। एफएएस के अनुसार, भारत में चार नए हथियारों को विकसित किया जा रहा है, जो परमाणु विमान, भूमि आधारित प्रहार प्रणाली और पनडुब्बी से दागी जाने वाली मिसाइलों के पूरक या उनकी जगह लेने की ताकत रखते हैं।

रपट के मुताबिक, भारत फिलहाल आठ अलग-अलग परमाणु प्रणालियों का संचालन करता है। इसमें दो विमान, चार जमीन से दागे जा सकने वाले बैलिस्टिक मिसाइल और दो समुद्र-आधारित बैलिस्टिक मिसाइल हैं। इसके अलावा भारत चार और प्रणालियां विकसित कर रहा है। अमेरिकी रपट के मुताबिक, भारत ने लगभग सात सौ किलोग्राम हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम का उत्पादन किया है, जो 138 से 213 परमाणु हथियारों के लिए पर्याप्त है।

हालांकि, अभी तक इनसे परमाणु हथियार नहीं बनाए गए हैं। एफएएस के अनुसार, भारत के पास अपने लगभग 160 परमाणु हथियार हैं और नई मिसाइलों को चलाने के लिए और ज्यादा की जरूरत होगी। पाकिस्तान के लिए यही आंकड़े 165 हैं। वहीं चीन के पास 350, अमेरिका के पास 5,428 और रूस के पास 5,977 परमाणु हथियार हैं।

परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण ये बताता है कि भारत भविष्य में चीन के साथ रणनीतिक संबंधों पर अधिक जोर दे रहा है। विशाखापत्तनम से करीब 50 किमी दूर रामबिल्ली गांव में आइएनएस वर्षा नाम का एक बेस बन रहा है, जिसमें पहाड़ में कई सुरंगें, बड़े पियर और परमाणु पनडुब्बियों के लिए सपोर्ट सुविधाएं हैं।

परमाणु सिद्धांत के प्रमुख सूत्र

भारत के परमाणु सिद्धांत का जितना हिस्सा सार्वजनिक हो सका है, उसमें आठ मुख्य तत्व हैं- इनमें सबसे अहम ‘पहले इस्तेमाल न करने का नजरिया’, दुश्मन को भयभीत करने के लिए विश्वसनिय स्तर पर कम से कम इस्तेमाल (क्रेडिबल मिनिमल डेटरेंस), पहला वार होने के बाद ‘दुश्मन को तबाह करने वाला’ जबरदस्त पलटवार, और न्यूक्लियर कमान प्राधिकरण के जरिए जवाबी परमाणु हमले की मंजूरी केवल असैन्य राजनीतिक नेतृत्व के हाथों में होना। इस सिद्धांत में प्रधान सेनानायक की नियुक्ति का भी जिक्र है।

इस कमान की जÞम्मिेदारी सामरिक बलों का प्रबंधन और प्रशासन करने की होगी। भारत के परमाणु सिद्धांत की सार्वजनिक और आधिकारिक रूप से उपलब्ध ये जानकारियां ऐसी बुनियाद मुहैया कराती हैं, जिसके ऊपर कंप्यूटर की उन्नत तकनीक यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ‘क्वांटम कंप्यूटिंग’ और स्वायत्त प्रणाली का ढांचा खड़ा किया जाएगा।

परमाणु हथियार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता

कंप्युटर और परमाणु ताकत एक दूसरे पर निर्भरशील रहे हैं। आंकड़ों, प्रतिभाओं और संस्थानों के साथ साथ गणना करना, पूरी दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास की धुरी रहे हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) के ‘मशीन लर्निंग’ या ‘डीप लर्निंग’ संस्करणों में डेटा और कंप्यूट दोनों ही बेहद जरूरी हैं। एआइ बेहद ताकतवर ‘ग्राफिक्स प्रासेसिंग यूनिट्स’ (जीपीयू) चिप पर आधारित होते हैं, जो समानांतर प्रसंस्करण (प्रासेसिंग) और बड़ी तादाद में डेटा में से उन्हें आपस में जोड़ने वाले संपर्क सूत्र ढूंढ निकालते हैं।

फिर उससे निपटने की प्रक्रिया ईजाद करते हैं। आज की बहुध्रुवीय दुनिया में इस माडल से देशों को अपनी एटमी रणनीति की योजना बनाने में मदद मिलती है। उपग्रह से मिली तस्वीरों और अन्य खुफिया सूचनाओं (ओपेन सोर्स इंटेलिजेंस, ओएसआइएनटी) के आंकड़ों और उन्हें मानवीय, सांकेतिक और भूरेखीय आंकड़ों के साथ मिलाकर एआइ की मदद से दुश्मन के पारंपरिक और परमाणु हथियारों और बलों की संपूर्ण तस्वीर तैयार की जा सकती है।

अगली पीढ़ी के हवाई युद्ध की तैयारी

एआइ का उपयोग नए-नए एटमी पदार्थों की रचना में भी किया जा सकता है, जिन्हें सामान्य और हाइड्रोजन परमाणु बमों में इस्तेमाल किया जा सके। ये परमाणु बम छोटे आकार के लेकिन अधिकतम असर के बीच वाली स्थिति में होते हैं। एआइ और त्रिआयामी प्रकाशन की तकनीकों का प्रयोग पेचीदा प्रक्रियाओं की डिजाइन और कुशलता को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। एआइ का इस्तेमाल किसी परमाणु रिएक्टर (फिर चाहे वो फिशन हो या फ्यूजन उपकरण) का हू-ब-हू डिजिटल संस्करण या फिर किसी भी डिलिवरी प्लेटफार्म यानी एटमी हथियार दागने के मंच और उनके रख-रखाव के चक्र को बनाने में भी किया जा सकता है।

क्या कहते हैं जानकार

स्वनियंत्रित (आटोनामस) हथियारों का भविष्य बताया जा रहा है। इसकी बड़ी वजह जटिल मिसाइलों (एंटी शिप मिसाइल, लंबी दूरी के तोपखाने और जमीन से हवा में मार करने में सक्षम) का विस्तार है। इलेक्ट्रानिक युद्ध और साइबर हथियार, इन हथियारों के पूरक का काम करते हैं।

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रकाश मेनन, रक्षा विशेषज्ञ

अपने आप निशाने की पहचान, चयन और खत्म करने की क्षमता से लैस प्रणाली वाले हथियार भविष्य में होंगे। इनमें इंसान या तो इस पूरी व्यवस्था में निगरानी या फिर मूक-दर्शक की भूमिका में होगा। अगर इंसानों की तरफ से मशीनें युद्ध लड़ेंगी, तो नुकसान को रोकना
मुश्किल होगा।

  • विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बख्शी, रक्षा विशेषज्ञ