केन्द्र सरकार देश के 50 करोड़ कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) में बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है। इसके तहत सरकार ईपीएफओ के सभी कार्यकारी काम स्टेट सोशल सिक्योरिटी बोर्ड्स को ट्रांसफर करने की योजना बना रही है और ईपीएफओ एक फंड मैनेजर के तौर काम करेगा। खबर के अनुसार, ईपीएफओ फंड मैनेजर के तौर पर डिपोजिट को विभिन्न स्त्रोतों में इनवेस्ट करने और उससे मिलने वाले रिटर्न के आधार पर पीएफ की वार्षिक ब्याज दर तय करेगा। सरकार की इस पहल का उद्देश्य ईपीएफओ के दशकों के अनुभव का फायदा उठाने का है।
इकॉनोमिक टाइम्स की इस खबर के अनुसार, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का कहना है कि ईपीएफओ सभी राज्यों के सामाजिक सुरक्षा फंड्स के समूह को मैनेज करने के लिए एक केन्द्रीय बोर्ड के रुप में काम करेगा। हालांकि इस बदलाव के लिए ईपीएफओ के संगठनात्मक ढांचे में बड़े बदलाव की जरुरत होगी। साथ ही इसके लिए प्रोफेशनल इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स को भी अपने संगठन के साथ जोड़ना होगा। फिलहाल देश में फंड मैनेजर के तौर पर एसबीआई, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज, रिलायंस कैपिटल, एचएसबीसी एएमसी और यूटीआई एएमसी काम कर रहे हैं। वहीं ईपीएफओ मुख्यतः सामाजिक सुरक्षा से जुड़े फंड कलेक्शन और उसके वितरण पर ही फोकस करेगा।
खबर के अनुसार, वित्त मंत्रालय सोशल सिक्योरिटी इन्वेस्टमेंट पैटर्न पर नजर रखना जारी रखेगा। वहीं ईपीएफओ के फंड मैनेजर्स ये सुनिश्चित करेंगे कि इन्वेस्टमेंट नियमों के अनुसार हो और उससे अधिकतम रिटर्न आए। ईपीएफओ ब्याज दर तय करेगा लेकिन ये राज्यों पर निर्भर होगा कि वह तय ब्याज दर या फिर उससे ज्यादा कर्मचारियों को देती है। मौजूदा पैटर्न के अनुसार, 1 अप्रैल, 2015 से पीएफ का 50% हिस्सा गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, 45% हिस्सा कर्जों में और 15% हिस्सा इक्विटी में निवेश किया जाता है।
गवर्नमेंट सिक्योरिटीज और डेब्ट बॉण्डस पर सालाना 7% रिटर्न मिलता है, वहीं इक्विटी से ईपीएफओ को 16% तक रिटर्न मिलता है। नए सिस्टम से हर राज्य में सामाजिक सुरक्षा के लिए एक सिंगल विंडो बन जाएगा। फिलहाल एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत इस योजना को कुछ जिलों में लागू कर दिया गया है। सफलता मिलने पर अगले कुछ सालों में इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा।