कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने अपने ग्राहकों को बड़ा झटका दिया। ईपीएफओ ने अपने 45 लाख ग्राहकों की न्यूनतम पेंशन को दुगना करने की योजना फिलहाल रोक दिया है।
कंपनी ने इसके पीछे फंड की कमी का हवाला दिया है। मिंट की रिपोर्ट के अनुसार ईपीएफओ के आंतरिक पैनल ने मौजूदा न्यूनतम पेंशन राशि 1000 रुपये को बढ़ा कर 2000 रुपये करने की सिफारिश की थी।
एक अधिकारी ने न्यूजपेपर को बताया कि इसे फिलहाल रोक दिया गया है। हम अभी इस योजना पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं क्योंकि इससे हम पर वित्तीय भार बढ़ जाएगा। जब इस प्रस्ताव को रखा गया था तभी से ही इसके फंड का मुद्दा था। इस योजना से सरकार पर 1500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने का अनुमान है।
ईपीएफओ को अपनी तरफ से इस योजना के लिए सरप्लस फंड की आवश्यकता नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले आदर्श आचार संहिता लागू है। इसलिए श्रम मंत्रालय इस संबंध में सरकार से फंड का आग्रह नहीं कर सकता है।
एक सूत्र ने बताया, ‘आदर्श आचार संहिता तो मार्च में प्रभावी हुई थी लेकिन ईपीएफओ ने इस संबंध में सरकार से जनवरी में ही स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई आश्वासन नहीं दिया गया। सरकार ने यह नहीं बताया कि इस योजना के संबंध में पैसे दिए जाएंगे या नहीं।’
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रिपोर्ट के अनुसार ईपीएफओ के 60 लाख पेंशनर्स में से 45 लाख लोगों को 2000 रुपये से कम पेंशन मिलती है। ईपीएफओ के एक सेंट्रल बोर्ड सदस्य वीरजेश उपाध्याय ने न्यूजपेपर को बताया, ‘एक बार जब चुनाव खत्म हो जाएंगे और नई सरकार का गठन हो जाएगा।
इसके बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी (सीबीटी) इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार के लिए बैठक बुलाई जा सकती है।’ इससे पहले सरकार ने 2014 में 1000 रुपये न्यूनतम पेंशन को मंजूरी थी।
इस पेंशन को एक साल तक के लिए लागू किया गया था। साल 2015 में सरकार ने इसे अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया था। केंद्र की तरफ से न्यूनतम पेंशन के लिए सालाना 813 करोड़ रुपये दिए जाते हैं।