संकटग्रस्त गौरैया चिड़िया भले ही देश दुनिया से गायब नजर आ रही हो, लेकिन चंबल घाटी से जुड़े उत्तर प्रदेश के इटावा और आसपास घर-घर में अपनी मौजूदगी से हर किसी को बेहद गदगद कर रही है। घर-घर में गौरैया की मौजूदगी के बाद ऐसा माना जा रहा है कि गौरैया चिड़िया का सबसे बड़ा संरक्षक जिला इटावा बन गया है।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय सोसायटी फार कंजर्वेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान ने सर्वेक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गौरैया के संरक्षण की दिशा में चलाए जा रहे अभियान के क्रम में इटावा के लोगों ने अपने अपने घरों में कृत्रिम घोसले लगा रखे हैं और उन घोसलों में गौरैया चिड़िया अंडे देती है उसके बाद बच्चे बाहर आते हैं।
इन छोटे-छोटे बच्चों को देखकर लोग ना केवल खुश होते बल्कि संरक्षक की भूमिका भी अदा करने में लगे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि केवल एक या दो घरों में ही गौरैया चिड़िया के बच्चे पल रहे हो बल्कि हजारों की सख्या में ऐसे घर सामने आये हैं, जिनमे गौरैया चिड़िया ने अंडे दिए उसके बाद उनमें कई बच्चे खुले आसमान में लोगों को आनंदित कर रहे हैं।
आइटीआई के पास गंगा बिहार कालोनी में रहने वाली प्राथमिक शिक्षिका सुनीता यादव ने अपने घर में करीब बीस की सख्या में घोंसले लगाए हुए हैं। उनके घर पर करीब 50 की तादात में गौरैया नजर आती है। उनका कहना है कि गौरैया संरक्षण की दिशा में उनके स्तर से करीब 300 के आसपास घोसले विभिन्न लोगों को बांटे जा चुके हैं।
शहरीकरण से गायब हुई गौरैया
ऐसा माना जाता है कि शहरीकरण के इस दौर में गौरैया भी प्रभावित हुई । गौरैया आबादी के अंदर रहने वाली चिड़िया है, जो अक्सर पुराने घरों के अंदर, छप्पर या खपरैल अथवा झाड़ियों में घोंसला बनाकर रहती हैं । घास के बीज, दाना और कीड़े-मकोड़े गौरैया का मुख्य भोजन है, जो पहले उसे घरों में ही मिल जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
अखिलेश सरकार में शुरू हुआ था गौरैया संरक्षण अभियान
साल 2012 में अखिलेश सरकार में गौरैया के संरक्षण की दिशा में शुरू किए गए प्रदेश व्यापी अभियान का यह असर हुआ कि गौरैया को बचाने की दिशा में लोग घोसले आदि अपने अपने घरों में लगाने में जुट गए जिसके बाद उन्ही घोसले में गौरैया अंडे देने के बाद बच्चे दे रही है।
लाल सूची में शामिल
ब्रिटेन की ‘रायल सोसायटी आफ प्रोटेक्शन आफ बर्ड्स’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘लाल सूची’ में डाला हुआ है । इसके बावजूद चंबल घाटी हजारो की तादात में गौरैया की मौजूदगी एक सुखद एहसास कराती है।