RSS chief Mohan Bhagwat News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि भारत सभी की भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। इंदौर में एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का जिक्र किया। आरएसएस चीफ ने कहा, “विस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था कि तुम आजाद होने के बाद टिकोगे नहीं, बंट जाओगे। इंग्लैंड बंटने की स्थिति में आ रहा है, हम नहीं बंटेंगे। हम तेजी से आगे बढ़ेंगे। कभी बंट गए थे और वो भी हम फिर से मिला लेंगे। ये जीवन विद्या हमारे पास है और जीवन विद्या हम को सिखाने वाले हमारे पास हैं।

मोहन भागवत ने कहा कि जहां विश्व आस्था और विश्वास पर चलता है, वहीं भारत आस्था और तर्क की भूमि है। संघ प्रमुख ने कहा, “यह भक्ति भावना उन लोगों के लिए नहीं है जो दृढ़ता से मानते हैं कि नर्मदा का पानी केवल हाइड्रोजन ऑक्साइड है।” उन्होंने आगे कहा, “भक्ति के अभाव के कारण ही विदेशी लोग अमेजन और मिसिसिपी जैसी नदियों को ‘अमेजन मैया’ और ‘मिसिसिपी मैया’ नहीं कहते। नदियों को मां कहने की परंपरा केवल भारत में ही है।” संघ प्रमुख ने जोर देकर कहा कि सत्य और सच्चा सुख बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि मानव मन के अंदर पाया जाता है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “दुनिया में भगवान एक हों या अनेक, दोनों में ही टकराव होता है। हमारे दार्शनिक कहते हैं कि ऐसे टकराव में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ भगवान हैं और कोई नहीं। तब सारे टकराव बेकार हो गए। हमारा जीवन ऐसा है कि हम मानते हैं कि हम सब एक हैं। लेकिन क्या हम सब के साथ एकता का व्यवहार करते हैं? नहीं। दुनिया में टकराव इसलिए होते हैं क्योंकि एक व्यक्ति खुद को दूसरे से श्रेष्ठ समझता है।”

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मोहन भागवत ने दिया एक उदाहरण

भागवत ने एक उदाहरण देते हुए कहा, “एक व्यक्ति कितने रसगुल्ले खा सकता है? कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जो प्रतिस्पर्धा करते हुए 100 रसगुल्ले तक खा सकते हैं, लेकिन एक क्षण ऐसा आता है जब ये लोग भी एक रसगुल्ला देखकर उल्टी कर देते हैं। अति होने पर सुख भी दुख बन जाता है।” भागवत ने कहा, “हमारे पूर्वज पहले से ही जानते थे कि हम सब इस नाटक में एक माध्यम मात्र हैं और ‘मैं और मेरा’ (निजी स्वार्थ) की भावना एक स्तर तक ही रहती है, उसके बाद इस भावना का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। वे जानते थे कि जीवन में अपनी भूमिका तो अच्छी तरह निभानी है, लेकिन इसमें (निजी स्वार्थ में) नहीं उलझना चाहिए।

हम सभी जीवन के नाटक में अभिनेता हैं- मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति “मेरा-तेरा” के भेद से ऊपर उठकर एकता का संदेश देती है। भागवत ने कहा, “हम सभी जीवन के नाटक में अभिनेता हैं और हमें अपनी भूमिका निभानी है और नाटक समाप्त होने पर हमारा असली स्वरूप सामने आता है।”