जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो गया है। इस दौरान हाल ही में अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर आए इंजीनियर राशिद का नाम काफी सुर्खियों में रहा। उनको लेकर मतदान केन्द्रों के बाहर यह चर्चा सुनाई दी कि वह इस चुनाव में उलटफेर करने की काबिलियत रखते हैं। त्राल में एक मतदान केंद्र के बाहर फिरदौस अहमद नाम के एक शख्स उनकी तुलना क्रिकेट के खिलाड़ी रिंकू सिंह से करते हुए कहते हैं कि वह भी आखिरी ओवरों में बल्लेबाजी करते हुए मैच बदलने का हुनर रखते हैं।
इंजीनियर राशिद को लेकर क्या चर्चा है?
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी के उम्मीदवार को वोट दिया है? फिरदौस मुस्कुराते हैं और बताते हैं कि नहीं क्योंकि उन्होंने और उनके भाई ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के बागी उम्मीदवार को वोट दिया, क्योंकि वह उनके पड़ोसी हैं।
फिरदौस आगे कहते हैं कि बीजेपी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) के वोट काटने के लिए इंजीनियर राशिद को रिहा किया है। वह कहते हैं,”मुझे लगता है कि यही उनकी योजना थी। लेकिन इंजीनियर साहब ने अब अपने लिए बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग बना ली है। वह ईमानदार हैं। आगे कुछ भी हो सकता है।”
फिरदौस की तरह ही श्रीनगर में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रों का मानना है कि राशिद ईमानदार हैं और उनकी बातें लोगों को समझ में आती हैं। छात्रों में से से कुछ दशकों से कश्मीर में जो कुछ भी गलत हुआ है, उसके लिए फ़रूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को दोषी मानते हैं। हालांकि वे इंजीनियर राशिद की पार्टी को वोट देंगे या नहीं इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं देते हैं।
लोकसभा चुनाव में जीत से काफी बढ़ गया है कद
इंजीनियर राशिद ने लोकसभा चुनावों में बारामुल्ला से पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को दो लाख से ज़्यादा वोटों से हराकर सभी को चौंका दिया था। नतीजतन 57 साल के राशिद कश्मीर घाटी में राजनीति और चुनावों के बारे में लगभग हर बातचीत का हिस्सा बन गए हैं। हालांकि उनकी ईमानदारी छवि के सामने वोट काटने वाले नेता की छवि भी एक चुनौती है।
यहां तक कि जो लोग राशिद की राजनीतिक बयानबाजी से प्रभावित हैं वे भी पैरोल पर जेल से उनकी अचानक रिहाई के पीछे की असली कहानी के बारे में बात करते हे दिखाई दे जाते हैं। एनसी और पीडीपी ने पहले ही उन्हें ‘दिल्ली का एजेंट’ तक कह दिया है। राशिद का तर्क है कि उन्होंने मोदी के सामने खड़े होने का साहस दिखाया है और यही कारण है कि वह 2019 से कथित आतंकी फंडिंग के मामले में जेल में बंद हैं, जबकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से नजरबंद अन्य लोगों को रिहा कर दिया गया।